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‘‘सर, मैं वापस जा कर अपने पापा से बात करता हूं, उन्होंने एक जगह मेरी बात पक्की कर दी है, उन लोगों से भी बात करनी पड़ेगी. तब तक क्या मैं अपनी फाइल आप को दे जाऊं?’’ ‘‘सीधी सी बात है, आप पापा से बात कर लें, और तब तक अपना कागज मेरे दफ्तर में फाइल की लाइन में लगा दें, जब इस शादी को हां हो जाए तो मुझे बता दीजिएगा, कोई कमी नहीं रहेगी, इतना कह सकता हूं.’’

सरकारी नियम कुछ भी हो, कुछ बातें विहाग के अख्तियार में तो नहीं थीं. विहाग ने वापसी की. अब भी वह समझदार नहीं हुआ था, लेकिन समझ ही गया था. हफ्तेभर की नाइट ड्यूटी और कई दफा दिन की खलल वाली नींद के बाद वह एक मजदूर को ले कर क्वार्टर पर पहुंचा. इरादा था मजदूर के संग मिल कर क्वार्टर को घर बनाने की दिशा में कुछ कदम बढ़ाना, मसलन काइयों और झड़े प्लास्टर के साथ मकड़जाल की सफाई. यानी अपने खुद के ठिकाने की तरफ एक कदम.

बरामदे में पहुंचते ही चौंकने की बारी थी, अंदर कोलाहल सा था, दरवाजा अधखुला. बैडरूम से ठहाकों और अश्लील गालीगलौज की आवाजें आ रही थीं. जुए की बाजी बिछाए 30 के आसपास के 4 पुरुष और 2 बार गर्ल की वेशभूषा में इन चारों के साथ चिपकी बैठी शातिराना मुसकान बिखेर रही 20-22 साल की लड़कियां.

विहाग के तनबदन में आग लग गई, परेशान हो कर पूछा, ‘‘भाई लोग आप सब यहां कैसे?’’ तुरंत बात खींच ली हो जैसे, उन में से एक आदमी ने छूटते ही कहा, ‘‘बाबू चाबी सिर्फ आप के पास ही नहीं थी, एक चाबी अभी भी सरकारी दराज में थी,’’ सभी भौंड़े तरीके से हंसने लगे. ‘‘क्या मतलब?’’विहाग क्रोधित भी था और भौंचक भी. तुरंत एक कारिंदे ने कहा, ‘‘ए लिली, जा बाबू को मतलब समझा.’’

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