आज भंवर पांवों में लपेट लिए
बना के पायल उस ने
जिस ने, हाथों में,
सदियों को पहना था कंगन समझ
सपनों को गूंथ लिया था
चोटी में गजरे की तरह
औ जीवन के रंगों को समेटा था
हथेली में मेंहदी समझ
अश्कों ने जिस के कर दिया था
समंदर खारा
औ पी गई थी जो
रस्मोरिवाज जमाने के अमृत समझ
टूट कर बिखरने भी न दिया
जिस ने कभी
दिल को, संभाल लिया सीने से लगा
बच्चा समझ
कर के बेवफाई छोड़ गया कोई
उसे बहारों में खड़ा
जी रही है फिर भी वो
उस को कोई नई अदा समझ
न आइना दो हाथ में
भ्रम बना रहने दो
खेलने दो गर खेलती है
कटोरी को चांद समझ.
वंदना गोयल
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