दीप था बाती भी थी
सिर्फ तुम नहीं थे
रोशनी हो न सकी

वाणी थी शब्द भी थे
सिर्फ तुम नहीं थे
बात हो न सकी

बसंत था बहार भी थी
सिर्फ तुम नहीं थे
फूल खिल न सके

नदी थी नाव भी थी
सिर्फ तुम नहीं थे
पार हो न सके

जिस्म था सांसें भी थीं
सिर्फ तुम नहीं थे
जिंदगी जी न सके.

काली प्रसाद जयसवाल   

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...