हमारे अक्स के
धुंधले पड़े सारे नजारे हैं
कदम जिस ओर भी जाएं
दीवारें ही दीवारें हैं
बहुत चाहा कि अब तो
तोड़ ही डालें सभी बंधन
मगर ये काम हो कैसे
ये बंधन भी तुम्हारे हैं.
पूनम गुणवंत
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