भाग्यजननी ने टेबल पर रखा अपना चश्मा पहना और कंप्यूटर स्क्रीन पर मानो चिपक गई. बहुत गौर से देखने पर भी उसे लाल बढ़ते रंग में कोई परिवर्तन होता नहीं नजर आया. जैसेजैसे यह सौमंप आगे बढ़ रहा था, लाल रंग की लकीर की लंबाई बढ़ती जा रही थी.
भाग्यजननी ने फौरन अपनी कौपी निकाली और पैन से इस सौमंप के वक्र की गणना करने लगी. उस ने दोबारा अपनी गणना को जांचा, कहीं कोई गलती नहीं लगी. गणन की प्रक्रिया में एक घंटा बीत गया. रात के 12 बजने को आ रहे थे. असामान्य सी स्थिति बन गई थी. क्या केंद्र के डायरैक्टर को रात के 12 बजे फोन कर के जगाना उचित होगा?
कुछ सोच कर भाग्यजननी ने पहले अपना वह सौफ्टवेयर खोला, जिस में सौमंपों का विस्तृत विश्लेषण करने की क्षमता थी. ‘अखअ’ के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा यह प्रोग्राम बनाया गया था. उस ने लाल रंग की लकीर बनाते हुए सौमंप के वक्र के मापदंड इस सौफ्टवेयर में एंटर किए और सौफ्टवेयर को रन किया. सौफ्टवेयर कुछ देर तक घूमता रहा, और तकरीबन 15 मिनट बाद उस ने वह ग्राफ सामने ला दिया, जिसे देख कर भाग्यजननी के होश उड़ गए.
सतेंद्र गिल ‘अखअ’ केंद्र के डायरैक्टर थे और उन की उम्र 55 पार कर चुकी थी. केंद्र की हजारों चीजों को ध्यान में रखते हुए भी उन्हें अपनी नींद बहुत प्यारी थी. न तो रात को 11 बजे के बाद वे जगे रहना पसंद करते थे, न ही सुबह को 6 बजे से पहले उठना, इसीलिए जब अपने मोबाइल की बजती घंटी से और उस के वाइब्रेशन से उन की नींद खुली तो उन्हें बेहद झल्लाहट महसूस हुई. अपनी अधखुली आंखों से सब से पहले उन्होंने समय देखा. रात के 1 बजे का समय देख कर उन्हें और भी परेशानी हुई.
अपने मोबाइल पर अपने केंद्र के वैज्ञानिक भाग्यजननी का नाम देख कर उन्होंने फोन उठाया और खीज कर प्रश्न किया, “गलती से लगा है क्या?”
भाग्यजननी ने सहमते हुए कहा, “नहीं सर. मैं विक्रम लैब के टर्मिनल सी पर हूं.”
केंद्र में हर लैब का अलगअलग नाम था. विक्रम लैब में 4 टर्मिनल ऐसे थे, जो केंद्र के सुपर कंप्यूटर ‘इंद्रांचल’ से जुड़े हुए थे और उस की संगणन शक्ति के बल पर चलते थे. इन टर्मिनलों की सारी प्रोसैसिंग ‘इंद्रांचल’ के प्रोसैसर पर होती थी.
सतेंद्र गिल ने तंग आवाज में पूछा, “क्या बात है? लैब या ‘इंद्रांचल’ से जुड़ी समस्या है, तो सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर को बुलाओ, वरना सवेरे देख लेंगे.”
सतेंद्र को फोन रख कर वापस सोने की जल्दी थी. उस ने ऐसी कई समस्याओं को देखा था, जो सिस्टम से जुड़ी हुई होती थी, लेकिन फिर भी लोग भाग कर पहले उस के पास आते थे. वे ऐसा इसीलिए करते थे, क्योंकि सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर के पास हजारों काम थे, और डायरैक्टर को बोल कर अपने परेशानी को सुलझाने में इन लोगों को प्रायोरिटी मिल सकती थी. आज भी सतेंद्र को यही लगा.
भाग्यजननी ने कहा, “नहीं सर, लैब और टर्मिनल सब सही हैं. ‘इंद्रांचल’ से भी कुछ इशू नहीं लग रहा है.”
सतेंद्र ने और भी परेशान हो कर पूछा, “तो फिर क्या बात है?”