भारतीय अंतरिक्ष केंद्र और भारतीय खगोलशात्र अध्ययन केंद्र की साझेदारी में बना अंतरिक्षीय खतरे अध्ययन केंद्र का मुख्य उद्देश्य उन खतरों के बारे में जानकारी रखना था, जो अंतरिक्ष की ओर से दैनिक आधार पर पैदा हो रहे थे. इन में उल्का पिंड थे, जिन में से ज्यादातर धरती के ऊपर के वायुमंडल में नष्ट हो जाते थे और कोई ख़तरा नहीं पैदा करते थे. लेकिन कुछेक ऐसे भी थे, जो धरती के भीतर आ जाते थे, जिन से खतरा बना रहता था. लेकिन फिर भी ये उतने बड़े नहीं होते थे कि पूरे शहर की आबादी पर असर करें. अगर कुछ जानमाल का नुकसान हुआ तो भी महज इक्कादुक्का व्यक्तियों पर ही सीमित रहता था.
अगर संपूर्ण भारत देश पर खतरा बन आए या मानव जाति ही खतरे में पड़ जाए, तो आपातकालीन स्थिति बन जाने की संभावना थी. अंतरिक्षीय खतरे अध्ययन केंद्र को संक्षिप्त में ‘अखअ’ का नाम दे दिया गया था.
भाग्यजननी हमेशा की तरह अपने कंप्यूटर पर सोमंप का विश्लेषण कर रही थी. ‘अखअ’ में उस की यही जिम्मेदारी थी. सौमंप यानी सौरमंडल के पत्थर. रोज धरती पर प्रहार करने वाले पत्थर, जो सौरमंडल में ही कहीं से भी आते थे. ज्यादातर ये पत्थर मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच में से आते थे. अधिकांश तो पृथ्वी से बहुत दूर से निकल जाते थे, लेकिन कुछ सौमंप धरती के लिए खतरे थे. ऐसे सौमंपों का प्रक्षेप पथ उन्हें सूर्य के चारों ओर ले कर जाता था, जिस के बाद वे फिर वापस अपने गंतव्य स्थान की ओर रुख कर लेते थे. जहां से भी उन की उत्पत्ति होती थी, सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से वे सूर्य की ओर आकर्षित हो कर बढ़े चले आते थे. अगर उन के रास्ते में पृथ्वी आ गई, तो फिर समस्या उत्पन्न हो जाने के आसार थे. जब तक उन का प्रक्षेपवक्र उन्हें धरती से दूर रखता था, तब तक सब सही था.
शायद रात के 11 बज चुके थे. इस वजह से या फिर आज के उबाऊ सैमिनार की वजह से भाग्यजननी अपनी आंखें मींचे उबासी लेते हुए जैसे महज कंप्यूटर स्क्रीन पर ताक रही हो. अगले कुछ पलों में उसे एहसास होने लगा कि कंप्यूटर स्क्रीन पर मौजूद असंख्य बिंदुओं में से एक बिंदु लाल हो चुका था और जैसेजैसे वह आगे बढ़ रहा था, अपने पीछे लाल रंग के पदचिह्न छोड़ते जा रहा था. सफेद बिंदुओं के बीच लाल लकीर अभी तो महज चंद मिलीमीटर ही थी, लेकिन ये चंद मिलीमीटर काफी थे भाग्यजननी को बिजली का झटका देने के लिए. जितने भी सफेद बिंदु थे, वे वह सौमंप थे, जिन से पृथ्वी को कोई खतरा नहीं था.
भारतीय खगोलशात्र अध्ययन केंद्र से भाग्यजननी ने ऐसे सौमंपों पर पीएचडी की थी, जो आने वाले दशक में पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते थे. पीएचडी के बाद 2 साल तक यूरोप में सौमंपों पर पोस्ट डाक्टरल रिसर्च कर हिंदुस्तान लौटी, जहां उसे अपनी डाक्टरल थीसिस के बल पर ‘अखअ’ में वैज्ञानिक के तौर पर नियुक्ति मिली.