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कुछ ही देर में बढि़या खानेपीने का सामान आ गया और बातचीत का दिलचस्प दौर भी चल पड़ा. एक फोन आने पर कामिनी चहकी, ‘‘हां भई, विशाल यहीं पर हैं. अरे नहीं, रूहअफजा से क्यों टालूंगी? पापा नहीं हैं तो क्या हुआ, अपनी पार्टी स्पैशलिस्ट राघव और ऋतु हैं न. हां, फुरसत तो उन्हें आज भी नहीं थी लेकिन मेरे आग्रह करने पर आ गए. ऋतु से बात कर ले. ऋतु, अर्पि का फोन है.’’

ऋतु मोबाइल ले कर बाहर चली गई और राघव व विशाल बातचीत में मशगूल हो गए.

‘‘लगता है आप को अपनी शख्सीयत के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, कामिनीजी,’’ विशाल ने एक आह भर कर कहा.

‘‘आप का साथ हो तो मटके का पानी भी रंग जमा सकता है,’’ कामिनी शोखी से मुसकराई लेकिन उस के कुछ कहने से पहले ही राघव वापस आ गया. हालांकि विदा लेने से पहले विशाल ने कई बार मजेदार शाम और खाने के लिए कामिनी का शुक्रिया अदा किया था, फिर भी अगली सुबह उस ने धन्यवाद करने के लिए कामिनी को फोन किया.

‘‘आज का क्या प्रोग्राम है?’’ कामिनी ने पूछा.

‘‘दिनभर काम और शाम को एअरपोर्ट पर कल की शाम को याद करते हुए फ्लाइट का इंतजार.’’

‘‘फ्लाइट तो आप की रात को 10 बजे है न, उस से पहले आप यहां आ जाइए, मटके के पानी से

रंग जमाने,’’ कामिनी हंसी, ‘‘आप को 9 बजे एअरपोर्ट पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी.’’

‘‘वह मैं खुद पहुंच जाऊंगा, आप बस इतना याद करवा दीजिएगा कि एअरपोर्ट के लिए निकलने का टाइम हो गया है.’’

उस के पहुंचने से पहले ही कामिनी ने गजलों की सीडी लगा रखी थी. संगीत तो धीमा था लेकिन समय पंख लगा कर उड़ रहा था, जल्दी ही एअरपोर्ट के लिए निकलने का समय हो गया.

‘‘फिर कब आइएगा?’’ कामिनी के स्वर में औपचारिकता नहीं थी.

‘‘जल्दी ही. अभी तो जब तक हो सकता था, आना टाला करता था लेकिन अब लगता है खुद ही टूर बनाना पड़ा करेगा.’’

‘‘देखते हैं,’’ कामिनी शोखी से मुसकराई.

‘‘शौक से. जल्द ही फोन करूंगा बताने को कि कब आ रहा हूं.’’

‘‘बताने को ही क्यों, वैसे फोन नहीं कर सकते क्या?’’ कामिनी इठलाई. आज उस ने मानसी को साथ लाने का आग्रह नहीं किया. विशाल वापस आने के लिए रात 10 बजे की फ्लाइट में बैठ गया.

मानसी उसे लेने एअरपोर्ट आई हुई थी. बातचीत के क्रम में बोली, ‘‘यह सोच कर आ गई कि घर पहुंच कर तो तुम सोने की जल्दी में होगे सो ठीक से बताओगे नहीं कि समधियाना कैसा लगा? राहुल ने बताया कि तुम आज भी वहां गए थे.’’

‘‘जाना पड़ा मानसी, राहुल के बौस की बीवी फोन पर अपनी मां को न जाने क्या कहती रहती है. सर्राफ साहब टूर पर थे मगर फिर भी बेटी की जिद पर कामिनी ने अपने भतीजे और बहू को बुला कर मेरी खातिर करवाई. आज भी उस का कहना था कि उस के दामाद ने कहा है कि मुझे रेलवे क्लब दिखाए. मेरे कहने पर कि वह मैं ने देखा हुआ है, बोली, फिर भी आ जाइए, नहीं तो मेरा दामाद कहेगा कि मैं ने ठीक से बुलाया नहीं. क्लब तो खैर नहीं गया लेकिन एअरपोर्ट आते हुए कुछ देर के लिए घर चला गया था,’’ उसे स्वयं आश्चर्य हुआ कि वह किस सफाई से झूठ बोल रहा था. कामिनी के साथ कुछ देर नहीं 2 घंटे से ज्यादा रुका था, ‘‘अरे हां, राहुल की फैक्टरी की तसवीरें देखीं. बहुत बड़ी फैक्टरी है. कालोनी, क्लब वगैरह भी अच्छा है, राहुल की सेहत भी ठीक ही लग रही थी…’’

‘‘यानी उन लोगों को राहुल की तसवीर भी भेज दी गई. तुम्हें लड़की की फोटो दिखाई?’’

‘‘खासतौर पर तो नहीं लेकिन क्लब में राहुल का बौस, बीवी और साली के साथ था. ड्राइंगरूम में भी परिवार के सभी सदस्यों की तसवीरें रखी हुई थीं.’’

‘‘ड्राइंगरूम कैसा है?’’

‘‘बढि़या. जैसा रेलवे के चीफ इंजीनियर का होना चाहिए यानी बंगला भी और बीवी भी,’’ विशाल ने कहा और फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘बढि़या क्या, अच्छा भी न होता तो भी राहुल की पसंद के आगे हम क्या कहते, मानसी, सो, जो है ठीक ही है.’’

‘‘ऐसी बात है तो लड़की की तसवीर तो ले आते.’’

‘‘इस तरह की, मेरा मतलब है रिश्ते वाली, कोई बात ही नहीं की कामिनीजी ने तो मैं पहल कैसे करता?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. वैसे अकेली औरत रिश्तेदारों के सामने यह बात करती भी कैसे?’’

‘‘तभी अगली बार तुम्हें भी जयपुर साथ लाने का आग्रह कर रही थीं.’’

‘‘मैं तो जब लड़की वहां आएगी तभी जाऊंगी. तुम्हें भी बारबार नहीं जाना चाहिए, ताकि समधियाने में दोस्ताना नहीं औपचारिकता बनी रहे.’’

विशाल क्या बताता कि समधियाना बनने से पहले ही दोस्ताना बन चुका था और उसे पुख्ता करने को वह तो अकसर वहां जाया करेगा.

कामिनी से अकसर रोज ही मोबाइल पर बात होने लगी, इस से पहले कि कामिनी उस से आने का आग्रह करती या विशाल स्वयं ही जाने की जुगाड़ भिड़ाता, कामिनी ने बताया, ‘‘हम लोग बच्चों के पास जा रहे हैं, प्रेम को बेटियों की बहुत याद आ रही है, निक्की को तो ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी मिलेगी नहीं और अर्पि उसे अकेली नहीं छोड़ सकती, सो हम ही जा रहे हैं.’’

‘‘कितने रोज को?’’

‘‘अभी तो 3 सप्ताह का प्रोग्राम है, बच्चों ने रोका तो छुट्टी बढ़ा भी

सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, आप के लौटने के बाद ही जयपुर का टूर बनाऊंगा. फोन पर तो खैर बात होगी ही.’’

‘‘वह तो होगी ही, मगर आप भी वहां क्यों नहीं आ जाते बेटे से मिलने?’’

विशाल फड़क उठा, ‘‘क्या कमाल का आइडिया है, कामिनीजी. मानसी तो उछल पड़ेगी सुन कर लेकिन राहुल से पूछना पड़ेगा कि उस के पास हमें ठहराने की सुविधा है या नहीं?’’

‘‘उस की फिक्र मत करिए, सलिल से कह कर मैं आप के लिए कंपनी के गैस्टहाउस में बढि़या इंतजाम करवा दूंगी. आप बस पहुंचिए वहां इस सप्ताहांत तक.’’

मानसी सुन कर खुश तो बहुत हुई लेकिन शंका भी जतला दी, ‘‘राहुल तो अभी ट्रेनीज हौस्टल में रहता है, हमें कहां रखेगा?’’

‘‘उस की फिक्र मत करो, उस का बौस है न सलिल मेहरा, वह कंपनी के गैस्टहाउस में हमारी व्यवस्था करवा देगा.’’

मानसी ने चौंक कर विशाल की ओर देखा, ‘‘कभी किसी का, खासकर औफिस के लोगों और रिश्तेदारों का एहसान न लेने वाले तुम राहुल के बौस का एहसान लेने को कहोगे?’’

आगे पढ़ें- विशाल सिटपिटा गया, ‘‘एहसान कैसा? कंपनी का…

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