विशाल सिटपिटा गया, ‘‘एहसान कैसा? कंपनी का गैस्टहाउस है, सलिल का निजी बंगला नहीं, फिर भी तुम्हें पसंद नहीं है तो जाने दो,’’ विशाल ने मायूसी से कहा, ‘‘राहुल को देखने को बहुत ही दिल कर रहा है, इसीलिए कह रहा था.’’
मानसी पिघल गई, ‘‘राहुल से पूछो, वह क्या कहता है.’’
‘‘ठीक है, शाम को बात करेंगे.’’
लेकिन राहुल से पहले विशाल ने कामिनी से बात की.
‘‘अरे वाह, आप के उसूलों का ही आईना दिखा दिया मानसीजी ने आप को,’’ कामिनी हंसी.
‘‘बेशक, लेकिन मुझे आजकल सब आईनों में आप का ही अक्स नजर आता है.’’
‘‘अच्छा,’’ कामिनी ने आह भर कर कहा, ‘‘हमें तो आईने की जरूरत भी नहीं पड़ती.’’
‘‘मगर मेरा काम अब तसव्वुर से नहीं चलता, रूबरू होने की तदबीर करो कुछ.’’
‘‘इतनी अच्छी तरकीब सुझाई तो थी. प्रेम तो वहां जा कर जीभर कर सोएंगे और मैं आप को गोल्फ, बिलियर्ड या ऐसे ही और किसी खेल में जिस में मानसीजी की दिलचस्पी न हो, अपना साथ देने के लिए बुला सकती हूं.’’
‘‘मानसी को किसी खेल में दिलचस्पी नहीं है, सुबह की सैर में भी नहीं. वह तो देर तक सोने में खुश रहती है.’’
‘‘अरे, मजा आ गया फिर तो, क्योंकि वहां कालोनी में सैर करने के लिए सुनसान रास्ते, हरेभरे पेड़ों के झुरमुट और एकदम रूमानी माहौल है.’’
‘‘मगर राहुल को भी अगर मानसी की बात सही लगी तो?’’
‘‘राहुल से अभी बात ही मत करो. मैं वहां जा कर राहुल से आप लोगों को बुलाने को कहूंगी और सलिल से आप के रहने का इंतजाम करवाने को.’’
‘‘क्या कमाल का आइडिया है, आप जा कब रही हैं?’’
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