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कैंपस सिलैक्शन में राहुल का चयन गुजरात की एक बहुत बड़ी कैमिकल ऐंड फर्टिलाइजर फैक्टरी में हो गया था. फैक्टरी की अपनी आवासीय कालोनी थी, मनोरंजन के सभी साधन थे, शहर जाने के लिए फैक्टरी की गाडि़यां थीं, कुछ लोगों से दोस्ती भी हो गई थी, फिर भी अभी राहुल का दिल नहीं लग रहा था. लेकिन कुछ सप्ताह से आवाज में मायूसी के बजाय उत्साह झलकने लगा था.

एक शाम यह सुन कर विशाल और मानसी ने राहत की सांस ली कि अगली सुबह विशाल टूर पर जयपुर जा रहा था. राहुल ने चहक कर कहा, ‘‘सच पापा, मजा आ गया.’’

‘‘जयपुर मैं जा रहा हूं, मजा तुझे किस खुशी में आ गया, भई?’’ विशाल ने चौंक कर पूछा.

‘‘अब क्या बताऊं पापा, आप फोन कौन्फ्रैंस मोड पर लगा दीजिए ताकि मम्मी भी सुन लें.’’

‘‘फोन कौन्फ्रैंस मोड पर ही है, बोल क्या सुना रहा है मुझे,’’ मानसी ने उतावलेपन में कहा.

‘‘मेरे बौस हैं न सलिल मेहरा, उन की ससुराल है जयपुर में, उन की साली भी मेरे साथ ही ट्रेनिंग ले रही है. सो, सलिल साहब के घर पर आनाजाना हो गया है. यह सुन कर कि पापा टूर पर जयपुर जाते रहते हैं, अर्पिता दीदी, मेरा मतलब है श्रीमती मेहरा ने कहा कि अब जब जाएं तो बताना, मम्मीपापा से कहूंगी उन से मिलने को. मैं उन को आप का मोबाइल नंबर दे देता हूं. प्रेम सर्राफ आप को फोन कर लेंगे, वे मेरे बौस के ससुर हैं, पापा.’’

 

‘‘सीधे से कह न, मेरे होने वाले ससुर हैं...’’

‘‘आप भी न पापा...’’ और राहुल ने फोन काट दिया.

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