जीवन सारा सिसक रहा है,
देखो नेता चहक रहा है।
नहीं खाली कोई शमशाना,
भर गए सब कब्रिस्ताना।
जनकवि कोरोनादास कहते हैं
सारा जीवन ही सिसक रहा है।
हर एक दिशा में दर्द मार्केट में बिक रहा है।
इन सिसकियों के बीच ही नेता
अपने वोटों की फसल को देखकर
चहक रहा है।
होटल में जीवन महक रहा है।
नेता लोग खेलत खेला,
लगा शवों का बड़ा झमेला।
अस्पताल सब हुए कोरोना,
हवा-दवा का रोना-धोना।
हर जगह शव बसरे पड़े हैं।
गलियों में, चौबारे में! बागों में, बहारों में!
मैं आऊं, आजा... गीत शव गा रहे हैं।
अस्पतालों को खुद कोरोना हो गया है। अस्पताल खुद वेंटिलेटर पर पड़े तड़पड़ा रहे हैं। दवा की काली-पीली लाल-बाजारी चल रही है।
प्राण वायु की बड़ी मारामारी चल रही है।
नेता लोग अपना खेला खेल रहे हैं
जनता पर झमेला पेल रहे हैं।
बजटाती गीत कोरोना गाए,
बात-बात में बजट बढ़ाते जाए।
हवा-दवा दलाल कुटते पैसा,
मरण-मसान खेलते भैसा
बीते माह साल भर रीते,
नां ही रागिनी नां ही गीते।
तड़प सिसकता जीवन सारा,
प्राण हुआ कोरोना मारा।
--- रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर (305023) राजस्थान
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