लेखक- देवेंद्र गौतम

भारत कभी कृषि प्रधान देश हुआ करत था.आजकल यह एक भक्तिप्रधान देश बन चुका है. यहां हर तरह के भगवानों के लिए पर्याप्त संख्या में भक्त रहते हैं.जो चाहे जितने भक्तों को दीक्षित कर ले. खुली छूट है.एक आदर्श भक्त हमेशा आंख का अंधा,जुबान का गूंगा और कान का बहरा होता है. गांधी के तीन बंदरों की तरह. उसकी ज्ञानेंद्रियां वही करती हैं जो उसके भगवान चाहते हैं. एकदम रोबोट की तरह. जिसके पास देखने वाली आंख हों वह कभी किसी का भक्त नहीं हो सकता. आंखवाले सकारत्मकता के साथ नकारात्मकता भी देखते लगते हैं.वे पौराणिक काल के देवताओं के की भी गलतियां ढूंढ लेते हैं और वर्तमान काल के दैत्यों में भी खूबियां तलाश लेते हैं.अभिव्यक्ति के नाम पर दिनभर टीका-टिप्पणी करते रहते हैं.

अंधभक्त जिसे अपना आराध्य मान लेता है कभी उसकी कमियां नहीं देखता. उसके मन की बगिया में हमेशा वसंत का मौसम रहता है. कभी पतझड़ नहीं आता. हमेशा सावन की घटाएं छाई रहती हैं.आजकल भक्तों की एक हाईटेक जमात का उद्भव हुआ है. पहले के भक्तों की हाजरी हमेशा अपने आराध्य की दहलीज़ पर,उसकी मूर्ति या उसकी तस्वीर पर बनती थी.वह उसकी आरती उतारता था. उसकी पसंद के भोग चढ़ाता था. उसके नाम का जाप किया करता था. उसे भांति-भांति से प्रसन्न करने की कोशिश करता था. वरदान लिए बिना नहीं मानता था.ऐसे सनातन भक्त आज भी भारत में तो थोकभाव में हैं. जीवित भगवानों की भी कमी नहीं है. वे धर्म के चोले में भी पे जाते हैं और राजनीति के चोले में भी मौजूद हैं.

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