‘‘क्या यहां ओस्लो में काफी भारतीय हैं?’’
‘‘नहीं पापा. यहां इंडियन बहुत कम हैं.’’
‘‘नौर्वे के लोगों के अलावा यहां और कौनकौन लोग हैं?’’
‘‘पोलैंड के काफी लोग हैं. इस के अलावा सीरिया, इराक, सूडान, फिलिस्तीन के लोग हैं. ये यहां शरणार्थी हैं. बाकी पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका के लोग हैं जो ज्यादातर यहां काम करने आए हैं. कइयों ने यहां की नागरिकता भी ले ली है. मेरी कंपनी में 70 लोग हैं जिन में भारतीय सिर्फ 4 हैं.’’
‘‘यानी यहां मुसलमान भी हैं,’’ आशा ने चौंक कर पूछा.
अभिषेक फिर हंस पड़ा. काफी बड़ी संख्या में हैं. पाकिस्तान, बंगलादेश के तो हैं ही, सीरिया, इराक, सूडान, फिलिस्तीन के भी तो मुसलमान ही हैं.’’
‘‘लेकिन तुम्हारे दोस्त तो भारतीय ही होंगे न?’’ मैं ने पूछा.
‘‘मेरे क्लोज फ्रैंड्स में विश्वनाथन है जो केरल से है. इस के अलावा वाहिद व अली हैं जो पाकिस्तान से हैं.’’
‘‘तुम्हें मुसलमान ही मिले थे. नौर्वे के लोगों से दोस्ती नहीं कर सकते थे?’’ आशा ने कहा.
‘‘यूरोपियन खासकर नौर्वेजियन दूसरों से दोस्ती करना कम पसंद करते हैं. सिर्फ परिचय रखना पसंद करते हैं.’’
‘‘चलो बेटा, ठीक है. विदेश तो विदेश ही है. कोई अपना देश तो है नहीं,’’ आशा ने ठंडी सांस ली.
तभी अभिषेक ने उठने का इशारा किया. शायद हमारा स्टौप आ रहा था. हम गेट पर आ गए. बस रुक गई. हम नीचे उतरे. चालक ने आ कर हमारी अटैचियां उतारीं. हम पहियों पर अटैचियों को चलाते हुए कालोनी की रोड पर चले. कालोनी देख कर मेरी तबीयत प्रसन्न हो गई. कालोनी के बीचोंबीच एक खूब बड़ा हराभरा मैदान था जिस में भी करीने से कटी हुई घास लगी थी. इस के किनारेकिनारे क्यारियां बनी थीं जिन में रंगबिरंगे फूल लगे थे. घास के मैदान के 3 तरफ तिमंजिले ब्लौक बने थे.