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आखिरकार एक दिन रीना को तेज दर्द उठा. आशा के अनुसार यह प्रसव का दर्द था. टैक्सी ले कर हम सभी अस्पताल पहुंचे. रीना को तुरंत ऐडमिट कर लिया गया. पर रीना का बीपी काफी हाई था. डाक्टर भी चिंतित हुए. रीना का दर्द एक घंटे में खत्म हो गया. डाक्टरों के अनुसार, डिलिवरी में अभी 2-3 दिन थे पर रीना को लगातार मैडिकल केयर की आवश्यकता थी. सो, उन्होंने रीना को अस्पताल में ही रखने का निश्चय किया.

अब असली परेशानी थी हौस्पिटल का घर से दूर होना. हौस्पिटल आने के लिए ट्राम व बस बदल कर आना पड़ता था. मेरे लिए अकेले घर पहुंचना संभव नहीं था. बसस्टौप व ट्रामस्टौप सभी नौर्वेजियन भाषा में लिखे होते थे. उद्घोषणा भी उसी में होती थी. अगर मैं भटक गया तो आशा के साथ गुम हो सकता था.

ऐसे समय में वाहिद व अली खूब काम आए. एक दिन वाहिद छुट्टी लेता था तो एक दिन अली. अभिषेक लगातार काम पर जाता रहा. खाना तो अली की पत्नी निशा ही बना कर भेजती रही. हमें अस्पताल पहुंचाने व लाने का काम वाहिद और अली करते रहे. सुबह वाहिद या अली घर आ जाते थे. तब तक आशा नाश्ता इत्यादि बना लेती थी. वे हमें अस्पताल ले कर आते थे व फिर एकाध घंटे के लिए औफिस चले जाते थे.

दिन का खाना निशा ले कर आती थी. शाम को अभिषेक, वाहिद, अली तीनों आ जाते थे. वाहिद अभिषेक का खाना ले कर आता था जिसे अंजुम बनाती थी. फिर वाहिद व अली हम लोगों को घर पहुंचा कर अपने घर जाते थे. अभिषेक रात में अस्पताल में रहता था व रीना को अस्पताल से ही संतुलित भोजन मिलता था.

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