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सुधा ने अपने दोमंजिले से नीचे उतरती नई किराएदारिन पर एक नजर डाली. लंबी, छरहरी, गुलाबी रंगत लिए गोरी काया, कजरारी आंखें, चौड़े माथे पर नन्ही सी मैरून रंग की बिंदी, कमर तक लहराते बालों से अभी भी पानी टपक रहा था.

सुधा को अपनी तरफ देखते हुए रीना सकुचा कर बोली, “दीदी नमस्ते, आज सुबह उठने में देर हो गई. कल अस्पताल में 4 डिलीवरी थीं. मैं बहुत थक गई थी.”

“अरे, गीले बालों को तो सुखा लेती, एक ड्रायर ले कर रख लो.”“आ कर आप से मिलते हूं दीदी,” रीना तेजी से गेट खोल कर बाहर निकल गई. बाहर वही मोटरसाइकिल सवार खड़ा था. रीना उस के पीछे लपक कर बैठ गई.

“सुनोजी, ये रीना आप को विधवा लगती हैं क्या? ये मोटरसाइकिल वाला रोज ही इसे लेने व छोड़ने आता है. ये तो अस्पताल में होती हैं, पर ये महाशय तो  सिलेंडर, सब्जी, घरेलू सामान ला कर रख जाता है. एक चाभी इस को भी दे रखी है इस ने,” सुधा शंकित हो अपने पति विराज से बोली.

“उसी से खुल कर पूछ लो एक दिन. उस की विधवा होने और 2 छोटे बेटे गांव में रखने की कहानी तो उस से सुन ही चुकी हो, तब तुम्हें बड़ा तरस आ रहा था. अब क्या हुआ?” विराज ने चिढ़ाते हुए कहा.

सुधा जानती थी कि रीना को कम किराए पर वन रूम सेट देने के कारण ही उस के कंजूस पति उस से  नाराज हैं. उस ने पलट कर कुछ नहीं कहा और सोचा रीना को समझा देगी कि उसे इस पुरुष का बेरोकटोक घर पर आना पसंद नहीं. भले ही वह रीना का रिश्तेदार ही क्यों न हो.

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