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कुछ दिनों के बाद रीना चहकते हुए आई, “ दीदी देखो क्या खरीदा?”सुधा ने देखा कि उस के हाथ में लाल रंग की रेशमी पोटली थी. उस ने उस के अंदर से प्लास्टिक की डिबिया निकाली. उस में सोने के चमचमाते हुए झुमके निकाले.

“दीदी, पिछले 2 महीनों से ओवरटाइम कर के पैसे बचाए हैं और लोग जो बच्चे पैदा होने पर निछावर भी दे  जाते हैं, वो सब जोड़ कर खरीदे हैं.

"दीदी, ऐसे ही झुमके थे मेरी शादी के. मेरा पति जुए में हार गया था. मेरे सारे जेवर उस की बुरी आदतों की भेंट चढ़ गए,” उस ने झुमकी हाथ में ले कर हिलाई. झुमकी की चमक उस की आंखों में झिलमिला गई.

“तुम्हारी मेहनत की कमाई है. बधाई हो तुम को,” सुधा ने उस की खुशी में शामिल होते हुए कहा.“थैंक यू दीदी, आप की तरह डाक्टरनीजी भी बहुत अच्छी हैं. मैं ने भी मेहनत कर बहुत काम सीख लिए हैं. बहुत बड़ा नर्सिंगहोम है. बड़ीबड़ी कार में लोग बच्चे पैदा कराने को आते हैं. हम लोगों को भी खूब मिठाई, रुपया बांट कर जाते हैं. कुछ लोग बचे फल, बिसकुट भी घर नहीं ले जाते, वहीं दे जाते हैं. डाक्टरनीजी हम से कहती हैं, ‘ये तुम्हारा रुपया है. खुद रखो, किसी से मांगना नहीं. कोई अपनी खुशी से दे तो कोई हर्ज नहीं’. किसी दिन इतनी मिठाई खा लेती हूं कि रात को खाना ही नहीं बनाती,” उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

“किसी दिन तुम्हारी डाक्टरनीजी से भी मिलने चलूंगी,” सुधा ने उस का मन टटोलना चाहा. “अरे दीदी, आप को अपने पीछे स्कूटी पर बैठा कर ले जाऊंगी,” कह कर वह जोरों से खिलखिलाई. आज उस की खुशी छलकी पड़ रही थी.

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