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सुधा ने कुरसी पर बैठते हुए पूरे कमरे का मुआयना कर लिया. डबल बेड और 2 प्लास्टिक की कुरसियां, एक मेज, फ्रिज, छोटा कूलर, गैस चूल्हा और थोड़े से बरतन. बस इतनी सी गृहस्थी, उस ने छोटे से कमरे में सुरुचिपूर्ण ढंग से रखी हुई थीं. सभी वस्तुएं साफ और व्यवस्थित थीं.

सुधा को थोड़ी तसल्ली हुई. वे सोच कर आई थीं कि अगर उस ने चायपानी को पूछा तो कह देंगी कि वे अभी नीचे से नाश्ता कर के ही आई हैं. “ दीदी चाय बना दूं?” रीना ने पूछा.

“ नहीं, अभी नहीं. मैं ने तुम को डिस्टर्ब तो नहीं किया,” सुधा ने औपचारिकता में पूछा. “नहीं दीदी, आज फुरसत है. सुबह ही उठ कर मैं ने इडलीसांभर बना दिया है. अब आराम हो गया दिनभर के खाने का. मैं तो खुद नीचे आने वाली थी आप को देने के लिए. अभी खिलाऊंगी आप को,” उस के बच्चों जैसे निर्दोष चेहरे को देख सुधा को अपने ऊपर कोफ्त हुई कि वे उसे खूनी समझ कर शक करती हैं.

“तुम्हारे पति की अचानक ही मौत कैसे हो गई?” सुधा पूछे बिना रह न सकी. “दीदी, आप से क्या छुपाना. सच तो यह है कि जब तक मैं गावं में थी, सुकून से थी. मेरा पति 15-20 दिन में गावं के चक्कर लगा जाता. महीने में 4-5 हजार रुपए दे भी जाता था. यहां आ कर जब रहने लगी तो पता चला कि वे नशे में डूबे रहते हैं. इसी वजह से उन्हें दिन की ही ड्यूटी मिलती थी.

"महेश भी मेरे पति के संग ड्राइवर था. महेश की पत्नी प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं. हमारी तरह ही कमउम्र में महेश की भी शादी हो गई थी. "उस समय महेश 12वीं में और उस की पत्नी 10 वीं का पेपर दे रहे थे. महेश ने 12वीं के बाद गांव में पढ़ाई छोड़ दी और शहर में ड्राइवरी सीख अपना काम  पकड़ लिया.

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