यात्रा के दौरान जौन मैसी व रोजलीन दंपती को 10-12 वर्ष की खून से लथपथ एक बच्ची मिली. बच्ची की देखभाल के दौरान रोजलीन को बच्ची के साथ बलात्कार होने व उस के गर्भवती होने का पता चला. 9 महीने बाद बच्ची ने एक नन्ही जान को जन्म दिया और होश में आने पर बच्ची द्वारा दी जानकारी के आधार पर जौन मैसी बच्ची के मातापिता को ढूंढ़ने के लिए मिर्जापुर के लिए रवाना हो गए. पढि़ए शेष भाग.
सुबह 5 बजे दरवाजे की घंटी सुन उन्हें घबराहट हुई. ‘इतनी सुबह कौन हो सकता है?’ कहते हुए जस्टिस विद्यासागर ने दरवाजे को लैच लगा कर झांका था. बाहर 3-4 अजनबी चेहरों को देख कर उन्हें खीझ हुई. ‘क्या बात है? आप मेरे चैंबर में मिलें, मैं घर पर किसी से नहीं मिलता हूं.’
‘हम पुलिस विभाग से हैं. आप की बच्ची भार्गवी...’ इतना सुनते ही जस्टिस विद्यासागर ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोल दिया था.
‘माफ कीजिएगा, सादे कपड़ों में मैं आप लोगों को पहचान नहीं पाया. क्या हमारी बच्ची की कोई खबर मिली?’
‘जी हां, हम रेणुकूट से आए हैं. आप को हमारे साथ चलना होगा. बच्ची इन की देखरेख में है,’ कहते हुए पुलिस वाले ने पीछे खड़े मिस्टर मैसी की ओर इशारा किया था.
‘आप लोग अंदर आइए. बैठिए. मैं...मैं अपने बेटे को बुलाता हूं,’ लड़खड़ाती आवाज में कह कर जस्टिस विद्यासागर बौराए से इधरउधर हो रहे थे और फिर फोन उठा कर नंबर घुमाने लगे. ‘कपिल... कपिल, जल्दी आ जाओ, पुलिस वाले आए हैं...भार्गवी...’ कहतेकहते उन का गला भर्रा गया.
‘आप की बच्ची भार्गवी की खबर है, आप जल्दी आ जाओ,’ पुलिस वाले ने उन के हाथ से चोंगा ले कर बात पूरी की. जस्टिस कुछ कहतेकहते रुक गए और बेंत की कुरसी पर बैठ कर कुरते से ही आंखें पोंछने लगे.
‘मुझ से नाराज हैं सब, अभी 2 महीने पहले ही यहां से गए हैं. क्या करूं, नौकरी ही ऐसी है. बड़ेबड़े अपराधियों से वास्ता पड़ता है. पहले सिर्फ धमकी मिलती थी लेकिन इस बार तो उन्होंने कर ही दिखाया. बच्ची का अपहरण हुए 8-9 महीने हो गए. कैदी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलवा लिया लेकिन मेरा घर तो बरबाद हो गया.’
यह सुनते ही पुलिस वालों के कान खड़े हो गए, ‘क्या आप को अपहरणकर्ताओं का पता था?’
‘दावे के साथ तो नहीं कह सकता पर शक के बिना पर क्या कर सकते थे. सुबूत कोई मिला नहीं. मेरी पत्नी सदमे में चल बसी. बच्चों ने नौकरी से त्यागपत्र देने पर जोर डाला. लेकिन ऐसे डर कर भागने से तो उन के हौसले और बुलंद होते. इसलिए नाराज हो कर मेरे बच्चों ने ही घर छोड़ दिया. एक ने दूसरे शहर में तबादला करा लिया और दूसरा सपरिवार विदेश
चला गया,’ कहतेकहते वे खड़े हो गए, ‘बच्ची...जीवित...है. आप लोगों को कहां मिली?’ उन की भारीभरकम कांपती हुई आवाज बीचबीच में रुक जाती थी, ‘हम ने कहांकहां नहीं ढूंढ़ा? कैसी है मेरी लाड़ली?’ जस्टिस विद्यासागर के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित खुशी जैसे भाव आजा रहे थे कि अचानक वे रोने लगे.
मिस्टर मैसी ने सहारा दे कर उन्हें बैठाया. सांत्वना के लिए उन के पास शब्द नहीं थे लेकिन एक 65-70 वर्ष के बुजुर्ग को इस तरह रोते देख उन का दिल भर गया.
‘देखिए, इतनी बड़ी आलीशान कोठी कैसे भायंभायं करती है. 8-10 महीनों से बाहर बगीचे की कोई कटाईछंटाई नहीं हुई है. बच्चों ने नौकर, माली, ड्राइवर सब की छुट्टी कर दी. किस पर विश्वास करें, किस पर न करें. फिर घर का माहौल ही ऐसा कहां रहा कि साजसजावट पर कोई ध्यान देता.’
‘अब सब ठीक हो जाएगा. हम ने आप की गुडि़या को बड़े प्यारदुलार से रखा है. उस के आते ही आप के यहां रौनक लौट आएगी,’ मिस्टर मैसी ने उन की जिंदगी से भी ज्यादा उदास उस कोठी की दीवारों पर नजर घुमाते हुए उन्हें आश्वासन दिया.
‘आप लोग चायनाश्ता ले कर आराम से बैठें, मेरे बेटेबहू को अंबाला से आने में थोड़ा वक्त लगेगा,’ कह कर चंदू, चंदू, पुकारते हुए वहां से निकल रसोई की ओर बढ़ने लगे. तभी फोन की घंटी बजने लगी और उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.
‘हैलो, हैलो, भरत, हमारी, भार्गवी मिल गई, पुलिस खबर ले कर आई है. अभी कपिल पहुंचने ही वाला है. फिर हम सब उसे लेने जाएंगे. भरत...तू भी आ जा...’ जस्टिस विद्यासागर भावुक हो कर एक बार फिर रो पड़े थे.
मिस्टर मैसी को उन के बच्चों पर क्रोध आ रहा था. कैसे बच्चे हैं...इतने बड़े हादसे के बाद एक बुजुर्ग को अकेला छोड़ दिया. जो व्यक्ति खुशी को भी बरदाश्त नहीं कर पा रहा है वह अकेलेपन से कैसे लड़ रहा होगा? उन से फोन ले कर इस बार मैसी ने बात पूरी की और थोड़ी देर बाद फोन करने को कह कर रिसीवर रख दिया.
‘दूर विदेश में रहता है लेकिन रोज सवेरे फोन कर मेरा हालचाल पूछता है,’ उस की ओर से सफाई पेश करते हुए जस्टिस कुछ सोचने लगे थे.
‘क्या कुछ घट गया इन 8-10 महीनों में? खैर, अब मैं वहां जा कर पत्नी को शक्ल तो दिखा सकता हूं,’ आसमान की ओर देखते हुए वह अपनेआप से बोलते जा रहे थे.
इस बार मौसम ने अपने तेवर बदले हुए थे. पिछले डेढ़एक महीने से लगातार बरसात की झड़ी लगी रहती थी. देखतेदेखते अस्पताल के चारों ओर दूरदूर तक हरियाली फैल गई थी. भार्गवी अपने पलंग पर बैठी खिड़की के बाहर का नजारा देखती और जब थोड़े मूड में होती तो वह अपने घर के बागबगीचे के बारे में बताती और तुलना करती. बाहर बरामदे की मुंडेर पर भीगे पंख फड़फड़ाते कबूतरों को देख कर अपने तोते के बारे में पूछती.
डाक्टर और रोजलीन से अब वह खुलने लगी थी, ‘मुझे चोट कैसे लगी? मैं कहां से गिर गई थी?’ एक दिन उस ने अपने जख्मों को देखने की जिद पकड़ ली और डाक्टरों को उस के सवालों का जवाब देने में काफी दिक्कत आई. इस नाजुक प्रकरण पर अस्पताल के स्टाफ ने बहुत सावधानी बरती थी. लेकिन ‘दीवारों के भी कान होते हैं’ यह कहावत यों ही तो नहीं बन गई.
छोटे शहर में लोग अकसर एकदूसरे को जानतेपहचानते थे. उन्हें किसी के यहां नए मेहमान आने की खबर नहीं थी फिर इस अस्पताल में कहां से कौन मरीज आई है? किस की यहां पर जचगी हुई है? धीरेधीरे लोगों में कानाफूसी भी हुई और 1-2 लोगों ने एक कदम आगे बढ़ कर गोद लेने की इच्छा भी व्यक्त कर दी. ‘सिस्टर रोजलीन मैसी की रिश्तेदार आई है. उन के यहां खुशखबरी है,’ कह कर बड़े डाक्टर ने लोगों की जिज्ञासा शांत कर दी थी. उन्हें विश्वास था कि 1-2 दिन में भार्गवी के परिवारजन पहुंच जाएंगे और लोगों को आगे बात करने का कोई मौका नहीं मिलेगा.
दूसरी ओर, 15 दिनों की नवजात बच्ची दुनिया के अजीबोगरीब हालात से बेखबर अधिकतर पालने में सोई रहती और भूख लगने पर सिस्टर उपासी की छाती से लग मुंह रगड़ने लगती.
‘डाक्टर, अपने बेटे को 8 महीने दूध पिला कर भी ऐसी अनुभूति नहीं होती है जैसी कि इस नन्ही के होंठ लगने पर होती है,’ कैसी विडंबना थी, किस का खून है? कौन था वह बलात्कारी? मां एक छोटी सी मासूम, जिसे पता ही नहीं कि उस के शरीर का एक अंश उस के बिलकुल पास हो कर भी दूर, अलगअलग उधार ली गई गोद में पल रहा है.
उन का चायनाश्ता खत्म होने से पहले ही बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. अपनी बच्ची के खोने और मिलने की आधीअधूरी कहानी
सुन कपिल, तरुणा के साथ जस्टिस विद्यासागर भी साथ चलने को तैयार बैठे थे. मिस्टर मैसी ने बच्ची की चोट और लंबी बेहोशी की बात तो बता दी लेकिन उस से बड़ा हादसा जो बच्ची के साथ घट चुका था उसे अभी से बता कर वह कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे. अस्पताल पहुंच कर डाक्टर और रोजलीन अपनेआप संभाल लेंगे, ऐसा उन का विश्वास था.
अस्पताल में भी अचानक सब को एकसाथ बच्ची के पास जाना ठीक नहीं, बच्ची इतने बड़े औपरेशन के बाद अभी भी नाजुक हालत में थी. कहीं मातापिता को देख कर बेकाबू होे जाए या ये लोग ही अचानक उसे खींच कर गोद में उठा लें, इसलिए पहले उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाना ही तय हुआ.
रोजलीन के साथ एक डाक्टर को भी वहां बुलाया गया. उन से परिचय करवाते हुए तरुणा की आंखें इधरउधर भटक रही थीं. उसे उम्मीद थी कि वे बच्ची को साथ ले कर आई होंगी. पुलिस ने मैसी दंपती को बच्ची मिलने की सारी कहानी बताते हुए फाइल खोल कर उन्हें बेहोशी की हालत में जख्मी मिली बच्ची की कुछ तसवीरें, स्थानीय अखबार में छपी कटिंग, उस के 9 महीने बाद होश में आई बच्ची की कई तसवीरें उन के सामने रख दीं, जिन्हें देखते ही तरुणा सिसकियां भर कर रोने लगी.
‘देखिए, आप लोगों को बड़े धैर्य से काम लेना होगा. बच्ची के साथ अपहरण से भी बड़ी दुर्घटना हुई है,’ कहतेकहते डाक्टर ने पतिपत्नी को चौंका दिया. ‘बच्ची की हालत में सुधार हो रहा है. 1-2 महीने में वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी लेकिन भविष्य में वह कभी मां नहीं बन पाएगी...उस का एक बड़ा औपरेशन कर बच्चेदानी निकाल दी गई है.’
‘क्यों? क्यों, डाक्टर?’ तरुणा अपना संयम खो चुकी थी. कपिल ने बड़ी मुश्किल से उसे पकड़ कर बैठाया और फिर रोजलीन के साथ डाक्टर ने भी
9 महीने में घटे पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताना शुरू किया.

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