यात्रा के दौरान जौन मैसी व रोजलीन दंपती को 10-12 वर्ष की खून से लथपथ एक बच्ची मिली. बच्ची की देखभाल के दौरान रोजलीन को बच्ची के साथ बलात्कार होने व उस के गर्भवती होने का पता चला. 9 महीने बाद बच्ची ने एक नन्ही जान को जन्म दिया और होश में आने पर बच्ची द्वारा दी जानकारी के आधार पर जौन मैसी बच्ची के मातापिता को ढूंढ़ने के लिए मिर्जापुर के लिए रवाना हो गए. पढि़ए शेष भाग.
सुबह 5 बजे दरवाजे की घंटी सुन उन्हें घबराहट हुई. ‘इतनी सुबह कौन हो सकता है?’ कहते हुए जस्टिस विद्यासागर ने दरवाजे को लैच लगा कर झांका था. बाहर 3-4 अजनबी चेहरों को देख कर उन्हें खीझ हुई. ‘क्या बात है? आप मेरे चैंबर में मिलें, मैं घर पर किसी से नहीं मिलता हूं.’
‘हम पुलिस विभाग से हैं. आप की बच्ची भार्गवी…’ इतना सुनते ही जस्टिस विद्यासागर ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोल दिया था.
‘माफ कीजिएगा, सादे कपड़ों में मैं आप लोगों को पहचान नहीं पाया. क्या हमारी बच्ची की कोई खबर मिली?’
‘जी हां, हम रेणुकूट से आए हैं. आप को हमारे साथ चलना होगा. बच्ची इन की देखरेख में है,’ कहते हुए पुलिस वाले ने पीछे खड़े मिस्टर मैसी की ओर इशारा किया था.
‘आप लोग अंदर आइए. बैठिए. मैं…मैं अपने बेटे को बुलाता हूं,’ लड़खड़ाती आवाज में कह कर जस्टिस विद्यासागर बौराए से इधरउधर हो रहे थे और फिर फोन उठा कर नंबर घुमाने लगे. ‘कपिल… कपिल, जल्दी आ जाओ, पुलिस वाले आए हैं…भार्गवी…’ कहतेकहते उन का गला भर्रा गया.
‘आप की बच्ची भार्गवी की खबर है, आप जल्दी आ जाओ,’ पुलिस वाले ने उन के हाथ से चोंगा ले कर बात पूरी की. जस्टिस कुछ कहतेकहते रुक गए और बेंत की कुरसी पर बैठ कर कुरते से ही आंखें पोंछने लगे.
‘मुझ से नाराज हैं सब, अभी 2 महीने पहले ही यहां से गए हैं. क्या करूं, नौकरी ही ऐसी है. बड़ेबड़े अपराधियों से वास्ता पड़ता है. पहले सिर्फ धमकी मिलती थी लेकिन इस बार तो उन्होंने कर ही दिखाया. बच्ची का अपहरण हुए 8-9 महीने हो गए. कैदी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलवा लिया लेकिन मेरा घर तो बरबाद हो गया.’
यह सुनते ही पुलिस वालों के कान खड़े हो गए, ‘क्या आप को अपहरणकर्ताओं का पता था?’
‘दावे के साथ तो नहीं कह सकता पर शक के बिना पर क्या कर सकते थे. सुबूत कोई मिला नहीं. मेरी पत्नी सदमे में चल बसी. बच्चों ने नौकरी से त्यागपत्र देने पर जोर डाला. लेकिन ऐसे डर कर भागने से तो उन के हौसले और बुलंद होते. इसलिए नाराज हो कर मेरे बच्चों ने ही घर छोड़ दिया. एक ने दूसरे शहर में तबादला करा लिया और दूसरा सपरिवार विदेश
चला गया,’ कहतेकहते वे खड़े हो गए, ‘बच्ची…जीवित…है. आप लोगों को कहां मिली?’ उन की भारीभरकम कांपती हुई आवाज बीचबीच में रुक जाती थी, ‘हम ने कहांकहां नहीं ढूंढ़ा? कैसी है मेरी लाड़ली?’ जस्टिस विद्यासागर के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित खुशी जैसे भाव आजा रहे थे कि अचानक वे रोने लगे.
मिस्टर मैसी ने सहारा दे कर उन्हें बैठाया. सांत्वना के लिए उन के पास शब्द नहीं थे लेकिन एक 65-70 वर्ष के बुजुर्ग को इस तरह रोते देख उन का दिल भर गया.
‘देखिए, इतनी बड़ी आलीशान कोठी कैसे भायंभायं करती है. 8-10 महीनों से बाहर बगीचे की कोई कटाईछंटाई नहीं हुई है. बच्चों ने नौकर, माली, ड्राइवर सब की छुट्टी कर दी. किस पर विश्वास करें, किस पर न करें. फिर घर का माहौल ही ऐसा कहां रहा कि साजसजावट पर कोई ध्यान देता.’
‘अब सब ठीक हो जाएगा. हम ने आप की गुडि़या को बड़े प्यारदुलार से रखा है. उस के आते ही आप के यहां रौनक लौट आएगी,’ मिस्टर मैसी ने उन की जिंदगी से भी ज्यादा उदास उस कोठी की दीवारों पर नजर घुमाते हुए उन्हें आश्वासन दिया.
‘आप लोग चायनाश्ता ले कर आराम से बैठें, मेरे बेटेबहू को अंबाला से आने में थोड़ा वक्त लगेगा,’ कह कर चंदू, चंदू, पुकारते हुए वहां से निकल रसोई की ओर बढ़ने लगे. तभी फोन की घंटी बजने लगी और उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.
‘हैलो, हैलो, भरत, हमारी, भार्गवी मिल गई, पुलिस खबर ले कर आई है. अभी कपिल पहुंचने ही वाला है. फिर हम सब उसे लेने जाएंगे. भरत…तू भी आ जा…’ जस्टिस विद्यासागर भावुक हो कर एक बार फिर रो पड़े थे.
मिस्टर मैसी को उन के बच्चों पर क्रोध आ रहा था. कैसे बच्चे हैं…इतने बड़े हादसे के बाद एक बुजुर्ग को अकेला छोड़ दिया. जो व्यक्ति खुशी को भी बरदाश्त नहीं कर पा रहा है वह अकेलेपन से कैसे लड़ रहा होगा? उन से फोन ले कर इस बार मैसी ने बात पूरी की और थोड़ी देर बाद फोन करने को कह कर रिसीवर रख दिया.
‘दूर विदेश में रहता है लेकिन रोज सवेरे फोन कर मेरा हालचाल पूछता है,’ उस की ओर से सफाई पेश करते हुए जस्टिस कुछ सोचने लगे थे.
‘क्या कुछ घट गया इन 8-10 महीनों में? खैर, अब मैं वहां जा कर पत्नी को शक्ल तो दिखा सकता हूं,’ आसमान की ओर देखते हुए वह अपनेआप से बोलते जा रहे थे.
इस बार मौसम ने अपने तेवर बदले हुए थे. पिछले डेढ़एक महीने से लगातार बरसात की झड़ी लगी रहती थी. देखतेदेखते अस्पताल के चारों ओर दूरदूर तक हरियाली फैल गई थी. भार्गवी अपने पलंग पर बैठी खिड़की के बाहर का नजारा देखती और जब थोड़े मूड में होती तो वह अपने घर के बागबगीचे के बारे में बताती और तुलना करती. बाहर बरामदे की मुंडेर पर भीगे पंख फड़फड़ाते कबूतरों को देख कर अपने तोते के बारे में पूछती.
डाक्टर और रोजलीन से अब वह खुलने लगी थी, ‘मुझे चोट कैसे लगी? मैं कहां से गिर गई थी?’ एक दिन उस ने अपने जख्मों को देखने की जिद पकड़ ली और डाक्टरों को उस के सवालों का जवाब देने में काफी दिक्कत आई. इस नाजुक प्रकरण पर अस्पताल के स्टाफ ने बहुत सावधानी बरती थी. लेकिन ‘दीवारों के भी कान होते हैं’ यह कहावत यों ही तो नहीं बन गई.
छोटे शहर में लोग अकसर एकदूसरे को जानतेपहचानते थे. उन्हें किसी के यहां नए मेहमान आने की खबर नहीं थी फिर इस अस्पताल में कहां से कौन मरीज आई है? किस की यहां पर जचगी हुई है? धीरेधीरे लोगों में कानाफूसी भी हुई और 1-2 लोगों ने एक कदम आगे बढ़ कर गोद लेने की इच्छा भी व्यक्त कर दी. ‘सिस्टर रोजलीन मैसी की रिश्तेदार आई है. उन के यहां खुशखबरी है,’ कह कर बड़े डाक्टर ने लोगों की जिज्ञासा शांत कर दी थी. उन्हें विश्वास था कि 1-2 दिन में भार्गवी के परिवारजन पहुंच जाएंगे और लोगों को आगे बात करने का कोई मौका नहीं मिलेगा.
दूसरी ओर, 15 दिनों की नवजात बच्ची दुनिया के अजीबोगरीब हालात से बेखबर अधिकतर पालने में सोई रहती और भूख लगने पर सिस्टर उपासी की छाती से लग मुंह रगड़ने लगती.
‘डाक्टर, अपने बेटे को 8 महीने दूध पिला कर भी ऐसी अनुभूति नहीं होती है जैसी कि इस नन्ही के होंठ लगने पर होती है,’ कैसी विडंबना थी, किस का खून है? कौन था वह बलात्कारी? मां एक छोटी सी मासूम, जिसे पता ही नहीं कि उस के शरीर का एक अंश उस के बिलकुल पास हो कर भी दूर, अलगअलग उधार ली गई गोद में पल रहा है.
उन का चायनाश्ता खत्म होने से पहले ही बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. अपनी बच्ची के खोने और मिलने की आधीअधूरी कहानी
सुन कपिल, तरुणा के साथ जस्टिस विद्यासागर भी साथ चलने को तैयार बैठे थे. मिस्टर मैसी ने बच्ची की चोट और लंबी बेहोशी की बात तो बता दी लेकिन उस से बड़ा हादसा जो बच्ची के साथ घट चुका था उसे अभी से बता कर वह कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे. अस्पताल पहुंच कर डाक्टर और रोजलीन अपनेआप संभाल लेंगे, ऐसा उन का विश्वास था.
अस्पताल में भी अचानक सब को एकसाथ बच्ची के पास जाना ठीक नहीं, बच्ची इतने बड़े औपरेशन के बाद अभी भी नाजुक हालत में थी. कहीं मातापिता को देख कर बेकाबू होे जाए या ये लोग ही अचानक उसे खींच कर गोद में उठा लें, इसलिए पहले उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाना ही तय हुआ.
रोजलीन के साथ एक डाक्टर को भी वहां बुलाया गया. उन से परिचय करवाते हुए तरुणा की आंखें इधरउधर भटक रही थीं. उसे उम्मीद थी कि वे बच्ची को साथ ले कर आई होंगी. पुलिस ने मैसी दंपती को बच्ची मिलने की सारी कहानी बताते हुए फाइल खोल कर उन्हें बेहोशी की हालत में जख्मी मिली बच्ची की कुछ तसवीरें, स्थानीय अखबार में छपी कटिंग, उस के 9 महीने बाद होश में आई बच्ची की कई तसवीरें उन के सामने रख दीं, जिन्हें देखते ही तरुणा सिसकियां भर कर रोने लगी.
‘देखिए, आप लोगों को बड़े धैर्य से काम लेना होगा. बच्ची के साथ अपहरण से भी बड़ी दुर्घटना हुई है,’ कहतेकहते डाक्टर ने पतिपत्नी को चौंका दिया. ‘बच्ची की हालत में सुधार हो रहा है. 1-2 महीने में वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी लेकिन भविष्य में वह कभी मां नहीं बन पाएगी…उस का एक बड़ा औपरेशन कर बच्चेदानी निकाल दी गई है.’
‘क्यों? क्यों, डाक्टर?’ तरुणा अपना संयम खो चुकी थी. कपिल ने बड़ी मुश्किल से उसे पकड़ कर बैठाया और फिर रोजलीन के साथ डाक्टर ने भी
9 महीने में घटे पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताना शुरू किया.

‘नहीं, नहीं, डाक्टर, यह कैसे हो सकता है? मेरी मासूम बच्ची तो अभी रजस्वला भी नहीं हुई थी. जिस दिन उस का अपहरण हुआ उस दिन उस की 11वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी,’ कहतेकहते तरुणा की हिचकियां बंध गईं और वह मेज पर सिर रख कर फफक पड़ी थी.
‘आप ठीक कहती हैं. बच्ची तो बहुत छोटी है लेकिन उस की सेहत, उस की बनावट काफी तंदुरुस्त है और उस के शरीर में अंदरूनी परिवर्तन शुरू हो चुके होंगे. यह दुर्घटना नहीं घटती फिर भी बच्ची 1-2 महीने में रजस्वला हो जाती.
‘हमारे इतने वर्षों के अनुभव में यह पहला केस है और इस छोटी उम्र का ही नतीजा है कि प्रसव के बाद उस की हालत बिगड़ गई. यदि हम औपरेशन नहीं करते तो भी अत्यधिक रक्तस्राव से उस का बचना मुश्किल था.’
अब तक तरुणा को संभालना कठिन था. अब कपिल भी सिर झुकाए आंखें पोंछ रहा था और जस्टिस विद्यासागर आंखें नीचे किए एक अपराधी की तरह चुपचाप सुन रहे थे जो कुछ डाक्टर उन्हें विस्तार से बताती जा रही थी.
 ‘अब आप लोगों से मेरा आग्रह है कि बच्ची के पास जाने से पहले आप सब सामान्य हो जाएं. बच्ची को इस बारे में कुछ भी नहीं पता है. उसे तो यही लगता है कि वह गिर गई थी, चोट लगी है और वह अस्पताल में इलाज के लिए भरती है. आप लोग एकएक कर उस से मिलें तो अच्छा होगा. वह आप सब को एकसाथ देख कर खुशी से मचल जाएगी या फिर रोने लगेगी, जिस का उस के स्वास्थ्य पर उलटा असर हो सकता है.’
उसी शाम उन सब ने बारीबारी से बच्ची को जा कर देखा. उस से हलकीफुलकी बातें कीं, उसे सामान्य देख कर चैन की सांस ली. बच्ची को कुछ पता नहीं है कि वह कितने दिनों बाद अपने मातापिता से मिल रही है? वह कहां है? उसे क्या हुआ है? वह सिर्फ यह जानती है कि उसे चोट लगी है. उसे दर्द होता है तो डाक्टर दवा देती हैं.
‘तो क्या अपहरण के बाद बदमाशों ने जो किया वह बेहोशी में किया था या चलती गाड़ी से फेेंके जाने पर सिर की चोट से वह सबकुछ भूल चुकी है. यदि ऐसा है तो प्रकृति का शुक्र है कि कम से कम बच्ची का भविष्य तो सुरक्षित है, वरना यह खौफनाक हादसा उस की जिंदगी बरबाद कर देता,’ कमरे से बाहर निकलते हुए डाक्टर और जस्टिस विद्यासागर यह कहते हुए अपने को तसल्ली दे रहे थे.
तरुणा का तो वहां से हिलना नामुमकिन था. इसलिए रात 8 बजे जैसे ही वर्षा थमी मिस्टर मैसी कपिल, उस के बेटे गौरव और जस्टिस को ले कर अपने घर के लिए निकल पड़े थे, जहां उन्होंने उन के रहने का प्रबंध कर रखा था.
5वें दिन जस्टिस ने चंडीगढ़ लौट चलने की बात की लेकिन डाक्टरों ने अपनी सहमति देने से इनकार किया, ‘पहले बच्ची के टांके कटने दीजिए. उसे अभी महीनोें तक डाक्टरी देखरेख में रहना पड़ेगा. एक नई जगह जा कर नए डाक्टर को दिखाना, उन्हें पूरा इतिहास बताना, तरहतरह के सवालों का जवाब देना, ये सब आप लोगों के हित में नहीं.’
डाक्टर की राय और उन की स्वाभाविक चिंता देख जस्टिस भावुक हो गए. उन्होंने कपिल को सपरिवार वहां छोड़ अकेले ही लौट जाने की इच्छा व्यक्त की.
अभी दूसरे पहलू की चर्चा शुरू भी नहीं हुई थी. नवजात शिशु के बारे में किसी ने कुछ नहीं पूछा था. लेकिन उस नन्ही सी जान को ले कर कोई फैसला तो लेना था. बच्ची जीवित है और इसी अस्पताल में है यह जान कर तरुणा एक बार उसे देखने को लालायित हो गई. लेकिन कपिल ने तुरंत उसे रोक दिया था, ‘देखो, हमारी बेटी सहीसलामत है. इस से ज्यादा न तुम्हें कुछ जानने की जरूरत है न ही किसी को देखने की. इस बुरे सपने को यहीं दफन कर दो और जितनी जल्दी हो सके यहां से लौटने की तैयारी करो.’
तरुणा के कदम रुक गए लेकिन उस की आंखें कई प्रश्न पूछ रही थीं.
‘माफ कीजिएगा, यदि आप लोगों का यही फैसला है तो मैं हाथ फैला कर उस नन्ही जान की भीख मांगती हूं. उसे मेरी खाली झोली में डाल दीजिए,’ कहते हुए रोजलीन ने सचमुच अपना आंचल फैला दिया था, ‘अभी उसे हमारे यहां की एक नर्स, जिस का 8 महीने का बच्चा है, दूध पिला कर उसे पाल रही है.’
उसी शाम मिस्टर मैसी ने एक बार फिर जस्टिस विद्यासागर को बहूबेटे के साथ घर पर बैठाया और गोद देने की कार्यवाही को कानूनी रूप देने का आग्रह किया ताकि भविष्य में किसी तरह की गलतफहमी की गुंजाइश न रहे.
‘देखिए, मेरी नाबालिग बच्ची से उस का कोई संबंध नहीं और हम किसी अपराधी, बलात्कारी के बच्चे पर क्यों दावा करेंगे? आप उस का लालनपालन करना चाहें तो कीजिए वरना कहीं अनाथाश्रम में दे दीजिए.’
‘नहीं, नहीं, ऐसा मत कहिए,’ रोजलीन चीख पड़ी थी. और सचमुच अगले 15 दिनों में पूरे परिवार ने एक बार भी उस नन्ही जान को देखने की इच्छा जाहिर नहीं की थी.
भार्गवी की हालत में तेजी से सुधार हो रहा था. अब वह पूरी तरह अपने घर वालों की देखरेख में थी. इस बीच कपिल अपने पिता के साथ 10 दिनों के लिए अपने शहर लौट गए थे. तरुणा अपने बेटे के साथ वहीं रुकी रही थी. करीब 3 हफ्ते रुकने के बाद एक दिन ऐसा भी आ गया जब डाक्टरों ने भार्गवी के स्वास्थ्य को देखते हुए हरी झंडी दे दी और जस्टिस का पूरा परिवार उस शहर को जल्द ही अलविदा कहने जा रहा था. जाते हुए उन्होंने उन सभी लोगों का दिल से धन्यवाद ही नहीं बल्कि अस्पताल के लिए एक मोटी रकम का चेक भी भार्गवी के हाथों दिलवाया था.
रोजलीन उन्हें विदाई देने नहीं आई बल्कि पिछले 10 दिनों से उस ने भार्गवी के पास जाना भी छोड़ दिया था. पिछले 9 महीनों से बंधे उस अनाम रिश्ते को तोड़ना इतना आसान नहीं होता यदि वह नन्ही जान उस की गोद में न होती. अब वह पूरा समय नवजात शिशु की देखरेख में बिताने लगी थी. उन की विदाई के समय भी वह बच्ची को गोद में लिए सीने से लगाए दूर खड़ी उन्हें जाते हुए देखती रही थी. 2 अक्तूबर को पूरे 11 महीने बाद एक अध्याय हमेशा के लिए बंद हो गया था.
पिछले 9-10 महीनों से मिस्टर मैसी ने अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर रखे थे. वे सिर्फ बच्ची की सलमाती की दुआ मांग लौट आते और पतिपत्नी बेहोश बच्ची की सेवाशुश्रूषा में लगे रहते थे. अब भार्गवी को उस के परिवार को सौंप दोनों ने नवजात शिशु के साथ अपने जीवन का नया पन्ना लिखना शुरू किया.
‘ढलती उम्र है तो क्या हुआ? इसी शहर में कई दर्जन बच्चे मेरे हाथों से पैदा हुए हैं, तो क्या मैं इसे नहीं पाल सकती?’ रोजलीन बड़े आत्मविश्वास से कह कर बच्ची को चूम लेती.
उन्होंने भार्गवी परिवार को विदा करने के बाद ही यह खबर फैला दी कि मैसी दंपती ने अपनी बहन की नातिन को गोद लिया है. ताकि कल को उस मासूम के कच्चे मन में कोई खुराफाती दिमाग उलटीसीधी बातें न डाल दे. फिर 7-8 साल की ही बात है. रोजलीन के रिटायर होते ही यहां से कहीं और चले जाना है. बच्ची की बेहतर शिक्षा और लालनपालन के लिए अभी से दोनों ने बहुतकुछ सोचना शुरू कर दिया था.
उन्होंने नवजात शिशु को गोद लेने और उस के नामकरण का उत्सव मनाने की घोषणा कर दी. जीवन में एक नया अनुभव, एक नए उत्साह से पतिपत्नी ने जिंदगी की शुरुआत की. अपने बुढ़ापे की संतान को उन्होंने बड़े लाड़प्यार और अनुशासन में रख कर पालना शुरू किया. आरंभिक वर्षों में उन्हें हमेशा एक डर सा लगा रहता कि कहीं जस्टिस परिवार ने कभी लौट कर अपना दावा ठोंक दिया तो क्या होगा?
कई बार रोजलीन ने समय से पहले ही नौकरी छोड़ कर कहीं दूसरे शहर बस जाने की भी सोची. लेकिन अब अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बनाए रखना जरूरी था, इसलिए जल्दबाजी में ऐसी कोई गलती वह नहीं करना चाहती थी.
समय बीतने के साथसाथ उन के मन का डर निकलता गया और अपनी सेवानिवृत्ति के बाद बहुत सोचविचार कर वे लखनऊ जा कर बस गए थे.
मिस्टर मैसी पुराने दमा रोगी थे. अब अधिकतर बीमार रहने लगे थे. रोजलीन के साथ आस्था नन्ही सी नर्स बन अपने नाना की कुछ अच्छी देखभाल करती रहती थी. आस्था के प्यार में वे इतने जकड़ चुके थे कि तमाम तकलीफों के बाद भी उन्हें मुक्ति नहीं मिल रही थी.
आखिर 2 वर्षों तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए एक सुबह आस्था को पूरी तरह रोजलीन को सौंप उन्होंने आंखें मूंद ली थीं.
पति के गुजरने के बाद रोजलीन आस्था को ले कर और भी सतर्क हो गई थी और कभीकभी अचानक चिंतित भी हो जाती. ‘मेरे बाद इस का कौन है?’ जानेअनजाने यह डर उस के दिमाग पर हावी होता जा रहा था.
आज आस्था के मुंह से हमशक्ल वाली बात सुन कर रोजलीन अपने को रोक नहीं पाई और पड़ोस की मरीज को देखने के बाद वहां से निकल आस्था के कालेज चली गई. पूरे रास्ते वह इसी उधेड़बुन में रही, वह उस से क्या पूछेगी? क्या कहेगी? कैसे बात शुरू करेगी? क्या उस के मातापिता ने उसे कुछ बताया होगा? अब वह करीब 30 वर्ष की होगी. क्या उस की शादी हुई होगी? अब तो वह स्वयं डाक्टर बन चुकी है. उसे अपने बारे में सब पता चल ही गया होगा. इन्हीं सारे सवालों में उलझी कालेज के गेट पर पहुंचते ही प्रिंसिपल से मुलाकात हो गई. आस्था की नानी ही गार्डियन हैं, यह कालेज में सब को पता है और वे समयसमय पर कालेज जा कर उस की रिपोर्ट लेती रहती हैं. इसलिए पिं्रसिपल ने मिलते ही ‘आस्था की पढ़ाई बहुत अच्छी चल रही है’ कहा और नानी को आश्वस्त कर दिया.
‘‘बच्चों की परीक्षा चल रही है. इन दिनों कालेज में बाहर से एग्जामिनर आए हैं, क्या उन में कोई डा. भार्गवी व्यास भी हैं?’’ नानी ने हिचकिचाते हुए नाम ले कर ही पूछ लिया था.
‘‘जी हां, बिलकुल आई थीं. वह एनाटौमी की लैक्चरर हैं, कल ही तो आई थीं. उन्होंने 3 दिन की जगह 2 दिन की ही स्वीकृति दी थी क्योंकि पहले से ही उन का कुछ और प्रोग्राम तय था. वे बहुत जल्दी में थीं, उन्हें आज ही दिल्ली लौटना था जहां से रात उन्हें लंदन की फ्लाइट लेनी थी. वे 4 बजे ही निकल गईं. अभी तो हमारा ड्राइवर एअरपोर्ट से लौटा भी नहीं है. आप को कुछ काम था? आप कैसे जानती हैं उन्हें?’’
‘‘जी हां, दरअसल, आस्था उन से मिलवाने की जिद कर रही थी. वह बता रही थी कि उन की शक्ल उस से मिलतीजुलती है. इसलिए उन्हें देखने की इच्छा हुई,’’ बोलते हुए नानी प्रिंसिपल से विदा ले बाहर निकल गईं और सड़क पर चलते हुए सोच रही थीं, क्या यह उन दोनों के हक में ठीक हुआ?
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