Online Hindi Story : जब राम्या यहां आई थी तो बहुत सहमी सी थी. बरसों से झेली परेशानियां और जद्दोजहद उस के चेहरे से ही नहीं, उस की आंखों से भी साफ झलक रही थी. 21-22 साल की होने के बावजूद उसे देख लगता था मानो परिपक्वता के कितने बसंत पार कर चुकी है. एक खौफ सदा उस से लिपटा रहता था, कोई उस के पास से गुजर भी जाए तो कांपने लगती थी. किसी का भी स्पर्श उसे डरा जाता और वह एक कोने में दुबक कर बैठ जाती. किसी से घुलनामिलना तो दूर उसे बात तक करना पसंद नहीं था. न हंसती थी, न मुसकराती थी, बस चेहरे पर सदा एक तटस्थता छाई रहती मानो बेजान गुड़िया हो… मन के अंदर खालीपन हो तो खुशी किसी भी झिर्री से झांक तक नहीं पाती है.
बहुत समय लगा उन्हें उसे यह एहसास कराने में कि वह यहां महफूज है और किसी भी तरह का अन्याय या जोरजबरदस्ती उस के साथ नहीं होगी. वह एक सुरक्षित जिंदगी यहां जी सकती है. बस एक बार काम में मन लगाने की बात है, फिर बीते दिनों के घाव अपनेआप ही भरने लगेंगे. धीरेधीरे उन का प्यार और आश्वासन पा कर वह थोड़ीथोड़ी पिघलने लगी थी, कुछ शब्दों में भाव प्रकट करती, पर सिवाय उन के वह और किसी से बात करने से अभी भी डरती थी. खासकर अगर कोई पुरुष हो तो वह उन के पीछे आ कर छुप जाती थी. उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि वह उन पर भरोसा करने लगी है और इस तरह बरसों से उलझी उस की जिंदगी की गांठों को खोलने में मदद मिलेगी.
वैसे भी वह ज्यादातर उन के ही कमरे में बैठी रहती थी या वे जहां जातीं, वह उन के साथ ही रहने की कोशिश करती. जब वे पूछतीं, ‘‘दामिनी, यहां कैसा लग रहा है?’’ तो वह कहती, “ठीक, आप बहुत अच्छी हैं, मीरा दी. आप जैसे लोग भी होते हैं क्या दुनिया में. पीछे छूटी मेरी जिंदगी में क्यों मुझे आप जैसा कोई नहीं मिला.” फिर उस की आंखें छलछला जातीं.
मीरा उस की पीठ थपथपाती तो उस के मायूस चेहरे पर तसल्ली बिखर जाती.
“मीरा दी, फैंसी स्टोर का मालिक आया है. उसे इस बार माल जल्दी और ज्यादा चाहिए. आप के पास भेज दूं क्या?” सोनिया ने आ कर सूचना दी, तो अपने औफिस में बैठी मीरा ने इशारे से उसे भेजने को कहा.
“नमस्ते मीरा मैडम. आप के एनजीओ में बनने वाला सामान हाथोंहाथ बिक रहा है. लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. आप ने अपनी लड़कियों को खूब अच्छी ट्रेनिंग दी है. बहुत ही सफाई से हर चीज बनाती हैं. बेंत की टोकिरयां, ग्रीटिंग कार्ड, मोमबत्ती, टेराकोटा और पेपरमैशी की वस्तुएं और अचार, पापड़, बड़ी बनाने में तो वे माहिर हैं ही. सच कहूं तो आप ने इन बेसहारा, समाज से सताई लड़कियों को सहारा तो दिया ही है, साथ ही एक लघु उद्योग भी कायम कर दिया है.
‘‘बहुत पुण्य का काम कर रही हैं आप. पूरे बनारस में नाम है आप के इस संस्थान का,” रामगोपाल लगातार मीरा की तारीफों के पुल बांध रहे थे.
“बस कीजिए रामगोपालजी. यह तो सब इन लड़कियों की मेहनत है, जो इतनी लगन से सारा काम करती हैं. दो बेसहारा लड़कियों को अपने घर में जब आसरा दिया था तो सोचा तक नहीं था कि कभी मैं इन बेसहारा लड़कियों के लिए कोई संस्था खोलूंगी. मेरी यही कोशिश रहती है कि जो भी लड़की मेरी इस ‘मीरा कुटीर’ में आए, वह स्वयं को सुरक्षित समझे और उस की सही ढंग से देखभाल हो. वे जो भी बनाती हैं, उसी की बिक्री से यह एनजीओ चल रहा है. अच्छा बताइए, क्या रिक्वायरमेंट है आप की.”
रामगोपाल ने अपनी लिस्ट उन के आगे रख दी और उन्हें नमस्ते कर वहां से चला गया.
रामगोपाल के जाने के बाद मीरा ने पहले जा कर रसोईघर की व्यवस्था देखी, फिर सफाई को जांचा. कच्चा सामान क्या चाहिए, उस की लिस्ट बनाई और वहां रहने वाली लड़कियों व महिलाओं को हिदायत दी कि माल बनाने में और तेजी लानी होगी. उस के बाद वे आराम करने के लिए अपने कमरे में जा ही रही थीं कि उन की नजर राम्या पर पड़ी. वह बहुत तन्मयता से बेंत की टोकरी बना रही थी. दो महीने हो गए थे उसे यहां आए और धीरेधीरे उस ने खुद को यहां के माहौल में ढालना शुरू कर दिया था. मीरा के कहने पर काम में दिल लगाने से उस के चेहरे पर हमेशा बने रहने वाले डर के चिह्न थोड़े धुंधले पड़ने लगे थे.
कमरे में आ कर पलकें बंद करने के बावजूद मीरा राम्या के ही बारे में सोच रही थीं. एक शाम जब वे दशाश्वमेध घाट से गंगा आरती देख कर लौट रही थीं, तो उन्हें एक गली में वह भागती दिखाई दी थी. तीन आदमी उस के पीछे थे. गली थोड़ी सुनसान थी, पर वे तो बनारस की हर गली से परिचित थीं.
बनारस में ही तो जन्म हुआ था उन का. अब तो पचास साल की हो गई हैं वे. फिर कैसे न पता होता हर रास्ता. पहले तो उन्हें लगा कि शोर मचा कर लोगों को बुलाना चाहिए, पर दिसंबर की ठंड में लोग जल्दी ही घरों में दुबक जाते हैं, सोच कर वे एक मोड़ पर ऐसी जगह खड़ी हो गईं, जहां से उन्हें कोई देख न सके. राम्या जब वहां से निकली, तो उन्होंने फौरन उस का हाथ पकड़ खींच लिया और वहीं बनी गौशाला में घुस गईं. अंधेरे में वे आदमी जान ही
नहीं पाए कि राम्या कहां गायब हो गई. वह बुरी तरह हांफ रही थी, कपड़े फटे हुए थे और शरीर पर जगहजगह चोटों के निशान थे.
“मुझे उन दुष्टों से बचा लीजिए, मैं वहां वापस नहीं जाना चाहती. कहीं आप भी तो उन्हीं की साथी नहीं,” डर कर उस ने उन से अपना हाथ छुड़ा कर फिर भागने की कोशिश की थी.
“चुपचाप खड़ी रहो. तुम यहां सुरक्षित हो,” इस के बावजूद वह आश्वस्त नहीं हो पाई थी. वह लगातार रोए जा रही थी. गौशाला के लोगों को साथ ले वे उसे मीरा कुटीर ले आई थीं. तब उस ने बताया था कि वह मथुरा की रहने वाली है और बनारस में उसे बेचने के लिए लाया गया था. एक दुर्घटना में बचपन में ही उस के मांबाप मर गए थे. चाचाचाची को मजबूरी में उसे और उस के छोटे भाई को अपने पास रखना पड़ा. उन की पहले ही तीन बेटियां थीं. भाई के साथ तो उन का व्यवहार ठीक था, क्योंकि उन्हें लगा कि वह उन का कमाऊ बेटा बन सकता है. पर राम्या जैसेजैसे बड़ी होती गई, चाची की मार और चाचा के ताने बढ़ते गए. सोलह साल की हुई तो उस का रूपरंग दोनों निखार पर थे. उस का गोरापन और नैननक्श दोनों ही चाचा की लड़कियों के लिए जलन का कारण बन गए थे. कई बार उसे लगता कि चाचा उसे लोलुप नजरों से देखता है. बेवजह यहांवहां छूने लगा था वह. एक बार चाची तीनों बेटियों के साथ जब मायके गई हुई थी, तो चाचा दुकान से जल्दी आ गए. भाई को घर का सामान लेने बाजार भेज दिया और फिर उस के साथ दुष्कर्म किया. वह अपने को संभाल भी नहीं पाई थी कि चाची लौट आई और चाचा ने उस पर ही झूठा दोष मढ़ दिया. पति की आदतों को जानने के बावजूद चाची ने कहा कि अब वह इस घर में नहीं रहेगी. चाचा ने तब उसे एक आदमी को बेच दिया. और तब से उसे जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया गया. यहां से वहां न जाने कितने शहरों में उसे बेचा गया. बनारस भी उसे बेचने के लिए ही लाया गया था, पर वह भाग निकली.
मीरा के यहां जाने कितनी बेसहारा लड़कियां थीं, पर राम्या की मासूमियत ने उन्हें रुला दिया था. उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा था, “अब यही तुम्हारा घर है. यहां तुम निश्चिंत हो कर रह सकती हो. बस जो काम तुम्हें यहां सिखाए जाएंगे, उन्हें मेहनत से करोगी तो मन लगा रहेगा. लेकिन कभी भी किसी से इस बात का जिक्र मत करना कि तुम जिस्मफरोशी के धंधे में थीं, पता नहीं बाकी लोग इसे किस रूप में लें.”
मीरा को खुशी थी कि राम्या उन के यहां पूरी तरह से रचबस गई थी और अपनी पुरानी जिंदगी भुला कर नए सिरे से जीने की कोशिश कर रही थी. हालांकि शुरुआत में उसे संभालना आसान नहीं था उन के लिए. उस के सब से कटेकटे रहने से मीरा कुटीर की बाकी लड़कियों ने उन से कई बार शिकायत की थी, पर उन्होंने उन्हें राम्या को सहयोग व वक्त देने के लिए कहा था.
“तुम लोग उस से प्यार से बातें करोगे तो वह भी धीरेधीरे हमारे इस परिवार का हिस्सा सा बन जाएगी. शुरू में तो तुम सभी को दिक्कत हुई थी अपने अतीत को भुला कर इस नए जीवन को अपनाने में.”
और फिर हुआ भी ऐसा ही. 6 महीने बीततेबीतते राम्या सब की आंखों का तारा बन गई. उम्र में सब से छोटी होने और अपने भोलेपन के कारण उस ने सब का दिल जीत लिया. काम भी वह बहुत फुरती से करती. खाना तो इतना बढ़िया बनाती कि सब के स्वाद तंतु जाग्रत हो जाते.
एकदम अनगढ़ राम्या ने कितने ही कामों में महारत हासिल कर ली थी. कढ़ाई तो ऐसी करती कि लगता कपड़ों पर असली फूलपत्ते खिले हुए हैं. उस की हंसी अब कुटीर के कोनेकोने में बिखरने लगी थी. जब वह खिलखिलाती तो लगता मानो सारे गम और कड़वाहट उस के साथ ही बह गई है. वह 5वीं तक ही पढ़ पाई थी, इसलिए जब उस ने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की थी, तो मीरा ने उस का प्रबंध भी करवा दिया था.
“मीरा दी, मैं कुछ बनना चाहती हूं और मुझे यकीन है कि आप की छत्रछाया में मेरा यह सपना अवश्य पूरा होगा,” वह अकसर कहती.
“मैं तो खुद चाहती हूं कि मीरा कुटीर की हर लड़की को एक सार्थक दिशा मिल जाए, तभी मुझे तसल्ली होगी कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो पाई हूं.”
मीरा कुटीर में गुझिया, नमकपारे , मट्ठी, बालूशाही, बेसन के लड्डू और नारियल की बर्फी आदि बनाने का औडर्र आ चुका था और सारे लोग उन्हें ही बनाने में बिजी थे.
मीरा औफिस में बैठी उन को पैक कराने की व्यवस्था देख रही थीं कि तभी चारपांच लड़कियां आ कर बोलीं, “मीरा दी, राम्या यहां नहीं रह सकती. उसे इस पवित्र कुटीर से बाहर निकाल फेंकिए. आप नहीं जानतीं कि वह क्या करती थी. हमें अभीअभी पता चला है. दुकानदार का जो आदमी सामान की डिलीवरी लेने आया है, वह उसे पहचान गया है. वह मथुरा का रहने वाला है.”
“मुझे उस के अतीत के बारे में सब पता है.”
“फिर भी आप ने उस जिस्मफरोशी करने वाली लड़की को यहां रख लिया?” फागुनी, जो सब से वाचाल थी, ने मानो उन्हें चुनौती देते हुए पूछा.
“हां, क्योंकि इस पेशे में वह मजबूरी में आई थी. उसे धकेला गया था इस में. अच्छा, अगर तुम्हारे कम उम्र में विधवा होने के बाद एक बूढ़े से विवाह हो ही जाता तो क्या होता. तुम शादी से पहले भाग गईं, इसलिए बच गईं. तुम ही क्या, यहां रहने वाली हर लड़की किसी न किसी त्रासदी का शिकार हुई है, फिर भी तुम राम्या के लिए ऐसा कह रही हो. अभी तक तो वह तुम लोगों को बहुत अच्छी लगती थी और अब एक सच ने उस के प्रति प्यार और ममता को दरकिनार कर दिया. मुझे तुम लोगों से ऐसी उम्मीद नहीं थी. हम समाज को अकसर इसलिए धिक्कारते हैं, क्योंकि उस पर पुरुषों का वर्चस्व है, उस की मनमानी को, ज्यादतियों को गाली देते हैं, पर विडंबना तो देखो यहां जिन पुरुषों की वजह से राम्या को नरक का जीवन जीना पड़ा, उन्हीं पुरुषों की करनी में तुम लोग उन का साथ दे रही हो. राम्या अपने उस नारकीय जीवन से निकल कर एक साफसुथरी जिंदगी जीने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही है. और तुम उस का विरोध कर रही हो. उसे यहां से निकालना चाहती हो, ताकि फिर से कोई भेड़िया उस का सौदा करे. शर्म आनी चाहिए तुम सब को.”
मीरा दी को पता ही नहीं चला था कि कब राम्या वहां आ कर खड़ी हो गई थी.
“मुझे तो तुम लोगों पर गुरूर था कि मैं तुम्हें एक अच्छे जीवन के साथसाथ एक सही सोच भी देने में सफल हो पाई हूं. पर आज मुझे लग रहा है कि मेरी बरसों की तपस्या और मेहनत सब बेकार हो गई है.
“यह मीरा कुटीर तो अपवित्र राम्या के चले जाने से हो जाएगी. कोई सिर उठा कर इज्जत की जिंदगी जीना चाहता है, तो हमीं लोग उसे नीचा दिखाने के रास्ते खोल देते हैं. पति के अन्याय से मुक्त हो कर जब मैं ने इस कुटीर को बनाया था तो संकल्प लिया था कि हर दुखियारी लड़की को पनाह दे कर उस के जीवन को एक सार्थक दिशा दूंगी. दिनरात एक कर दिया मैं ने इस प्रयास में, पर आज एक ही पल में तुम लोगों ने मुझे मेरी ही नजरों में गिरा दिया.”
“माफ कर दो मीरा दी हमें,” फागुनी उन से लिपटते हुए बोली.
“माफी तो राम्या से मांगनी चाहिए तुम्हें. अपने दिल के मैल उस से माफी मांग कर धो लो.”
फागुनी नम आंखों से राम्या से जा कर लिपट गई. फिर उसे न जाने क्या सूझा, उस ने वहां पड़े सूखेगीले रंग, जो वे पैकिंग की खूबसूरती बढ़ाने और पेंटिंग बनाने के लिए किया करती थीं, अपनी मुट्ठी में भर लिए. उसे देख बाकी लड़कियों ने भी ऐसा ही किया और सब मिल कर राम्या पर रंग छिड़कने लगीं, मानो यह उन का उस से माफी मांगने का तरीका हो. रंगों की बौछारों से या खुशी से राम्या के गाल आरक्त हो गए थे. उसे लगा कि आज उसे एक दिशा मिल गई है, जिस पर चल कर वह अपने जीवन में आने वाले हर उतारचढ़ाव का अब आसानी से मुकाबला कर पाएगी.
हर तरफ उड़ते प्यार और विश्वास के रंगों को देख मीरा दी को लगा कि वे सचमुच आज इन लड़कियों को एक सार्थक दिशा देने में सफल हो गई हैं.