Women : सिंदूर और मंगलसूत्र के नाम पर वर्षों से महिलाओं को यह याद दिलाया जाता रहा है कि उन की पहचान उन के पति से जुड़ी हुई है. यह केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक नियंत्रण का तरीका भी है, जिस के चलते महिलाओं की काबिलीयत इन पारंपरिक प्रतीकों के नीचे दबी रह जाती है.
महिलाओं को सम्मान और समान अधिकारों की बातें और प्रवचन देना आजकल का फैशन सा बन गया है. राजनीति हो, समाज हो या धर्म तीनों हमेशा से ही दोगले हैं. ये एक तरफ महिलाओं को देवी सा सम्मान देने, अपने पैरों पर खड़ा होने, ऊंची उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित करते हैं तो दूसरी तरफ परंपराओं का खोखला ज्ञान दे कर नियंत्रण में भी रखने की कोशिश करते हैं. जब भी कोई महिला राजनीति में आती है, समाज में अग्रसर होती है या अपनी स्वतंत्र पहचान बनाना चाहती है तो सब से पहले सवाल उस के पहनावे पर उठते हैं, ‘मांग में सिंदूर है या नहीं?’, ‘गले में मंगलसूत्र क्यों नहीं पहना?’, ‘उस के रिश्ते क्या हैं?’, ‘उस का चालचलन कैसा है?’
हमारे समाज और राजनीति में महिलाओं को अकसर उन के योगदान, काबिलीयत और मेहनत से नहीं, बल्कि उन की व्यक्तिगत पहचान, रिश्तों और पारंपरिक प्रतीकों से आंका जाता है.
सिंदूर, मंगलसूत्र, विदेशी मूल या करोड़ों की गर्लफ्रैंड जैसे टैग्स के माध्यमों से महिलाओं की छवि को धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रंग देने का चलन बढ़ता जा रहा है. सवाल यह है कि क्या महिलाओं की पहचान उन के व्यक्तिगत जीवन और धार्मिक प्रतीकों से ही तय होगी? मतलब, अभी महिलाओं की अपनी पहचान की आजादी की लड़ाई बाकी है.
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