“ऐसा नहीं होगा. घरपरिवार की चिंता पुरुष को भी होती है,’’ कह कर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भर लिया. उन के बांहों की जकड़ किसी सुरक्षा के घेरे से कम नहीं थी. मुझे राहत मिली. ऐसे ही प्यार, मुहब्बत और टकराव के बीच जिंदगी के 30 साल कैसे गुजर गए, पता ही न चला. बेटाबहू बनारस में बस गए. उन्हीें से मिलने मैं कभीकभार आ जाती हूं.
मैं अतीत से लौटी. आगे बढ़ कर उस महिला के पास आई. बदल तो वह काफी गई थी. फिर भी इतमीनान कर लेने में क्या जाता है.‘‘आप कहां की रहने वाली हैं?’’ मेैं ने पूछा. बिना जवाब दिए उस ने नजरें दूसरी तरफ फेर लीं.‘‘मम्मी, कहां आप फिजूल के चक्कर में पड गई हैं?’’ यह देख कर मेरे बेटे को कोफ्त हुई. मेरे बेटे का स्वर उस महिला के कानों पर पड़ा. उस से रहा न गया.
‘‘बेटा, जिंदगी में कुछ भी हो सकता है. एक औरत के साथ तो कुछ ज्यादा ही, क्योंकि वह पुरुषों के समाज में जीती है,’’ इतनी सारगर्भित बात सुन कर मैं सकते में आ गई. निश्चय ही यह महिला किसी भले परिवार की होगी. मेरा विश्वास प्रबल हो गया कि यही शालिनी भाभी होगी?
‘‘आप शिवपाल चाचा की बहू शालिनी तो नहीं?’’ उस ने कोई जवाब नहीं दिया.मैं उस के चेहरे पर बनतेबिगड़ते भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी. उस ने नजरें नीची कर लीं.आसपास खड़े लोगों के लिए मैं जिज्ञासा का विषय बन गई. मेरे बेटेबहू को यह हरकत नागवार लग रही थी. मगर मैं ने शालिनी भाभी को करीब से जाना था. इसलिए मुझे उन का मोह था. नए जमाने के बेटेबहू को इस से क्या लेनादेना. वैसे भी आजकल के बच्चे प्रेक्टिकल हो गए हैं. वे भावनाओं में नहीं बहते. एक हमीं थे, जो अब भी भावनाओं के भंवर में फंसे हुए थे. खयाल जो पुराने थे. उस की चुप्पी से साफ जाहिर हो रहा था कि उस के मन में कुछ चल रहा था. यही कि अपनी पहचान जाहिर करे या चुप्पी साध ले. पहचान जाहिर करने का मतलब पुराने जख्मों को फिर से हरा करना. जो पीड़ादायक होगा.
क्षणांश इंतजारी के बाद जब उस ने अपना मुंह नहीं खोला, तो मैं ने चलने का मन बना लिया.‘‘अगर आप शालिनी भाभी हैं, तो मुझे आप को इस स्थिति में देख कर भारी कष्ट है,’’ कह कर मैं आगे बढ़ गई.‘‘सुनो,’’ मैं 2-3 कदम ही चली कि उस महिला ने आवाज दे कर रोका. मैं सहर्ष पीछे की ओर मुड़ी. मेरा अनुमान सही था. मैं उस के पास आई, तब तक अच्छीखासी भीड़ जमा हो चुकी थी.
‘‘यहां रुकना ठीक नहीं होगा भाभी. मुख्य सड़क पर चलते हैं,’’ भाभी के संबेाधन पर मैं भावविभोर हो गई. उस ने अपना कटोरा उठाया.‘‘कटोरा यहीं छोड़िए. मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.’’‘‘यही मेरी रोजीरोटी है.’’‘‘फिलहाल तो आप इसे यहीं छोड़िए,’’ मेरे आग्रह को उन्होंने मान किया. थोडी दूर मेरी कार खड़ी थी.
’’कहां ले जा रही हो बिट्टो?’’ उन का इतना कहना था कि एक क्षण के लिए मैं अपने बचपन में खो गई. अरसा गुजर गया. अब तो कोई बचा ही नहीं है, जो मुझे इस नाम से पुकारे.कुछ पल के लिए मैं फिर से वही अल्हड़, लापरवाह किशोरी बन गई.‘‘कहां खो गई मम्मी,’’ बेटे के कहने के साथ मैं अतीत से उबरी.
मैं ने बिना देरी किए शालिनी भाभी को कार में बैठने के लिए कहा. वह हिचकिचाई. मैं ने कहा, ‘‘आप के और हमारे बीच एक गहरा रिश्ता है. मैं रिश्तों के आगे धनदौलत को अहमियत नहीं देती. आप मेरी भाभी हैं, इसलिए मेरा आप से सादर आग्रह है कि आप मेरे घर चलें.’’
मेरे आग्रह को वे टाल न सकीं. रास्तेभर हम मूक बने रहे. निश्चय ही शालिनी भाभी सहज नहीं थीं. उन के चेहरे के भाव बता रहे थे. मैं ने चोर नजरों से देखा. कितना बदल चुका था शालिनी भाभी का खूबसूरत चेहरा. उन के चेहरे का रंग फीका पड़ चुका था. आंखों में पहले जैसा नूर नहीं था. होंठों की रंगत गायब थी. कपोलों की लालिमा को मानो ग्रहण लग गया हो. आगे के दांतों ने भी साथ छोड़ दिया था. चेहरे पर आई बेहिसाब सलवटें मानो कितने जख्मों की कहानी कह रहे थे.
यह देख कर मेरा मन करुणा से भर गया. पहली बार जब मैं ने उन्हें देखा था, तो लगा मानो चांद जमीं पर उतर आया हो. इतनी खूबसूरत थीं शालिनी भाभी. रमेश भइया तो उन के पैर की धूल भी नहीं थे. ऊपर वाले की भी लीला अजीब है. किसी की भी जोड़ी परफेक्ट नहीं बनाते. पति सुंदर तो पत्नी असुंदर. पत्नी सुंदर तो पति असुंदर. लगता है, ऊपर वाले ने सोचसमझ कर ही इस दुनिया को बनाया है. फूल के साथ कांटों को भी रचा, ताकि सामंजस्य बना रहे.
घर पहुंच कर सब से पहले मैं ने शालिनी भाभी को नहाने के लिए कहा. नहाधो लेने के बाद मैं ने उन्हें पहनने के लिए एक अच्छी सी साड़ी दी.पहले तो उन्होंने मना किया. मगर मेरी जिद के आगे उन की एक न चली. अब वे कुछ ठीकठाक लग रही थीं.बहू हम दोनों के लिए नाश्ता बनाने में लग गई और मेैं उन का दास्तानेहाल जानने में.‘‘भाभी, अगर आप को एतराज न हो तो मैं आप की बदहाली की वजह जान सकती हूं?’’
मेरे इस प्रश्न पर वे थोड़ी विचलित हुईं. एक उसांस के साथ उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘मेैं ने ससुराल स्वेच्छा से नहीं छोड़ा, बल्कि अपने ससुर की वजह से छोड़ना पड़ा.’’‘‘पर, वे तो कहते थे कि आप बांझ थीं, इसलिए भगा दिया,’’ सुन कर वे उत्तेजित हो गईं. ’’झूठ, एकदम झूठ,” अगले ही पल उन्होंने खुद को संयत किया. ‘‘क्यों हमेशा से हमीं को दोषी ठहराया जाता है? पुरुष तो पुरुष, औरतें भी मर्दों के साथ खड़ी नजर आती हैं.’’
‘‘फिर सच क्या था…?’’ मेरी जिज्ञासा बढ़ी. ‘‘क्या आप को शिवपाल चाचा के चालचलन की जानकारी थी?’’ ‘‘चालचलन में क्या खराबी थी? पत्नी कम उम्र में चल बसी. 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन्होंने आजन्म विधुर रहने का फैसला लिया, तो सिर्फ बच्चों के हित के लिए. पता नहीं, सौतेली मां कैसी होगी. उन के इस फैसले की सारा गांव सराहना करता हेेैै,’’ सुन कर शालिनी भाभी के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुसकान तिर गई.