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"मुकदमा चला. मुझे बरी कर दिया गया. मेरा उस को मारने का कोई इरादा नहीं था. अपनी अस्मत की रक्षा के लिए मुझे चाकू उठाना पड़ा. इसी आधार पर उस जज ने मुझे बेकुसूर माना. "इस बीच 5 साल से ज्यादा जेल में रही. जब छूटी तो मेरी दुनिया बदल चुकी थी. तब काफी सोचविचार कर काशी चली आई.’’मैं ने आत्मचिंतन किया, तो पाया कि शालिनी भाभी का क्या कुसूर था, जो इतने दुर्भाग्य के साथ जिंदगी जीने के लिए मजबूर हुईं.

मैं उस की मां को भी कुसूरवार नहीं मानती. उस का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह स्त्री थी. क्या एक स्त्री के लिए प्रेम करना गुनाह है? अगर है तो उस पुरुष को क्यों नहीं दंड मिला, जिस ने सुंदरी का शारीरिक शेाषण कर उसे अभिशापित जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया. सोच कर मेरा मन भर आया.शालिनी भाभी की भी मनोदशा लगभग ऐसी ही थी. वे अपने आंचल से आंसुओं को पोंछने लगीं. इस बीच मैं ने एक निर्णय लिया.

‘‘शालिनी भाभी, आप ने बहुत दुख झेले हैं. अब आप भीख नहीं मांगेंगी. मेरे साथ रहेंगी. मेैं आप को विश्वास दिलाती हूं कि जब तक जिंदा रहूंगी, इस रिश्ते की लाज रखूंगी. "आज भले ही नए जमाने के युवाओं को बुजुर्गों की अहमियत मालूम नहीं है, मगर मुझे आप के मार्गदर्शन की हमेशा दरकार रहेगी. आप की अनुभवी  छत्रछाया में रहूंगी तो मुझे  भी सुकून मिलेगा,’’ सुन कर उन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

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