कुछ देर बाद सुंदरी चाय ले कर आई. चाय के बीच उस आदमी ने अपना परिचय दिया, "भभुआ में मेरा घर है. पत्नी 5 साल पहले गुजर गई. 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. रिश्तेदारों ने काफी जोर डाला, मगर दूसरी शादी नहीं की.’’ तत्काल सुंदरी के मन में एक बेमेल समाधान आया. पुरुषों की कमजेारी को वह अच्छी तरह जानती थी. सुंदरी ने महसूस किया कि उस आदमी ने किसी स्त्री की तरफ देखा ही नहीं. खेतखलिहान से ऊपर उसे कुछ सोचना आया ही नहीं. बस एक रट पकड़ी तो पकड़ी रही. सौतेली मां न जाने उस के बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करे? तभी पानी का गिलास थमाते हुए दोनों की उंगलियों का स्पर्श हुआ. उस आदमी की नसों में सिहरन सी दौड़ गई.
एक अरसा गुजर गया, इस सिहरन की अनुभूति से लबरेज हुए. वह अभिभूत हो गया. ‘‘आप के पति नहीं दिख रहे हैं?’’ चाय की चुसकियों के बीच उस आदमी ने पूछा. सुंदरी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अभी शादी नहीं की?’’ "कर लीजिए. समय निकल जाएगा ’’‘‘आप करेंगे...?’’ इस तरह के प्रस्ताव पर सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ.
सुंदरी ने उस के मन की थाह ली थी. कहीं न कहीं वह उस से प्रभावित था. लोहा गरम था, इसलिए उस ने मौका नहीं छोड़ा. कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. जमीनआसमान का फर्क था दोनों में. वह गांव का ठेठ इनसान. वहीं सुंदरी शहर की पढ़ीलिखी आर्कषक लड़की. खूबसूरत स्त्री का संसर्ग भला किसे अच्छा नहीं लगता. फिर यहां तो सुंदरी जैसी महिला खुद चल कर आई थी. उस का पौरुष बल जोर मारा तो कर ली शादी सुंदरी से.