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इंदु की भाभी ने भी तो यही प्रयास किया था. एक सुबह भाभी ने बरामदे और आंगन झाड़बुहार दिए  थे और चाय का काम संभाल लिया था. लेकिन निर्मल यह देख कर सन्न रह गया था कि इंदु को भाभी की लगाई झाड़ू पसंद नहीं आई थी और एक बार फिर उस ने सफाई की थी.

निर्मल भाभी के सामने बेहद शर्मिंदा हुआ था. न कहीं घुमाफिरा पाया, न घर में ही उचित वातावरण था. जातेजाते भाभी की बिटिया ने कह ही दिया, ‘बूआ, मैं ने आप का नाम रोबोट बूआ रख दिया है. आप का बस चले तो रात को भी न सोएं, चादरें ही धोती रहें.’

निर्मल बच्चों की बातें सुन मुसकरा दिया था, पर मन में बड़ा परेशान था इंदु के इस आचारव्यवहार से. एक भी मेहमान, पड़ोसी, खुद निर्मल का कोई दोस्त या फिर बच्चों के ही दोस्त, कोईर् भी नहीं घुस सकता था इंदु के घर में. वह इतनी व्यस्त रहती कि कभी कोई भूलेभटके आया भी तो उस के रूखे बरताव से आहत हो दोबारा कभी लौट कर नहीं आया. वह तो सामाजिक संबंधों के नाम पर शून्य थी. सुबह उठते ही उसे हर काम जल्दीजल्दी निबटाने की हड़बड़ाहट रहती. शाम को निर्मल थोड़ा सा प्रेम, जरा सी शांति पा लेने की उम्मीद में घर लौटता तो इंदु अपनी व्यस्तता के बीच या तो एक कप चाय दे जाती या फिर बाजार से कोई सामान लाने की फरमाइश कर देती और निर्मल का मन खीझ जाता.

निर्मल को एक शाम याद हो आई. उस की वह शाम हर शाम से अलहदा थी. रोमांटिक तो नहीं, मगर निर्मल को पुरसुकून लगी थी. उस शाम निर्मल स्कूटर निकाल कर जा ही रहा था कि बगल के क्वार्टर वाले अस्थानाजी ने उसे अचानक ही चाय का आमंत्रण दे डाला था.

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