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निर्मल ने एक बार फिर से सामने की बर्थ पर सोई इंदु पर नजर डाली. इंदु अपनी बांह पर सिर रखे बेखबर नींद में जाने क्या सपना देख कर कभी मुसकरा पड़ती, तो कभी सिसक पड़ती.

निर्मल ने उठ कर पहले पानी पिया, फिर इंदु व उस से चिपके अंशु को ठीक से चादर ओढ़ा दी और फिर अपनी बर्थ पर जा कर लेट गया. पर उसे आज नींद नहीं आ रही थी. उस ने एक बार कूपे में, जहां तक नजर जाती थी दौड़ाई, सभी यात्री लगभग सो चुके थे.

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निर्मल को सचमुच सबकुछ सपने की ही तरह लग रहा है. जिंदगी कभी इतनी खूबसूरत हो सकती है, उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था. वह अपने जीवन से एकदम निराश हो चुका था. ऐसा लगता था जैसे एक जीताजागता आदमी नहीं, बल्कि एक मशीन हो. बस, सुबह से शाम और शाम से रात तक लगे रहो रोबोट की तरह.

निर्मल इंदु को देख मुसकरा दिया. कितने सालों बाद इस नादान को समझ में आया कि वैवाहिक जीवन और वह भी संतुष्ट वैवाहिक जीवन क्या होता है.

पिछले साल की ही बात है, इसी अंशु बेटे की पहली सालगिरह पर खासा आयोजन किया था. इंदु की बेटे की चाह जोे पूरी हुईर् थी. पुत्र की आस में एक के बाद एक 3 बेटियां पैदा हो चुकी थीं. फिर भी निर्मल को कोई मलाल नहीं था. क्योंकि उस के पास बढि़या नौकरी तो थी ही, साथ ही, वह भरपूर मेहनत भी कर रहा था ताकि पदोन्नति का कोई मौका चूकने न पाए.

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