‘क्या हुआ, बता तो?’
सिसकियां भरतेभरते अशोक बोला, ‘पापा आ रहे हैं दोपहर को. वे तो मेरी धुनाई कर देंगे, फिरदौस. मुझे लगता है उन्हें शक हो गया है.’
‘शक? किस बात का शक?’
‘तुम को मालूम है मैं किस विषय में बात कर रहा हूं. फिरदौस, वैसे ही हमारे घर में झगड़े होते रहते हैं. मैं उन की एक और नाखुशी की वजह नहीं बनना चाहता.’
फिरदौस ने कंधे उचकाए और कहा, ‘तेरा कैमरा कहां है. मुझे दे, मैं जल्दी से फोटो खींचता हूं. हम को जाना चाहिए. सब इंतजार कर रहे होंगे. याद है, शरद को और उस के अमेरिकी भाई को ट्रेन पकड़नी है.’
‘फिरदौस, मेरे पापामम्मी सुखी नहीं हैं. मुझे लगता है, पापा को शायद शादी ही नहीं करनी चाहिए थी. तुम समझ रहे हो न मैं क्या कहना चाह रहा हूं.’
फिरदौस एक व्यंग्यपूर्ण हंसी हंस रहा था.
‘इसलिए अब उन्हें मुझ पर शक हो रहा है. उन्हें लगता है कि मैं भी उन की तरह हूं. शायद उन्होंने हमारे बारे में कुछ उड़ती सी खबर सुनी होगी.’
‘बनाने वाले ने जब बाबाआदम की एक पसली निकाल कर औरत बनाई, तो आदमी के दिमाग से वह हिस्सा निकाल दिया जो उसे संवेदनशील बनाता है. तू कह रहा है कि पसली के हटाने से तेरे पापा शक्की भी हो गए हैं. वाह, चल, देर हो रही है. बाद में बात करेंगे.’
‘न,’ कुछ पल पहले जो इतना डरा हुआ था, अब एकसाथ जिद्दी कैसे हो गया, हैरानी हो रही थी, मुझे. ‘अभी बात करते हैं.’
‘क्या बात करनी है? मैं चला जाऊं, यही न? चला जाऊंगा. बस.’
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