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कन्हैयालाल ने जब कहा कि उन की पत्नी तो बिलकुल स्वस्थ थीं और उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी तो वकील साहब ने फिर मुसकरा कर अनुरोध किया कि कन्हैयाजी इस मुकदमे के लिहाज से अपनी पत्नी उन्हें सौंप दें. कन्हैयालाल इस बेहूदी बात को सुन कर भड़क उठे तो वकील साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बात को सुधारते हुए उन्होंने कहना चाहा कि उन का मतलब यह था कि अपनी पत्नी का दिल उन्हें सौंप दें और चिंता न करें. पर यह कहने से पहले एक बार फिर वे स्वयं संभल गए और बात साफ की कि स्वस्थ पत्नी को अस्वस्थ कर देना उन के बाएं हाथ का खेल था, इसे वे अपनी पहचान के डाक्टरों की मदद से संभाल लेंगे, कन्हैयाजी चिंता न करें.

कन्हैयालाल ने कहा कि उत्तर वे सोच कर देंगे. पहले तो उन्हें कार को सिनेमा की पार्किंग से क्रेन द्वारा उठवा कर सर्विस स्टेशन पहुंचाने का काम करना था वरना कारपार्किंग का मीटर चलता रहेगा. वकील साहब ने फिर समझाया कि वे इस में भी जल्दबाजी से काम न लें, इंश्योरैंस वालों के बजाय कारनिर्माताओं से पहले बात कर लें फिर कार को बीमा वालों की जगह कार निर्माता स्वयं ले जाएंगे और उन्हें अपनी कंपनी की साख बचाने की जरा सी भी चिंता होगी तो सर्विस स्टेशन के बजाय कहीं अज्ञातवास में ले जाएंगे और तब तक उसे वहां गुप्त रूप से रखेंगे जब तक जनता की बदनाम स्मरणशक्ति अगले किसी राजनीतिक स्कैम में उलझ कर इस घटना को पूरी तरह भूल न जाए. बात धीरेधीरे कन्हैयालाल को जम रही थी. वैसे भी आज रविवार होने के कारण कागजी कार्यवाही कुछ आगे बढ़ने की आशा तो थी नहीं. पार्किंग वालों से ही कहना होगा कि कार अभी 1 दिन और वहीं रहेगी.

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