उस आदमी के अनुसार, हुआ यह था कि कन्हैयालाल इधर अपनी कार पार्क कर के मौल में घुसे उधर उन की कार से हैड लैंप की बगल की खाली जगह से धुआं निकलना शुरू हो गया. किसी व्यक्ति ने जोर से आवाज लगाई कि गाड़ी से धुआं निकल रहा है और अचानक वहां भगदड़ मच गई थी. जिन लोगों की कारें कन्हैयालाल की कार के आसपास खड़ी थीं उन्होंने जल्दी से अपनी कारें वहां से हटाने के चक्कर में पहले एकदूसरे की गाडि़यों को टक्करें मारीं और फिर ड्राइवर की सीट से अपनाअपना मुंह निकाल कर एकदूसरे से गालियों के परस्पर आदानप्रदान में व्यस्त हो गए. पर इस के पहले कि यह आदानप्रदान उन के गाडि़यों से बाहर आ कर कुश्ती या घूंसेबाजी के मुकाबलों में बदल पाता, पता नहीं कैसे इतनी जल्दी वहां पहुंचे मौल के सुरक्षा और अग्निसेवा के अधिकारी ने जोरजोर से एक भोंपू पर चिल्ला कर लोगों को चेतावनी दी कि वे अपनी गाडि़यों में चाबी लगी छोड़ बाहर निकल आएं ताकि पार्किंग के कर्मचारी गाडि़यों को करीने से बाहर हटा दें.
तमाशाइयों के मुंह का स्वाद इस घोषणा से बिलकुल खराब हो गया क्योंकि बहुत सी कारों की टकराहट और उन के ड्राइवरों की घबराहट देखने में मुफ्त मनोरंजन की काफी संभावनाएं थीं. पर इस के बाद आतिशबाजी शुरू हो गई तो उन की निराशा कुछ कम हुई. आतिशबाजी भी मुफ्त की थी और इसे प्रस्तुत कर रही थी कन्हैयालाल की कार जिस में से उठने वाले धुएं ने अब लपटों का वेश धारण कर लिया था.
कार के बोनट के नीचे से निकलने वाली लपटें अचानक बहुत तेज हो गईं और धड़ाम की आवाज के साथ बोनट अपने स्थान से लगभग 5 फुट ऊपर उछल कर उस से भी ज्यादा भारी धड़ाम की आवाज के साथ फिर जलते हुए इंजन के ऊपर गिर पड़ा मानो इस धड़ाम की आवाज से चौंक कर बहुत से तमाशाई एकदूसरे के ऊपर गिर पड़े हों.
इंजन से उठने वाली लाललाल लपटों के साथ ही सामने के दोनों टायरों के जलने से उठते काले धुएं के बादलों ने जब तमाशाइयों को खांसने पर मजबूर किया और बैटरी के चटक कर फूटने के बाद उस से बहते एसिड के धुएं से उन का दम घुटने लगा तब जा कर यह तमाशा देखती भीड़, जो अब तक एकदूसरे पर टूटी पड़ रही थी, ने थोड़ा पीछे हटना शुरू किया.
इसी बीच, मौके का फायदा उठा कर कुछ महिलाओं के गले की चेन खींचने और कुछ लोगों की जेब काटने की वारदातें भी हो चुकी थीं. इस से भी इस अग्निपूजक भीड़ को पीछे हटने की प्रेरणा मिली. भीड़ के बिखरने के बाद मौल के अपने फायर ब्रिगेड के कर्मचारी मोटे हौजपाइप को ले कर कार के पास पहुंच पाए. उन के प्रयासों से अगले 10-12 मिनटों में आग को काबू में किया जा सका.
धीरेधीरे लपटें शांत हो गईं और टायरों से उठता धुआं मन मसोस कर घर के अंदर पत्नी के आतंक से विद्रोह करते हुए पति की तरह केवल भुनभुनाता हुआ सा लगने लगा. जब एक बार फिर से अमनचैन और व्यवस्था की स्थिति कायम हो गई तो 2 पुलिस पैट्रोल कारें वहां पहुंचीं. उन में से 4 पुलिस वाले फुरती से उतरे और मुंह में ठूंसी सीटियों को जोरजोर से बजाते हुए उस भीड़ को, जो अब तक आग के नजारे को पेट भर कर देखने के बाद संतुष्ट हो कर स्वयं ही वापस जा रही थी, ‘पीछे हटो, पीछे हटो’ कहते हुए दोनों हाथों से धक्का देने लगे. भीड़ के लोग भ्रमित हो रहे थे कि अब क्या करें, वापस तो जा ही रहे हैं.
उधर, पुलिस के जवांमर्द सिपाही अपने ऊपर के अफसर अर्थात एक मोटे पुलिस इंस्पैक्टर, जो पैट्रोल कार में आधा बैठा और आधा पसरा हुआ था, को भुनभुनाते हुए कोस रहे थे कि उस की अकर्मण्यता और सुस्ती के कारण लाठीचार्ज करने का एक इतना खूबसूरत मौका हाथ से फिसला जा रहा था. पैट्रोल कार वालों को इतने अच्छे अवसर कहां मिल पाते हैं अपने हाथों की खुजली मिटाने के? सारा मजा तो थाने में नियुक्त पुलिस वाले ही करते हैं.
अपनी कार की अधजली लाश को कन्हैयालाल और उस की पत्नी ठगे से देखते रहे. कार के अंदर की हालत का जायजा लेने के लिए उन्होंने दरवाजे खोलने की कोशिश की तो पाया कि वे जाम हो गए थे. खिड़कियां तो अंदर से बंद थीं ही. रात के साढ़े 11 बजे कार को कहीं ले जाने का प्रश्न ही नहीं था. सुबह होने पर ही बीमा कंपनी को सूचित करने के बाद अगला कदम उठाया जा सकता था. इसलिए कन्हैयालाल ने पत्नी, जो अभी तक सिसक रही थी, के साथ घर जाने का निश्चय किया. जब पार्किंग के आदमी ने उन्हें याद दिलाई कि गाड़ी रातभर वहां छोड़ने का चार्ज 100 रुपए लगेगा तो उन्हें अपने जख्मों पर नमक छिड़के जाने की अनुभूति हुई पर मजबूरी थी, इसलिए मन मार कर हामी भरी और एक औटोरिकशे में बैठ कर वे घर वापस आ गए.
कन्हैयालाल को सपने में भी गुमान नहीं था कि आग लगने की खबर आग से भी ज्यादा तेजी से फैलेगी. अभी वे नित्यक्रिया से भी नहीं निबटे थे कि उन के पड़ोसी रामलाल, जो वकील थे, आ पहुंचे. उन्होंने बताया कि उन तक खबर एक और चश्मदीद गवाह द्वारा पहुंची थी. असल में वे अपने बेटे की बाबत कह रहे थे जो कल रात पिक्चर देखने गया था पर उसे मेरे बेटे के बजाय ‘चश्मदीद गवाह’ कह कर जो बात उन्होंने शुरू की उस का सारांश यह था कि कन्हैयालाल की कार बनाने वाली कंपनी पर दावा वे बीमे से हरजाने की रकम मिलने के बाद ठोकेंगे और अपनी फीस पड़ोसी होने के नाते कंसैशनल रेट पर लेंगे.
कन्हैयालाल ने जब कहा कि कार का कौम्प्रिहैंसिव बीमा था. वह सिर्फ 7 महीने पुरानी थी इसलिए डैप्रिसिएशन भी नहीं कटेगा और कार के पूरे दाम मिल जाएंगे तो वकील साहब पहले तो जोरजोर से हंसे फिर उन्होंने कन्हैयालाल की नादानी पर तरस खाते हुए समझाया कि बात कार के रिप्लेसमैंट की नहीं थी. बात थी इस दुर्घटना से कन्हैयालाल को होने वाले मानसिक संताप की और उन की पत्नी, जो दिल की मरीज थीं, के स्वास्थ्य पर लगे गहरे आघात की, जिस के कारण पत्नी का जीवन खतरे में था.
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