पत्नी के उलाहनों से तंग आ गए थे कन्हैयालाल. उन की पत्नी अपने प्रिय हीरो परेशान खान की फिल्म देखने की रोज जिद करती थी. आखिरकार, कन्हैयालाल ने शनिवार की शाम को फिल्म दिखाने का निश्चय कर ही लिया. उन्होंने उसे समझाया तो बहुत कि दुकान जल्दी बंद कर के उन के चले आने या दो सुस्त और लापरवा सहायकों के भरोसे दुकान छोड़ आने की अपेक्षा 50 रुपए में उसी सप्ताह रिलीज हुई पिक्चर की पाइरेटेड सीडी से घरबैठे वीडियो देखना कहीं अधिक बुद्धिमानी का काम होगा, पर पत्नी नहीं मानी थी.
एक तो उसे न मालूम किस दुश्मन ने समझा दिया था कि पाइरेटेड सीडी खरीदना गलत काम है. दूसरे, वह पति के पीछे इसलिए पड़ गई थी कि वे यदि परेशान खान की तरह अपनी तेजी से गंजी हो रही खोपड़ी पर ग्राफ्ंिटग के महंगे तरीके को नहीं आजमाना चाहते तो कम से कम स्वयं अपनी आंखों से देख लें कि अपनी प्रत्यारोपित घनी काली जुल्फों के चलते गंजा होता जा रहा परेशान खान अपनी नई फिल्म में कितना सजीला जवान लगने लगा था. उसे पूरी आशा थी कि इस के बाद और कुछ नहीं तो कम से कम एक अच्छी सी विग खरीदने के लिए तो वे तैयार हो ही जाएंगे.
कन्हैयालाल जब एक बार निश्चय कर लें तो उसे अवश्य पूरा करते हैं, इसलिए उस शनिवार वे सचमुच रात को 8 बजे ही घर आ गए और फिर पत्नी को साथ ले कर 9 बजे उस मल्टीप्लैक्स के परिसर में पहुंच गए जहां परेशान खान के दीवानों का सागर लहरा रहा था.