जनार्दन जिस समय अपनी कोठी पर पहुंचे, शाम के 6 बज रहे थे. उन्होंने बिना आवाज दिए बड़ी सहजता से दरवाजा बंद किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, ताकि लीना जाग न जाए. डाक्टर ने कहा था कि उसे पूरी तरह आराम की जरूरत है. आराम मिलने पर जल्दी स्वस्थ हो जाएगी. लेकिन अंदर पहुंच कर उन्होंने देखा कि लीना जाग रही थी. वह अंदर वाले कमरे में खिड़की के पास ईजीचेयर पर बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी.
‘‘आज थोड़ी देर हो गई.’’ कह कर जनार्दन ने पत्नी के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूछा, ‘‘अब तबीयत कैसी है?’’
लीना कोई जवाब देती, इस से पहले ही फोन की घंटी बजने लगी. जनार्दन ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘जीनार्दन पांडेय…’’
दूसरी ओर से घुटी हुई गंभीर अस्पष्ट आवाज आई, ‘‘पांडेय… स्टेट बैंक के मैनेजर…?’’
‘‘जी आप कौन?’’ जनार्दन पांडे ने पूछा.
‘‘यह जानने की जरूरत नहीं है मि. पांडेय. मैं जो कह रहा हूं, ध्यान से सुनो, बीच में बोलने की जरूरत नहीं है.’’ फोन करने वाले ने उसी तरह घुटी आवाज में धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी मेरे कब्जे में है. इसलिए मैं जैसा कहूंगा, तुम्हें वैसा ही करना होगा. थोड़ी देर बाद मैं फिर फोन करूंगा, तब बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है.’’
दूसरी ओर से फोन कट गया. जनार्दन थोड़ी देर तक रिसीवर लिए फोन को एकटक ताकते रहे. एकाएक उन की मुखाकृति निस्तेज हो गई. पीछे से लीना ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’
जनार्दन ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं थी.’’
जनार्दन पत्नी से सच्चाई नहीं बता सकते थे. क्योंकि उस की तबीयत वैसे ही ठीक नहीं थी. यह सदमा सीधे दिमाग पर असर करता. इस से मामला और बिगड़ जाता. जनार्दन रिसीवर रख कर पूरे घर में घूम आए, सैवी कहीं दिखाई नहीं दी. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘सैवी घर में नहीं है, लगता है पार्क में खेलने गई है?’’
‘‘हां, आप के आने से थोड़ी देर पहले ही निकली है,’’ लीना खड़ी होती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो चाय पी ली है, आप के लिए बनाऊं?’’
जनार्दन ने चाय के लिए मना कर दिया. घड़ी पर नजर डाली, सवा 6 बज रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ी देर बाद चाय पिऊंगा. अभी एक आदमी से मिल कर उस के एक चैक के बारे में पता करना है.’’
दरवाजा खोलते हुए उन के दिमाग में एक बात आई तो उन्होंने पलट कर लीना से पूछा, ‘‘इस के पहले तो मेरे लिए कोई फोन नहीं आया था?’’
‘‘नहीं, फोन तो नहीं आया.’’ लीना ने कहा.
जनार्दन ने राहत की सांस ली. लेकिन इसी के साथ ध्यान आया कि अगर सैवी के अपहरण का फोन पहले आया होता, तो घर में हड़कंप मचा होता. वह सोचने लगे कि इस मामले से कैसे निपटा जाए. उन्हें लगा कि कहीं बैठ कर शांति से विचार करना चाहिए.
वह घर से बाहर निकले और सोसाइटी के बाहर बने सार्वजनिक पार्क में फव्वारे के पास बैठ कर सोचने लगे. उन्हें लगा कि सैवी के अपहरण की योजना बहुत सोचसमझ कर बनाई गई थी. उस ने फोन भी मोबाइल के बजाए लैंडलाइन पर किया. क्योंकि मोबाइल पर नंबर आ जाता और वह पकड़ा जाता.
शायद उसे हमारे घर का नंबर ही नहीं, यह भी पता है कि हमारे फोन में कौलर आईडी नहीं है. अपहर्त्ता न जाने कब से सेबी के अपहरण की योजना बना रहे थे. योजना बना कर ही उन्होंने आज का दिन चुना होगा. आज बैंक की तिजोरी में पूरे 80 लाख की रकम रखी है.
लगता है, अपहर्त्ताओं को कहीं से इस की जानकारी मिल गई होगी. यह भी संभव है कि आज इतने रुपए आना और सैवी का अपहरण होना, महज एक संयोग हो. अगर यह संयोग नहीं है, तो इस अपहरण में बैंक का कोई कर्मचारी भी शामिल हो सकता है?
यह बात दिमाग में आते ही जनार्दन का मूड खराब हो गया. वह सोचने लगे कि बैंक का कौन सा कर्मचारी ऐसा कर सकता है. तभी उन्हें लगा कि मूड खराब करना ठीक नहीं है. मूड ठीक रख कर शांति से सोचनाविचारना चाहिए. अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंसी बेटी और लीना की बीमारी को भूल कर गंभीरता से विचार करना चाहिए. वह बैंक के एकएक कर्मचारी के बारे में सोचने लगे कि उन में कौन अपहर्त्ता हो सकता है या कौन मदद कर सकता है. उन्हें लगा कि मोटे कांच का चश्मा लगाने वाला चीफ कैशियर उन की मदद कर सकता है.
जनार्दन पांडेय अपने कर्मचारियों में बिलकुल प्रिय नहीं थे. पीछेपीछे उन्हें सभी ‘जनार्दन….’ कहते थे. इस की वजह यह थी कि वह छोटीछोटी बातों पर सभी से सतर्क रहने को कहते थे और जरा भी गफलत बरदाश्त नहीं करते थे.
वह झटके से उठे, क्योंकि उन के पास समय कम था. घटना कैसे घटी, इस के बारे में जानकारी जुटाना जरूरी थी. फिर दूसरे फोन का भी इंतजार करना था. अगर फोन आ गया और उन की गैरमौजूदगी में लीना ने फोन उठा लिया, तो…तभी उन्हें लगा कि एक बार वह पार्क में घूम कर सैवी को देख लें.
उन्होंने पार्क में खेल रहे बच्चों पर नजर डाली, सैवी दिखाई नहीं दी. फोन पर घुटी हुई अस्पष्ट आवाज सुनाई दी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे आवाज को दबा कर बदलने की कोशिश की जा रही हो. शायद रिसीवर पर कपड़ा रख कर अस्पष्ट बनाने की कोशिश की गई थी. लेकिन उस का कहने का ढंग जानापहचाना लग रहा था.
उस समय जनार्दन याद नहीं कर पाए कि वह आवाज किस की हो सकती थी. जनार्दन के घर में कदम रखते ही फोन की घंटी बज उठी. यह संयोग था या उन पर कोई नजर रख रहा था कुछ भी हो सकता था. फोन कहीं आसपास से ही किया जा रहा था और फोन करने वाले को अपनी आवज पहचाने जाने का डर था, इसीलिए वह अपनी आवाज को छिपा रहा था. जनार्दन ने लपक कर फोन उठा लिया. उन के कुछ कहने के पहले ही दूसरी ओर से पहले की ही तरह कहा गया, ‘‘बेटी को सब जगह देख लिया न? अब मेरी बात पर विश्वास हो गया होगा. खैर, मेरे अगले फोन का इंतजार करो.’’
फोन की घंटी सुन कर लीना भी कमरे में आ गई थी. जनार्दन के फोन रखते ही उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था? आप का काम हो गया?’’
पहले सवाल के जवाब को गोल करते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘वह आदमी घर में नहीं था. अभी फिर जाना होगा.’’
कह कर जनार्दन ने बाहर जाने का बहाना बना दिया.
‘‘मैं चाय बनाए देती हूं. चाय पी कर जाना.’’ लीना ने कहा. लीना बीमार थी, लेकिन घर के काम करती रहती थी.
जनार्दन ने बाथरूम में जा कर ठंडे पानी से मुंह धोया. मन में उथलपुथल मची थी. फोन पड़ोस के मकान से हो सकता है या फिर ऐसी जगह से, जहां से उन के घर पर ठीक से नजर रखी जा सकती थी. उन्हें पूरी संभावना थी कि ये फोन उन्हीं की सोसाइटी के किसी मकान से आ रहे थे.
जनार्दन ने बाथरूम से बाहर आ कर ड्राइंगरूम की खिड़की खोली. सिर बाहर निकाल कर इधरउधर देखा. उस गली में कुल 12 मकान थे. 6 एक तरफ और 6 दूसरी तरफ. उन के मकान के बाईं ओर एक मकान था. जबकि दाहिनी ओर 4 मकान थे. उस के बाद पार्क था. उसी तरह सामने की लाइन में 6 मकान थे. पार्क के आगे वाले हिस्से में माली का क्वार्टर था. उसी के सामने एक दुकान थी. इस इलाके में घर के रोजमर्रा के सामानों की वही एक दुकान थी.
कालोनी के अन्य 11 मकानों में रहने वालों को जनार्दन अच्छी तरह जानते थे. उन्हें लगता नहीं था कि इन लोगों में कोई ऐसा काम कर सकता है. दुकान का मालिक पंडित अधेड़ था. उसे भी जनार्दन अच्छे से जानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि पंडित इस तरह का काम कतई नहीं कर सकता. चाय पी कर वह बाहर निकलने लगे तो लीना ने कहा, ‘‘सैवी अभी तक नहीं आई. जाते हुए जरा उसे भी देख लेना.’’
‘‘आ जाएगी. अभी तो कालोनी के सभी बच्चे खेल रहे हैं. और हां, खाना खाने की इच्छा नहीं है, इसलिए खाना थोड़ा देर से बनाना.’’
लीना ने जनार्दन के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’
‘‘आज काम थोड़ा ज्यादा था, इसलिए भूख मर सी गई है.’’ जनार्दन ने सफाई दी तो लीना बोली, ‘‘इस तरह काम करोगे, तो कैसे काम चलेगा.’’
खिड़की से हवा का झोंका आया. उस में ठंडक थी. नहीं तो पूरे दिन आकाश से लू बरसी थी. पत्थर को भी पिघला दे, इस तरह की लू जनार्दन सैवी के बारे में सोच रहे थे. बदमाशों ने उसे न जाने कहां छिपा रखा होगा? उस के हाथपैर बांध कर इस भीषण गर्मी में कहीं फर्श पर फेंक दिया होगा. जनार्दन का मन द्रवित हो उठा और आंखें भर आईं.
‘‘मैं जरा चैक के इस बारे में पता कर लूं.’’ दूसरी ओर मुंह कर के जनार्दन घर से बाहर आ गए. गली सुनसान थी. वह पंडित की दुकान पर जा कर बोले, ‘‘कैसे हो पंडितजी, आज इधर कोई अनजान आदमी तो दिखाई नहीं दिया?’’
पंडित थोड़ी देर सोचता रहा. उस के बाद हैरान सा होता हुआ बोला, ‘‘नहीं साहब, कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया.’’ इस के बाद उस ने मजाक किया, ‘‘बैंक मैनेजर अब नौकरी बचाने के लिए खातेदारों की तलाश करने लगे हैं क्या?’’
पंडित के इस मजाक का जवाब दिए बगैर जनार्दन आगे बढ़ गए. वह पलट कर चले ही थे कि पंडित के दुकान में लगे फोन की घंटी बजी. पंडित ने रिसीवर उठाया, उस के बाद हैरानी से बोला, ‘‘अरे पांडेजी, आप का फोन है. ताज्जुब है, फोन करने वाले को यह कैसे पता चला कि आप यहां हैं?’’
जनार्दन ने फुर्ती से पंडित के हाथ से रिसीवर ले कर कहा, ‘‘हैलो.’’
वही पहले वाली जानीपहचानी घुटी हुई अस्पष्ट आवाज, ‘‘पांडेजी आप अपनी बेटी को जीवित देखना चाहते हैं, तो मैं जैसा कहूं, वैसा करो. देख ही रहे हो. आजकल एक्सीडेंट बहुत हो रहे हैं, आप की बेटी का भी हो सकता है. याद रखिएगा 9 बजे.’’
‘‘मुझे पता कैसे चलेगा…?’’ जनार्दन ने कहा. लेकिन उन की बात सुने बगैर ही अपहर्त्ता ने फोन काट दिया. उन्होंने तुरंत रिसीवर रख दिया और उत्सुकता की उपेक्षा कर के आगे बढ़ गए.
अब उन्हें 9 बजे का इंतजार करना था. वह परेशान हो उठे. इतनी देर तक वह अपना क्षोभ और सैवी के अपहरण की बात कैसे छिपा पाएंगे. क्योंकि घर पहुंचते ही लीना बेटी के बारे में पूछने लगेगी. उन्हें लगा लीना को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. यही सोचते हुए वह कालोनी के गेट की ओर बढ़े. तभी उन्होंने देखा, कालू माली 2 बच्चों को गालियां देते हुए दौड़ा रहा था.
शायद उन्होंने फूल तोड़ लिए थे. गेट के बाहर आते ही एक बच्चा सड़क पर गिर पड़ा. भयंकर गर्मी से सड़क का पिघला तारकोल अभी ठंडा नहीं पड़ा था. वह बच्चे के घुटने में लग गया तो वह कुछ उस से और कुछ कालू माली के डर से रोने लगा. बड़बड़ाता हुआ कालू उस की ओर दौड़ा. उस ने बच्चे को उठा कर खड़ा किया और उस के घुटने में लगा तारकोल अपने अंगौछे से साफ कर दिया. तारकोल पूरी साफ तो नहीं हुआ फिर भी बच्चे को सांत्वना मिल गई. उस का रोना बंद हो गया.
कालू अपना अंगौछा रख कर खड़ा हुआ, तब तक जनार्दन उस के पास पहुंच गए. उन्हें देख कर वह जानेपहचाने अंदाज में मुसकराया. जनार्दन ने पूछा, ‘‘कालू, इधर कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया?’’
‘‘नहीं साहेब, अनजान पर तो मैं खुद ही नजर रखता हूं. आज तो इधर कोई अनजान आदमी नहीं दिखा.’’
जनार्दन घर की ओर बढ़े. अब 9 बजे तक इंतजार करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह जैसे ही घर पहुंचे, फोन की घंटी बजी. जनार्दन चौंके. अपहर्त्ता ने तो 9 बजे फोन करने को कहा था. फिर किस का फोन हो सकता है. कहीं अपहर्त्ता का ही फोन तो नहीं, यह सोच कर उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.
उन के ‘हैलो’ कहते ही इस बार अपहर्त्ता ने कुछ अलग ही अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने 9 बजे फोन करने को कहा था. लेकिन 9 बजे फोन करता, तो आप के पास मेरी योजना को साकार करने के लिए समय कम रहता. इसलिए अभी फोन कर रहा हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो, जैसे ही बात खत्म हो, कार से बैंक की ओर चल देना.
‘‘बैंक के पीछे वाले दरवाजे से अंदर जाना और उसे खुला छोड़ देना. गार्ड को कहना वह आगे ही अपनी जगह बैठा रहे. तुम तिजोरी वाले स्ट्रांगरूम में जाना और तिजोरी खुली छोड़ देना. तिजोरी और स्ट्रांगरूम का दरवाजा खुला छोड़ कर तुम जा कर अपने चैंबर में बैठ जाना.
चैंबर का दरवाजा अंदर से बंद कर के साढ़े 10 बजे तक वहीं बैठे रहना. उस के बाद तुम्हें जो करना हो करना, मेरी ओर से छूट होगी.’’
‘‘और उस की सलामती का क्या?’’ जनार्दन ने लीना के आगे सैवी का नाम लिए बगैर पूछा, ‘‘मुझे कैसे विश्वास हो कि उस का कुछ…’’
अपहर्त्ता ने जनार्दन को रोक लिया, ‘‘मैं तुम्हें एक बात की गारंटी दे सकता हूं. अगर हमारी योजना में कोई खलल पड़ी, हमारे कहे अनुसार न हुआ या हमें रात 11 बजे तक पैसा ले कर शहर के बाहर न जाने दिया गया, तो तुम अपनी बेटी को जीवित नहीं देख पाओगे.’’
जनार्दन का कलेजा कांप उठा. उन्होंने स्वयं को संभाल कर कहा, ‘‘तुम जो कह रहे हो, यह सब इतना आसान नहीं है. तिजोरी में 2 चाभियां लगती हैं, एक चाभी मेरे पास है, तो दूसरी हमारे चीफ कैशियर राजकुमार के पास.’’
‘‘मुझे पता है. इसीलिए तो अभी फोन किया है और कार ले कर चल देने को कह रहा हूं. राजकुमार से मिलने का अभी तुम्हारे पास पर्याप्त समय है. उस से कैसे चाभी लेनी है. यह तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’
‘‘अगर वह घर में न हुआ तो…?’’
‘‘वह घर में ही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में पता कर लिया है. नहीं भी होगा तो फोन कर के बुला लेना.’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया.
रिसीवर रखते हुए जनार्दन का हाथ कांप रहा था. लीना ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है? तिजोरी की चाभी की क्या बात हो रही थी?’’
‘‘अरे उसी चैक की बात हो रही थी,’’ जनार्दन ने सहमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे अभी बाहर जाना होगा. थोड़ी परेशानी खड़ी हो गई है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.’’
‘‘सेवी अभी तक नहीं आई है. जाते समय उसे घर भेज देना. बहुत खेल लिया.’’
सैवी का नाम सुनते ही जनार्दन का दिल धड़क उठा. उन्होंने घर से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’
जनार्दन ने कार निकाली. थोड़ी देर स्टीयरिंग पर हाथ रखे चुपचाप बैठे रहे. अपहर्त्ता की बात मानना उन की मजबूरी थी. उन्होंने समय देखा, राजकुमार शहर के दूसरे छोर पर रहता था. शाम के ट्रैफिक में आनेजाने में कितना समय लग जाए, कहा नहीं जा सकता. उन्हेंने उसे फोन कर के चाबी के साथ बैंक में ही बुलाने की सोची.
असहाय क्रोध की एक सिहरन सी पूरे शरीर में दौड़ गई. लेकिन उस समय शांति और धैर्य की जरूरत थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से क्रोध पर काबू पाया. घर से तो राजकुमार को फोन किया नहीं जा सकता था. मोबाइल फोन भी वह घर पर ही छोड़ आए थे. जिस से लीना फोन करे, तो पता चले कि फोन तो घर पर ही रह गया है. उस स्थिति में वह न उन के बारे में पता कर पाएगी, न सैवी के बारे में.
अब तक के वैवाहिक जीवन में उन्हें इस तरह कभी दोबारा बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ी थी. आज चैक के नाम पर वह लीना को बेवकूफ बना रहे थे. राजकुमार को तिजोरी की चाभी ले कर आने को कहते हैं, तो लीना समझ जाएगी कि जरूर कोई गड़बड़ है. उसे इस हालत में चिंता में डालना ठीक नहीं है.
उन्हें लगा कि फोन कर के लीना को बता दें कि सैवी उन के साथ है. इस से लीना उस के लिए परेशान नहीं होगी. रात में वह लौटेंगे, तो सैवी उन के साथ होगी. जनार्दन ने गाड़ी आगे बढ़ाई. कालोनी से बाहर आ कर उन्होंने पार्क के पास सड़क के किनारे कार रोक दी. दुकान पर काफी भीड़भाड़ थी, इसलिए वहां से उन्होंने फोन करना ठीक नहीं समझा. उन्होंने पार्क की ओर देखा, कालू माली गेट पर खड़ा सिगरेट पी रहा था. उस की निगाहें उन्हीं पर जमी थीं.
पार्क में खेलने वाले बच्चे अपनेअपने दादीदादा या मम्मियों के साथ चले गए थे या जा रहे थे. जनार्दन पार्क की ओर बढ़े. उन्हें अपनी ओर आते देख मुंह से सिगरेट का धुआं उगलते हुए कालू ने पूछा, ‘‘कोई काम है क्या साहब?’’
‘‘मेरी थोड़ी मदद करो कालू. मैं मोबाइल घर में भूल आया हूं. लौट कर जाऊंगा तो समय लगेगा. मुझे जल्दी से कहीं पहुंचना है. एक जरूरी फोन करना था. पार्क के फोन से एक फोन कर लूं?’’
कालू ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और मुंह से सिगरेट हटा कर धुआं उगलते हुए कहा, ‘‘क्या बात करते हैं साहब, यह भी कोई पूछने की बात है? आप का काम मेरा काम. यह फोन सरकार ने आप लोगों के लिए ही तो लगवाया है. फोन कमरे में मेज पर रखा है. जाइए, कर लीजिए.’’
पार्क के गेट के पास ही बाईं ओर 2 कमरों का एक छोटा सा बरामदे वाला मकान था. वही कालू का घर, औफिस स्टोर सब कुछ था. आगे वाले कमरे में कोने में रखी एक छोटी सी मेज पर फोन रखा था. पास ही टूटी हुई मूर्ति रखी थी. जनार्दन को याद आया, जब पार्क में फव्वारा बना था, तब उस में यही मूर्ति लगी थी. लेकिन कुछ ही दिनों में मूर्ति को बच्चों ने तोड़ दिया था.
जनार्दन को लगा, मूर्ति मेज के पीछे ठीक से नहीं रखी थी. स्वभाववश छोटीछोटी बातों का ध्यान रखने वाले जनार्दन ने मूर्ति को उठा कर ठीक से रखा. मूर्ति को ठीक करने के बाद उन्होंने फोन करने के लिए जैसे ही रिसीवर उठाया, उन्हें झटका सा लगा. रिसीवर को गौर से देखा, उस पर उन्हें कालेकाले दाग दिखाई दिए. वह सोच में डूब गए. उन्हें कुछ याद आने लगा, जिसे वह रिसीवर से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे.
अचानक दिमाग में बिजली सी कौंधी. समस्या के सारे समाधान अपने आप अपनीअपनी जगह फिट होते चले गए. एक ही झटके में उन की समझ में आ गया कि सैवी का अपहरण कोई देख क्यों नहीं सका. उन्हें विश्वास हो गया कि सैवी के अपहरण के किए गए फोनों से आने वाली आवाज कालू की थी. इस का मतलब सैवी को यहीं कहीं होना चाहिए. माली ने अपने इसी मकान में उसे कहीं छिपा रखा होगा.
मारे गुस्से के जनार्दन का शरीर कांपने लगा. लेकिन उन्होंने तुरंत अपने गुस्से को काबू में किया. दिमाग शांत और तीक्ष्ण बन गया. आखिर एक बैंकर का दिमाग था. वह जानते थे कि पहलवानी वाले शरीर का मालिक कालू काफी ताकतवर था. अब तक पार्क में सिर्फ कुछ बुजुर्ग और 2-4 महिलाएं बची थीं. वहां ऐसा कोई नहीं था जो कालू को रोक पाता, इसलिए जनार्दन कुछ ऐसा करना चाहते थे कि कालू भाग न सके. यही सोच कर उन्होंने आराम से रिसीवर रख दिया और मेज के पीछे रखी कांसे की मूर्ति उठा ली.
मूर्ति के वजन का अंदाजा लगा कर जनार्दन ने तुरंत कालू पर हमले की योजना बना ली. कालू पार्क की ओर मुंह किए बरामदे में खड़ा था. जनार्दन दबे पांव फुर्ती से 3 कदम आगे बढ़े और कालू की गर्दन पर मूर्ति का तेज प्रहार कर दिया. एक ही वार में कालू जमीन पर गिरा और बेहोश हो गया. जनार्दन ने तुरंत वहां पेड़ों को बांधने के लिए रखी प्लास्टिक की रस्सी उठाई और पीछे कर के उस के देनों हाथ बांधने लगे. कालू की चीख सुन कर पार्क में बैठे बुजुर्ग और टहल रही महिलाएं वहां आ गईं. लेकिन तब तक जनार्दन कालू के हाथ बांध चुके थे.
उन लोगों से शांति से खड़े रहने को कह कर जनार्दन कालू के क्वार्टर में घुसे. पीछे के बंद कमरे में पड़ी चारपाई पर सैवी पड़ी थी. उस के मुंह पर कपड़ा बंधा था. उस भीषण गर्मी में अंदर का पंखा भी बंद था. जनार्दन ने जल्दी से मुंह पर बंधा कपड़ा खोला और बेटी को सीने से लगा कर बाहर आ गए.
जनार्दन के साथ पसीने से लथपथ उन की बेटी को देख कर लोग हैरान रह गए. रोने से सैवी की आंखों से बहे आंसुओं की लाइन गालों पर साफ नजर आ रही थी. सैवी को देख कर सभी समझ गए कि मामला क्या था.
पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया गया, कंट्रोल रूम की जीप पास में ही कहीं थी, 5 मिनट में आ गई. अब तक कालू को होश आ गया था. जनार्दन की गोद में सैवी को और पुलिस को देख कर वह समझ गया कि उस की पोल खुल चुकी है. थोड़ी देर में कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना पुलिस भी आ गई. कालू को हिरासत में ले कर थानाप्रभारी ने जनार्दन से पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आप की बेटी का अपहरण कालू ने किया है?’’
बेटी की पीठ सहलाते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं यहां फोन करने न आया होता तो कालू की करतूत का पता न चलता. अपहर्त्ता मेरे आसपास ही है, इस बात का अंदाजा तो मुझे पहले ही हो गया था. लेकिन थोड़ी देर पहले एक घटना घटी थी, जिस की वजह से कालू पकड़ा गया.
‘‘शाम को एक बच्चे के घुटने में लगा सड़क का तारकोल कालू ने अपने अंगौछे से पोंछा था. उस के बाद इस ने मुझे फोन किया, इस ने अपनी आवाज बदलने के लिए रिसीवर पर अंगौछा रखने की युक्ति अपनाई थी. उसी समय इस के अंगोछे का तारकोल रिसीवर में लग गया होगा. वही दाग मैं ने रिसीवर पर देखा तो समझ गया कि जिस अंगोछे से बच्चे के घुटने का तारकोल साफ किया गया था, वही अंगोछा इस रिसीवर पर रखा गया था, जिस का तारकोल इस में लग गया है.’’
पुलिस कालू को पकड़ कर ले जाने लगी तो सैवी ने कहा, ‘‘डैडी, अब आप हमें पार्क में खेलने के लिए कभी नहीं आने देंगे?’’
‘‘क्यों नहीं आने देंगे बेटा,’’ जनार्दन ने बेटी का गाल चूमते हुए कहा, ‘‘बिलकुल आने दूंगा. बेटा हर आदमी कालू की तरह खराब नहीं होता. और जो खराब होता है, वह कालू की तरह जेल जाता है.’’
बेटी के अपहरण और बरामद होने की जानकारी लीना को हुई तो उस ने बेटी को सीने से लगा कर अपना सिर जनार्दन के कंधे पर रख दिया, ‘‘इतना बड़ा संकट आप ने अकेले कैसे झेल लिया. बेटी को मिलने में देर होती तो क्या करते?’’
‘‘कह देता कि वह मेरे साथ है. मैं जरूरी काम से बैंक में हूं. वह मिल जाती, मैं तभी घर लौटता.’’ जनार्दन ने लीना का सिर सहलाते हुए कहा.