बिना कुछ सोचेसमझे नरेंद्र ने उस पंडित की बातों में आ कर अपने बेटे की शादी अपने परम मित्र की बेटी मीरा से तय कर दिया. यह भी नहीं सोचा कि अभी वे मासूम बालक हैं. उन्हें तो सिर्फ अपना स्वार्थ दिखा. जब दोनों बच्चों की शादी तय हुई थी तब मनीष की उम्र 3 साल थी और मीरा एक साल की थी. दोनों अबोध बच्चों को क्या पता कि उन की ज़िंदगी का फैसला तो हो चुका है. बाल विवाह, जो एक भयंकर अपराध है, मगर यह अपराध हुआ और पूरे गांव समाज के सामने हुआ. क्योंकि इसी में उन्हें अपने बच्चों की भलाई दिकखी. पुलिस क्या कर सकती थी, क्योंकि इस गांव में तो वही होता था जो गांव के पंच फैसला करते थे.
यह सोच कर ही बड़ा अजीब लगता है कि उस भारत, जो अपनेआप में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, में आज भी एक ऐसी कुरीति जिंदा है. एक ऐसी कुरीति जिस में 2 अपरिपक्व लोग, जो आपस में बिल्कुल अंजान हैं, उन्हें जबरन ज़िंदगीभर साथ रहने के लिए एक बंधन में बांध दिया जाता है और वे 2 अपरिपक्व बालक शायद ज़िंदगीभर इस कुरीति से उबर नहीं पाते हैं. और बाद में स्थितियां इतनी भयानक हो जाती हैं कि जिस का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. बालविवाह के केवल दुष्परिणाम ही होते हैं. लेकिन फिर भी अपनी खुशी के लिए लोग बाज नहीं आते हैं.
स्कूली पढ़ाई पूरी होते ही आगे की पढ़ाई के लिए मनीष को शहर भेज दिया गया. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही बेंगलुरु की एक बड़ी कंपनी में उस की नौकरी लग गई जहां उस की मुलाक़ात शैली से हुई. कब और कैसे दोनों एकदूसरे के करीब आ गए, पता ही न चला. उसे इस बात की आत्मग्लानि होती थी कि वह शैली से अपने शादीशुदा होने की बात छिपा रहा है, पर एक डर कि कहीं सच जानने के बाद शैली का साथ न छूट जाए, इस बात से ही मनीष सिहर उठता था. और इसलिए आज तक उस ने उस से अपनी शादी की बात छिपा कर रखी थी.