“कितना बोलती हो तुम,” शैली की बकबक से मनीष खीझ उठा, “तुम्हें क्या लगता है मैं उन लड़कों में से हूं जो लड़कियों का फायदा उठा कर उन्हें छोड़ देते हैं? जानती हो न, मैं तुम से कितना प्यार करता हूं? फिर क्यों, क्यों तुम हमेशा शादी की बात पर आ कर अटक जाती हो? यह क्या मुसीबत है? शादी जैसे रिश्तों में बंध कर ही प्यार का सुबूत दिया जा सकता है क्या? दुनिया में कितने ऐसे कपल हैं जो आराम से बिना शादी किए रह रहे हैं, तो तुम क्यों बारबार शादी की रट लगाए हुई हो?”
“हां, रट लगाए हुई हूं क्योंकि मुझे अपने पेरैंट्स को जवाब देना है.” उस दिन शैली ने ठान लिया कि वह मनीष से पूछ कर ही रहेगी कि वह उस से शादी करना चाहता भी है या नहीं? या यों उस के साथ... ”मेरे मांपापा ने किसी चीज पर रोकटोक नहीं लगाई आज तक, यहां तक कि जीवनसाथी चुनने का भी अधिकार दिया मुझे. तो क्या मेरा फर्ज़ नहीं बनता कि मैं उन की बात मानूं? मांपापा चाहते हैं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए, तो क्या गलत है, मनीष? मैं भी चाहती हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. लेकिन तुम क्यों मना कर रहे हो, यह बात मुझे समझ नहीं आ रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम शादी करना ही नहीं चाहते और मेरे साथ, बस, टाइमपास कर रहे हो?”
शैली को लगने लगा था कि कहीं मनीष का प्यार भी उन लड़कों जैसा तो नहीं है जो सिर्फ लड़कियों के शरीर से प्यार करते हैं और शादी अपने मांबाप की मरजी से? “मनीष, मुझे आज जवाब चाहिए...” बात अधूरी छोड़ शैली ने लंबी सांस ली और मन को शांत करने की नाकाम कोशिश करने लगी. मगर मन काफी उथलपुथल हो रहा था. वह जानना चाहती थी कि आखिर क्यों, शादी के नाम से ही मनीष के तेवर बदल जाते हैं? मगर मनीष ने उस की बातों का कोई जवाब न दिया और कमरे में चला गया. कुछ देर बाद शैली भी कमरे में आई, लेकिन उसे देख मनीष ने करवट बदल ली. दोनों बैड के अलगअलग छोर पर लेटे रहे, न तो मनीष ने और न ही शैली ने एकदूसरे से कोई बात की. कई बार सोचा मनीष ने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम ले, खूब प्यार करे. मगर फिर वही सवाल कि ‘तुम शादी क्यों नहीं करना चाहते हो, बोलो न, जवाब दो.’ लेकिन क्या जवाब दे वह और कैसे?