मेहमानों को विदा कर अभी शैली ने दरवाजा लगाया ही था कि मनीष ने उसे बांहों में भर लिया और उस के गालों को चूमते हुए बोला, “हैप्पी बर्थडे’ माई जान.“
“थैंक यू, थैंक यू सो मच” कह कर उस ने भी मनीष को चूम लिया और बोली, “पार्टी बहुत अच्छी रही. सरप्राइज़ पार्टी रखने के लिए थैंक्स अगेन,” यह बोलते हुए शैली का चेहरा खुशी से दमक रहा था. आज शैली का जन्मदिन था और उस की सारी तैयारी मनीष ने अपने हाथों से की थी. केक बनाने से ले कर घर की सारी सजावट उस ने खुद ही की थी. शैली को पता न चल जाए, इसलिए वह सुबह से ही अपनी तबीयत खराब होने का बहाना कर औफिस नहीं गया, ताकि पार्टी की तैयारियां कर सके.
शाम को मनीष के लिए दवाइयां ले कर शैली थकेहारे और बुझेमन से घर में दाखिल हुई ही थी कि अपने सिर पर फूलों की बारिश होते देख आश्चर्यचकित रह गई. कुछ समझ पाती, इस से पहले ही ‘हैप्पी बर्थ डे डियर शैली’ कह कर जब दोस्तों ने उसे घेर लिया, तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. सब समझ गई वह कि मनीष की कोई तबीयत खराब नहीं थी, बल्कि उस ने बहाना बनाया, ताकि उस के जन्मदिन की पार्टी की तैयारियां कर सके. अपने लिए मनीष के दिल में इतना प्यार देख कर शैली की आंखें भर आईं.
“तुम मुझे इतना प्यार करते हो मनीष?” मनीष के कंधे पर सिर रख शैली बोली, “बहुत खुशनसीब हूं मैं, जो तुम जैसा साथी मिला मुझे. मेरी यही ख्वाहिश है कि हर जन्म में तुम मेरे साथी बनो और मेरी आखिरी सांस तुम्हारी बांहों में निकले.“
“दोबारा ऐसी बात अपने मुंह से कभी मत निकालना शैली, तुम्हें मेरी कसम,” उस के होंठों पर उंगली रख मनीष बोला, “तुम मेरी ज़िंदगी हो. और जब तक मैं हूं, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता, आई प्रौमिस.” यह कह कर उस ने शैली को बांहों में कस लिया और वह भी अपने मनीष के सीने से लग गई और फिर दोनों एकदूसरे की बांहों मे खो गए. धर्म, जाति, ऊंचनीच, अमीरीगरीबी हर बंधन से आजाद इन का प्यार 4 वर्षों से हर दिन और गहरा होता जा रहा था. लैलामजनूं, हीररांझा से कम नहीं था इन का प्यार. दोनों दो बदन एक जान थे जैसे.
आज से 4 साल पहले दोनों एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. यह शहर और नौकरी दोनों के लिए नए थे, इसलिए इन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से दोनों इतने प्रभावित हुए कि धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे और यह करीबी कब आकर्षण में बदल गई, इन्हें पता न चला. मनीष यहां 5 लड़कों के साथ रूम शेयरिंग में रहता था, वहीं शैली पीजी में रह रही थी. मगर दोनों को वहां रहना अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए विचार कर दोनों अपनाअपना स्थान छोड़ कर 2 कमरे के किराए का घर ले कर रहने लगे. एक तो घर जैसा माहौल मिलने लगा उन्हें और साथ में जीवन में नई खुशियां भी आ गईं. अब रोज दोनों मिलजुल कर घर का काम निबटा कर औफिस निकल जाते और आते समय उधर से ही दूध, फल, सब्जी वगैरह खरीद लाते. जो घर पहले आ जाता, खाना वही बना लिया करता था.
साथ रहने से इन के बीच प्यार पनपने लगा था और इस बात का अंदाजा उन्हें तब हुआ जब दोनों एकदूसरे के बगैर बेचैन हो उठते. अब जरा देर भी एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल होने लगा था उन्हें. शैली जब कभी अपने मम्मीपापा के पास दिल्ली चली जाती कुछ दिनों के लिए, मनीष का एकएक पल काटना मुश्किल हो जाता. लगता, कैसे भी कर के शैली यहां आ जाए. कभी मज़ाक में भी शैली उसे छोड़ कर चले जाने की बात कह देती, तो वह आहत हो उठता और कहता, ‘ऐसी बातें मत करो, नहीं तो मैं मर जाऊंगा. तुम्हारे बगैर तो अब जीने को सोच भी नहीं सकता’ और उस की बात पर शैली खिलखिला कर हंस पड़ती. मनीष के दिल में अपने लिए ढेर सारा प्यार देख कर शैली गदगद हो उठती थी. मगर हैरान वह तब रह जाती जब शादी के नाम से ही मनीष का मूड खराब हो जाता, कहता वह कि क्या उन के रिश्तों को शादी का नाम देना जरूरी है? पूरा जीवन ऐसे नहीं रह सकते साथ में दोनों?
“हां, जरूरी है मनीष,” उस का चेहरा अपनी तरफ करते हुए उस रोज शैली कहने लगी थी, “हम जिस समाज में रहते हैं वहां रिश्ते को नाम देना जरूरी है. मनीष, यह बात तुम क्यों नहीं समझते? और मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि जब हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और 4 साल से पतिपत्नी की तरह साथ रह रहे हैं, तो फिर इस रिश्ते को नाम क्यों नहीं दे सकते हम? बोलो, समस्या क्या है?”
“समस्या-उमस्या कुछ नहीं है, लेकिन प्लीज, ये सब बातें कर मेरा मूड मत खराब करो. और क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?” मनीष ने झुंझलाते हुए कहा.
“नहीं, ऐसी बात नहीं है. भरोसा नहीं है तुम पर, ऐसा मैं ने कब कहा. पर मेरी बात भी तो समझो तुम. मांपापा चाहते हैं अब मुझे शादी कर लेनी चाहिए. कल रात भी फोन पर मां यही कह रही थी कि पापा को मेरी शादी की फिक्र सताने लगी है. वे चाहते हैं अब मैं अपनी गृहस्थी बसा लूं. और क्या गलत चाहते हैं वे? हर मांबाप यही चाहते हैं कि वक़्त के साथ उन के बच्चों की गृहस्थी बस जाए, मगर तुम क्यों नहीं समझते यह बात, बोलो? क्यों जब भी मैं शादी की बात करती हूं तो या तो तुम बात बदल देते हो या मेरा ही ब्रेनवाश कर देते हो यह समझाबुझा कर कि शादी और बच्चे के झंझट में क्यों फंसना जब ज़िंदगी आराम से बीत रही है तो? और मैं भी पागल तुम्हारी बातों में आ जाती हूं. लेकिन अब मैं ऐसे लिवइन में नहीं रहना चाहती, चाहती हूं हमारे रिश्ते को भी नाम मिले.“