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यास्मीन को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ था. सदमा इतना बड़ा लगा था कि रिपोर्ट पढ़ने और देखने तक की जरूरत नहीं समझी उस ने. आंसुओं का सैलाब आंखों में था और दिल डूबा जाता था. पर भला अब रोने से क्या फायदा होने वाला था.

अम्मीअब्बू की खुशियां भी नदारद सी हो गई थीं, आंखों में जो सपने टिमटिमा रहे थे, वे कहीं बुझ गए थे और घर का माहौल एकदम मुरदा हो गया था. कोई किसी से बात तक नहीं करता था.

फजल अकसर संजीदा हो कर एक बच्चे की बात सामने रखते और कहते थे कि अम्मीअब्बू को कितना शौक है छोटे बच्चे खिलाने का, पर...

इन सब बातों के बाद भी फजल ने यास्मीन का ध्यान रखना नहीं छोड़ा. वे रोज रात को गरम दूध और खजूर जरूर उसे खिलाते. पर हां, वे खुद में ही सिमट गए थे और गमजदा भी रहते थे. अम्मीअब्बू भी हमेशा गुमसुम से रहते थे.

यास्मीन को फजल बातोंबातों में ही ये एहसास करा देते कि खुद फजल तो पाकसाफ है, पर कमी तो यास्मीन में ही है. पर, यास्मीन को कुछ बातें समझ आतीं कुछ नहीं भी समझ आतीं, पर वह इतना जरूर समझ गई थी कि वह बांझ है और उस को अब फजल पर बोझ नहीं बनना चाहिए.

और धीरेधीरे वह समय भी आ गया, जब यास्मीन ने खुद ही अपने तलाक की बात फजल से कह दी, ‘‘मैं जानती हूं कि आप के बिना मैं रह नहीं पाऊंगी और मेरा वजूद भी आप के बिना अधूरा है, पर इस घर को भी एक वारिस की जरूरत है और वह मैं आप को देने में नाकाम रही हूं, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप मुझे तलाक दे दें और दूसरा निकाह कर लें.’’

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