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थोड़े दिन तक तो उस के लौट आने का इंतजार किया. फिर फोन करने की कोशिश की, श्यामला ने फोन नहीं उठाया. मिलने की कोशिश की, श्यामला ने मिलने से इनकार कर दिया. धीरेधीरे उन दोनों के बीच की दरार बढ़तेबढ़ते खाई बन गई. दोनों दो किनारों पर खड़े रहे गए. मनाने की उन की आदत थी नहीं, जो मना लाते.

नौकरी की व्यस्तता में एक के बाद एक दिन व्यतीत होता रहा. एक दिन सब ठीक हो जाएगा, श्यामला लौट आएगी, ये उम्मीद धीरेधीरे धुंधली पड़ती गई.

उस समय श्यामला की उम्र 41 साल थी और वे स्वयं 45 साल के थे. तब से एकाकी जीवन, नौकरी और बिरूवा के सहारे काट दिया उन्होंने. बच्चों के भविष्य की चिंता ने श्यामला को किसी तरह बांध रखा था उन से. उन के कैरियर के रास्ता पकड़ने के बाद वह रुक नहीं पाई. इतना मजबूत नहीं था शायद उन का और श्यामला का रिश्ता.

श्यामला को रोकने में उन का अहम आड़े आया था. लेकिन बिरूवा को उन्होंने घर से कभी जाने नहीं दिया. उस का गांव में परिवार था, पर वह मुश्किल से ही गांव जा पाता था. उन के साथ बिरूवा ने भी अपनी जिंदगी तनहा बिता दी थी. बच्चों ने अपनी उम्र के अनुसार मां को बहुतकुछ समझाने की कोशिश भी की, पर श्यामला पर बच्चों के कहने का भी कोई असर नहीं पड़ा. वे इतने बड़े भी नहीं थे कि कुछ ठोस कदम उठा पाते. थकहार कर वे चुप हो गए. कुछ छुट्टियां मां के पास बिताते और कुछ छुट्टियां पिता के पास बिता कर वापस चले जाते.

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