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वे जानते थे. बहू जानबूझ कर इस समय चली गई घर से. लेकिन अब वे क्या करें. श्यामला तो बाहर  भी नहीं आ रही. बात भी करें तो कैसे. इतने वर्षों बाद अकेले घर में उन का दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था. थोड़ी देर वे वैसे ही बैठे रहे. अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयत्न करते रहे. फिर उठे और अंदर चले गए. अंदर एक कमरे में श्यामला चुपचाप खिड़की के सामने बैठी बाहर की ओर देख रही थी.

‘‘श्यामला...’’ उसे ऐसे बैठे देख कर उन्होंने धीरे से पुकारा. सुन कर श्यामला ने पलट कर देखा. इतने वर्षों बाद मधुुप को अपने सामने देख श्यामला जैसे जड़ हो गई. समय जैसे पलभर के लिए स्थिर हो गया. आंखों में प्रश्न सलीब की तरह टंगा हुआ था, ‘क्या करने आए हो अब...?’

‘‘आप...’’ वह प्रत्यक्ष बोली.

.‘‘हां श्यामला, मैं...’’ इतने वर्षों बाद उसे देख कर वे एकाएक कातर हो गए थे.

‘‘तुम्हें लेने आया हूं,’’ वे बिना किसी भूमिका के बोले, ‘‘वापस चलो. मुझ से जो गलती हुई है, उस के लिए मुझे क्षमा कर दो. मैं समझ नहीं पाया तुम्हें, तुम्हारी परेशानियों को, तुम्हारे अंतर्द्वंद्व को...’’

श्यामला अपलक उन्हें निहारती रह गई. शब्द मानो चुक गए थे. बहुतकुछ कहना चाहती थी वह, पर समझ नहीं पा रही थी कि कहां से शुरू करे. किसी तरह खुद को संयत किया.

थोड़ी देर बाद वह बोली, ‘‘इतने वर्षों के बाद गलती महसूस हुई आप को. जब खुद को जरूरत हुई पत्नी की, लेकिन जब तक पत्नी को जरूरत थी? आखिर मैं सही थी न, कि आप ने हमेशा खुद से प्यार किया. लेकिन मेरे अंदर अब आप के लिए कुछ नहीं बचा. अब मेरे दिल को किसी साथी की तलाश नहीं है. जिन भावनाओं को, जिन संवेदनाओं को जीने की इतनी जद्दोजहद थी मेरे अंदर, वह सब तो कब की मर चुकी है. फिर अब क्यों आऊं, आप के बाकी के जीवन जीने का साधन बन कर? मुझे अब आप की जरूरत नहीं है. मैं अब नहीं आऊंगी.’’

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