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पैरिस की क्रिस्टोफर से मेरी मुलाकात वाराणसी के अस्सी घाट पर हुई. उम्र यही कोई 25 के आसपास की होगी. वह वाराणसी में एक शोध कार्य के सिलसिले में बीचबीच में आती रहती थी. मैं अकसर शाम को स्कैचिंग के लिए जाता था. खुले विचारों की क्रिस्टोफर ने एक दिन मुझे स्कैचिंग करते देख लिया. दरअसल, मैं उसी की स्कैचिंग कर रहा था. इस दौरान बारबार मेरी नजरें उस पर जातीं. उस ने ताड़ लिया. उठ कर मेरे पास आई. स्कैचिंग करते देख कर मुसकराई. उस समय तो कुछ ज्यादा ही जब उस को पता चला कि यह उसी की तसवीर है,”ग्रेट, यू आर ए गुड आर्टिस्ट,’’ तसवीर देख कर वह बेहद खुश थी.

‘‘आप को पसंद आई?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां…’’

यह जान कर मुझे खुशी हुई कि उसे थोड़ीबहुत हिंदी भी आती थी. भेंटस्वरूप मैं ने उसे वह स्कैचिंग दे दी. यहीं से हमारे बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चला जो बाद में प्रगाढ़ प्रेम में तबदील हो गया. हम दोनों अकसर शाम को घाट की सीढ़ियों पर बैठ कर गुजारते. बातोंबातों में मैं ने क्रिस्टोफर को बताया, “हम लोग गंगा को मां मानते हैं,” यह सुन कर क्रिस्टोफर खुश हो गई. कुछ देर सोच कर बोली, ‘‘मगर गंगा इतनी गंदी क्यों है?’’

मेरे पास उस के इस सवाल का जवाब नहीं था. तभी एक बच्चा एक दोने में कुछ फूलमालाएं ले कर आया,”बाबूजी, इन्हें खरीद लीजिए. गंगामां को चढ़ाने के काम आएंगे.’’

‘‘मैं ने झट से जेब में हाथ डाल कर कुछ रुपए निकाले और 2 दोने खरीद लिए. एक क्रिस्टोफर को दिया दूसरा खुद रख लिया.

‘‘इस का क्या करेंगे?” क्रिस्टोफर को अचरज हुआ.

‘‘इसे गंगा में बहा देंगे. गंगामां खुश हो जाएंगी.’’

‘‘फूल से भला कैसे खुश होगी. इस से तो वह और भी मैली हो जाएगी,’’ अब मैं क्रिस्टोफर को कैसे समझाता कि यहां प्रश्न सिर्फ भावनाओं का है. अगर ऐसा न होता तो भिन्न संस्कृतियों के बावजूद हम एकदूसरे के करीब कैसे आते.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे के आगोश में हम दोनों आ चुके थे. तभी सामने की सीढ़ियों पर कुछ गतिविधियां शुरू हो गईं. कुछ युवा चमकदार वेषभूषा के साथ पहले से बनाए 5 मंचों पर खड़े हो गए. उन के ऊपर लगी छतरियां जगमगाने लगीं. करीब ही रखा डेक से भजन की आवाज आने लगी. उन युवाओं के एक हाथ में पीतल में बने खास तरीके के आरती के पात्र थे, जिस में एकसाथ सैकङों बत्तियां जल रही थीं. उन के दूसरे हाथों में सफेद घने बालों सदृश पंखा था जिस का मकसद संभवतया गंगा को हवा देना था. वे दोनों हाथों से गंगा की आरती करने लगे. उन के हाथ मानो नृत्य कर रहे थे. एकाएक माहौल पूरी तरह से धार्मिक हो गया. बीचबीच में मंत्रों के स्वर डेक से गूंज रहे थे. आयोजक इशारों से लोगों को सामने से हटने का संकेत देते रहते ताकि गंगा सामने से देख सकें कि उन की आरती हो रही है.

‘‘यह क्या हो रहा है?’’ क्रिस्टोफर ने पूछा.

‘‘गंगा आरती,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘इस से क्या होगा?’’ यह सुन कर मुझे अच्छा न लगा. मगर मैं संयत रहा.

‘‘गंगा इतनी गंदी है. लोगों को इस के साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए,’’ क्रिस्टोफर बोली.

आरती खत्म हो चुकी थी. मैं ने क्रिस्टोफर को उठने के लिए कहा. जैसे ही मैंं आगे बढ़ा वह भी मेरे पीछेपीछे हो गई. मैं हाथ जोङे था. मैं ने देखा कि क्रिस्टोफर भी ऐसा ही कर रही थी. मुझे खुशी महसूस हुई. राह चलते उस ने पूछा,‘‘हाथ जोङने का क्या मतलब है?’’

मैं तनिक शरमाते हुए बोला, ‘‘ऐसा करने से मन की मुराद गंगामां पूरी करती हैं,’’ वह मुसकरा दी.

वह एक लौज में रहती थी. मैं ने उसे अपने घर में रहने के राजी कर लिया. हालांकि घर वालों ने ऐतराज जताया. पर मेरे जिद के आगे उन की एक न चली. वह किराया देना चाहती थी मगर मैं ने मना कर दिया. जिस से प्रेम हो उस से किराया लेना क्या उचित होता. मैं तो उस पर इस कदर आसक्त था कि उस से शादी तक का मन बना लिया था.

क्रिस्टोफर को इस शहर की सांस्कृतिक विरासत की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी. जो उस के शोधकार्य का हिस्सा था. मैं ने उस की मदद की. अपना क्लास छोड़ कर उस के साथ मैं मंदिरों, घाटों, गलियों तथा ऐतिहासिक स्थलों पर जाता. कई नामचीन संगीत कलाकारों से उसे मिलवाया.

रात 8 से पहले हम घर नहीं आते. उस के बाद मैं उस के कमरे में रात 11 बजे तक इधरउधर की बातें करता. जी करता क्रिस्टोफर को हर वक्त निहारता ही रहूं. बेमन से अपने कमरे में आता फिर अपने प्रेम के मीठे एहसास के साथ सो जाता.

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