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एक रात मुझे नींद नहीं आ रही थी. क्रिस्टोफर को ले कर मन में उथलपुथल था. घड़ी देखा रात 1 बज रहे थे. मैं आहिस्ता से उठा. दबे पांव क्रिस्टोफर के कमरे में आया. खिङकी से झांका. वह कुछ लिख रही थी. इतनी रात तक वह जग रही थी. यह देख कर मुझे काफी आश्चर्य हुआ. मेरे आने की उसे आहट तक नहीं हुई. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘क्रिस्टोफर...’’ उस ने नजरें मेरी तरफ उठाईं. उस समय वह गाउन पहने हुर्ई थी. उस का गुलाबी बदन पुर्णिमा की चांद की तरह खिला हुआ था. जैसे ही उस ने दरवाजे की सिटकनी हटाई मैं तेजी से चल कर कमरे में घुसा. दरवाजा अंदर से बंद कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. वह थोड़ी सी असहज हुई फिर सामान्य हो गई.

उस रात हमारे बीच कुछ भी वर्जित नहीं रहा. खुले विचारों की क्रिस्टोफर के लिए संबंध माने नहीं रखते. ऐसा मेरा अनुमान था. मगर मेरे लिए थे. जाहिर है, वह मेरे लिए पत्नी की दरजा रखने लगी थी. सिर्फ 7 फेरों की जरूरत थी या फिर अदालती मुहर. मैं उस पर इस कदर फिदा था कि उस के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक रोज क्रिस्टोफर ने मुझ से नैनीताल चलने के लिए कहा. भला मुझे क्या ऐतराज हो सकता था. घर वाले मेरे तौरतरीकों को ले कर आपत्ति जता रहे थे मगर मैंं उन्हें यह समझाने में सफल हो गया कि पैरिस में कलाकारों की बड़ी कद्र है. उस की मदद से मैं एक ख्यातिलब्ध चित्रकार के रूप में स्थापित हो सकता हूं. उन्होंने हमारी दोस्ती को बेमन से मंजूरी दे दी. 2 दिन नैनीताल में रहने के बाद हम दोनों कौसानी घूमने आए. गांधी आश्रम के चबूतरे पर बैठे हम दोनों पहाड़ों की खूबसूरत वादियों को निहार रहे थे. क्रिस्टोफर को अपनी बांहों से भर कर मैं बेहद रोमांचित महसूस कर रहा था. उन्मुक्त वातावरण पा कर मानो मेरे प्रेम को पर लग गए. कब शाम ढल गई पता ही नहीं चला. हम वापस होटल आ गए. कौफी के चुसकियों के बीच क्रिस्टोफर का मोबाइल बजा. वह बाहर मोबाइल ले जा कर बातें करने लगी. तब तक कौफी ठंडी हो चुकी थी. मैं ने वेटर से दूसरी कौफी लाने को कहा.

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