कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘आप जरा शांत रहिए प्लीज,’’ आदित्य से निवेदन कर नीरजा ने विशाल से पूछा, ‘‘तेरे पापा के इस सवाल का क्या जवाब है कि कैसे कविता या रवि के घर का हम पता लगाएंगे?’’

‘‘मम्मी, उस का बस एक ही तरीका मेरी समझ में आ रहा है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं रवि या कविता को तो नहीं पहचानता, लेकिन उस रिकशा वाले को जरूर पहचानता हूं जो उन्हें पार्क से ले कर गया. उस से हमें उन में से किसी का घर ढूंढ़ने में सहायता मिल सकती है.’’

‘‘और उस रिकशा वाले को हम कैसे ढूंढ़ेंगे? क्या चारों तरफ मुनादी करवाएंगे?’’ आदित्य का मूड खराब ही बना हुआ था.

‘‘सुनिए, आप व्यंग्य करना छोड़ कर सहयोग कीजिए, प्लीज. अगर हम रवि और कविता की जान बचाने में सफल रहे तो यह नेक काम हमें संतोष देने वाला कार्य होगा,’’ नीरजा ने कहा तो आदित्य फौरन गंभीर नजर आने लगे थे.

‘‘पापा, वह रिकशा वाला मेरे दोस्त कपिल को स्कूल ले कर जाता था. कपिल से मैं उस का नाम पूछ कर आता हूं. साथ में अपने कुछ दोस्तों को भी बुला लाऊंगा. हम सब मिल कर उसे रिकशा वाले को ढूंढ़ निकालेंगे. हमें उसे ढूंढ़ निकालना ही होगा,’’ विशाल की आवाज में दृढ़निश्चय के भाव थे. यह देखसुन कर उस के पिता ने उसे कपिल के घर जाने से नहीं रोका.

कविता की बड़ी बहन अनिता अपने पति राहुल के साथ शाम 7 बजे अपने मातापिता के घर पहुंची. कविता ने ही उन्हें फोन कर के बुलाया था.

‘‘दीदी, आप ही मम्मीपापा को समझाओ. मैं अपनी जान दे दूंगी पर रवि के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगी. रोआंसी हो कर कविता ने प्रार्थना की.’’

‘‘पापा नहीं सुनेंगे किसी की भी. उन के जिद्दी स्वभाव से क्या हम सब वाकिफ नहीं हैं. अब तू ही समझदारी दिखा. यह रोनाधाना छोड़, अपनी नियति के आगे सिर झुका ले,’’ अनिता ने उसे कोमल लहजे में समझाया.

‘‘वैसे भी प्रेमविवाह अकसर सफल नहीं होते हैं, कविता,’’ कमरे में चहलकदमी करते हुए राहुल ने कहा, ‘‘मैं रवि से भी मिला हूं और इस रिश्ते वाले लङके से भी. यह लङका हर लिहाज से रवि से इक्कीस है. तू उस के साथ सुखी रहेगी.’’

‘‘जीजाजी, आप उस लङके का गुणगान व्यर्थ कर रहे हैं. मैं ने आप को अपनी सहायता के लिए बुलाया है. आप दोनों जा कर मम्मीपापा को अपना फैसला बदलने के लिए क्यों नहीं कहते?’’ कविता को जोर से गुस्सा आ गया.

‘‘तेरी सहायता तो हम तब करें जब तेरी दलीलों से हम संतुष्ट हों. मम्मीपापा को समझाने के बजाय हम तुझे समझाना, तेरे हित में ज्यादा उचित समझते हैं. जरा शांत हो कर, जरा जिद छोड़ कर जब तू दुनियादारी के लिहाज से विचार करेगी तो रवि से शादी करने की जिद छोड़ देगी और…’’

‘‘बस करो दीदी, और जाओ यहां से,’’ कविता ने उन दोनों की तरफ से मुंह फेर लिया.

‘‘कविता, जरा ठंडे दिमाग…’’

‘‘जीजाजी, प्लीज, चले जाइए. मैं कुछ कहनासुनना नहीं चाहती हूं आप दोनों से. प्लीज गो अवे,’’ कह कर पलंग पर औंधी लेट कविता तकिए में मुंह दबा कर सुबकने लगी तो अनिता और राहुल उस के कमरे से बाहर चले आए.

निराश हो कर आंसू बहा रही कविता के जेहन में या तो रवि का चेहरा उभरता या उस के बैग में रखी नींद की गोलियों से भरी बोतल. विशाल को कपिल से पता चला कि उस रिकशे वाले का नाम गणेशी है. वह जब घर लौटा तो उस के साथ कपिल के अलावा उस के दोस्त संजय और अमित भी थे. इन सभी के पास अपनीअपनी साइकिलें थी. ये तीनों अपनी साइकिलों पर सवार हो कर और विशाल अपने पिता के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गणेशी को ढूंढ़ने निकल पड़े.

ये सब विभिन्न दिशाओं में चक्कर लगाने लगे. जो भी परिचितअपरिचित रिकशा वाला नजर आता उसे रोक कर वे गणेशी का अतापता पूछते,

‘‘गणेशी जहां भी नजर आए, उसे इस पते पर फौरन पहुंचने के लिए कहना, गणेशी को और उसे लाने को भी इनाम मिलेगा. उसे संदेश देना कि शाम को उस ने जिस युवक व युवती को पार्क के पास से अपने रिकशे में बैठाया था उन की जान को खतरा है और वही उन की जान बचाने में मदद कर सकता है,’’ हर रिकशे वाले को यही संदेश दिया जाता था उन सब के द्वारा.

विशाल की आंखों में छलकते आंसू विशेषकर हर रिकशे वाले के दिल को छू जाते. वैसे उन सभी के चेहरे की गंभीरता से रिकशे वाले प्रभावित होते. जल्दी ही यह बात जंगल में लगी आग की तरह रिकशे वालों में फैल गई कि गणेशी को किन्हीं आदित्य साहब के घर फौरन पहुंच कर एक जवान लङके व लङकी की जान बचाने में खास सहयोग देना है.

आसपास की लगभग हर मुख्य सङक से विशाल व उस के दोस्त गुजरे. कई रिकशे वालों से उन्होंने गणेशी के बारे में पूछताछ की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

धीरेधीरे सब का जोश ठंडा पङने लगा. सभी की आंखों में निराशा का भाव बढ़ता जा रहा था. आखिरकार सब थकहार कर विशाल के घर लौट आए. इस वक्त 7 बजे से ज्यादा का समय हो रहा था.

आदित्य के पड़ोसी रघुवीरजी और महेंद्रजी भी उन सब की परेशानी का कारण जानने घरों से निकल आए. संक्षेप में पूरी घटना की जानकारी उन्हें देनी पड़ी.

आज के युवा वर्ग के सोच और व्यवहार पर फिर चर्चा छिङने में ज्यादा देर नहीं लगी. शायद ज्यादा बोल कर बड़े लोग अपनेअपने मन की बेचैनी को कम करने का व 2 युवाओं द्वारा की जाने वाली संभावित आत्महत्या के बारे में न सोचने का प्रयास कर रहे थे.

‘‘गणेशी आ गया, पापा, गणेशी आ गया…’’ अचानक विशाल की तेज आवाज गली में गूंजी और सब का ध्यान उन की ओर चले आ रहे रिकशों की तरफ केंद्रित हो गया था.

कविता की मां अनुपमा रात करीब 8 बजे उसे भोजन के लिए बुलाने आईं. कविता ने उन की किसी बात का जवाब नहीं दिया और जबरदस्ती आंखें बंद किए उदास सी लेटी रही. अनुपमा बहुत खीजती हुई वापस लौटी थी.

अनुपमा के जाने के बाद नरेश आए. पहले उन्होंने अपनी आवाज को नियंत्रण में रखते हुए कविता को समझाने का प्रयास किया.

‘‘पापा, आप मेरे हित की बात करते हैं तो क्यों नहीं मेरे दिल की इच्छा पूरी कर देते?’’ कविता ने उन का हाथ अपने हाथों में ले कर भावुक लहजे में कहा.

‘‘बेटी, तू अपना भलाबुरा नहीं पहचान रही है. जीवन से जो हमें अनुभव मिला है उस की कद्र कर और हमारा कहा मान ले,’’ पिता ने थके से स्वर में अपनी बात कही.

‘‘आप के अनुभव से निकला फैसला मेरे दिल की इच्छा को कोई महत्त्व नहीं दे रहा है, पापा.’’

‘‘तू अपने दिल को समझा कि वह हमारे प्यार व हमारी समझदारी पर भरोसा करे.’’

‘‘पापा, प्यार और समझदारी की आड़ में आप अपना आदेश मुझ पर जबरदस्ती थोप कर मेरी खुशियों का गला न घोटें.’’

‘‘तेरा दिमाग इस वक्त ठीक से काम नहीं कर रहा है, कविता. अपने मातापिता से तुझे यह रवि अपना ज्यादा शुभचिंतक व करीबी लग रहा है. हंस कर या रो कर तुझे शादी वहीं करनी होगी जहां हम चाहते हैं,’’ कह कर नरेश बाहर जाने को उठ खड़े हुए.

‘‘पर मैं रवि के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगी,’’ कविता जोर से चिल्ला उठी.

‘‘जो संतान मातापिता की सही बात नहीं मानती, जो उन के मानसम्मान की फिक्र नहीं करती, उस के जिंदा न रहने का दुख भी मांबाप उठा सकते हैं,’’ कठोर लहजे में अपनी बात कह कर नरेश थके कदमों से बाहर चले गए थे.

गणेशी के साथ एक अच्छीखासी भीड़ उस कालोनी के गेट तक पहुंच गई जहां शाम को उस ने कविता को उतारा था. विशाल, कपिल, संजय, अमित, महेंद्रजी, रघुवीरजी, आदित्य व नीरजा के अलावा गणेशी के रिकशे वाले 2 दोस्त भी गेट के सामने मौजूद थे.

‘‘मैं ने उस लङकी को इस गेट के सामने उतारा था, साहब. लङका पहले ही बाजार में उतर गया था. वह बेचारी बहुत रो रही थी. हम तो उस का मासूम चेहरा भूल नहीं पाए हैं. उस की जान जरूर बचा लीजिए, साहब,’’ गणेशी ने आदित्य से निवेदन किया.

‘‘इस कालोनी में 200 से ज्यादा फ्लैट हैं. जान तो हम उस की तभी बचा पाएंगे जब पहले कविता को ढूंढ़ लेंगे. कैसे ढूंढ़ा जाए उसे?’’ आदित्य ने अपना यह प्रश्न सभी से पूछा.

‘‘पापा, 8 बजे के करीब का समय हो रहा है. यों सोचविचार में समय गंवाने के बजाय हमें हर फ्लैट में जा कर कविता को ढूंढ़ना चाहिए. हम काफी लोग हैं. उस की तलाश में ज्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए,’’ विशाल की यह सलाह सुन कर सभी के मन और शरीर पर छाई सुस्ती दूर होती चली गई थी.

इमारतें बहुमंजिला थीं और हर इमारत में 6 फ्लैट बने हुए थे. सब से ऊपर व बीच वाले फ्लैटों में कविता के बारे में पूछताछ करने की जिम्मेदारी विशाल व उस के दोस्तों और गणेशी व उस के साथियों की रही. नीचे के फ्लैटों में पूछताछ आदित्य, नीरजा व उन के तीनों पड़ोसी करने लगे.

सभी किशोर भागभाग कर सीढ़ियां  चढ़ते, “घर में कविता नाम की लङकी रहती है या नहीं…” यह सवाल पूछते दरवाजा खोलने वाले से मगर जवाब नकारात्मक मिलते रहे और वे तेजी से सीढ़ियां उतर, अगली इमारत की तरफ दौड़ पड़ते.

कालोनी में रहने वाले लोगों की दिलचस्पी भी इस पूछताछ व भागदौड़ में जागी. लोग घरों से निकल कर इन सब के इर्दगिर्द जमा होने लगे. कविता द्वारा 10 बजे तक आत्महत्या कर लेने वाली बात धीरेधीरे सभी को पता चल गई. ढूंढ़ने वालों के चेहरों की गंभीरता से प्रभावित हो कर लोग खुद भी उन की सहायता को आगे आने लगे. सही जानकारी पहले से मिल जाने के कारण विशाल व उस के दोस्तों और गणेशी व उस के साथियों को कई जीने चढ़नेउतरने नहीं पड़े थे.

वक्त आगे खिसकता रहा. अब तक की पूछताछ में कविता नाम की छोटी लड़कियां या विवाहित औरतें तो मिल गईं लेकिन जिस कविता को गणेशी पहचानता था या जिस की आवाज विशाल ने सुनी थी, उस का कोई पता ये लोग नहीं लगा सके थे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...