कई बार गुस्से में वह इतनी हिंसक हो जाती कि किसी पर कुछ भी उठा कर फेंक देती. वह इतनी हिंसक हो गई कि एक दिन गांव वालों को जगप्रसाद से कहना पड़ा, ‘‘जगप्रसाद, या तो सुंदरी को घर में बांध कर रखो या फिर इस को किसी पागलखाने भेज कर इस का इलाज करवाओ. नहीं तो तुम्हारी बेटी किसी दिन किसी का सिर फोड़ देगी, फिर उस का परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना.’’ जब जगप्रसाद ने सुंदरी को सम झाने की कोशिश की तो वह अपने बाप से ही उल झ बैठी. बापबेटी में तकरार इतनी बढ़ गई कि सुंदरी ने घर छोड़ने का ही इरादा कर लिया. पास के गांव में ही एक ईंटभट्ठा था.
सुंदरी ने सुन रखा था कि वहां पर बहुत सी महिला मजदूर काम करती हैं. उस ने वहीं जाने का निर्णय किया. वहां काम करने वाली महिलाओं को रहने के लिए झोंपड़ी मिलती थी. अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुंदरी उसी भट्ठे पर काम करने लगी. वहीं अन्य महिलाओं की तरह उसे रहने का ठिकाना भी मिल गया. मन ही मन वह उन 4 दरिंदों से बदला लेने की भी सोच रही थी. आखिर उन दरिंदों की वजह से ही तो उस की जिंदगी बरबाद हुई थी. अभी भी वह लाल दुपट्टा सुंदरी के पास था जिस को उन दरिंदों ने उस के मुंह में ठूंस कर उस गंदी घटना को अंजाम दिया था. उस निशानी को वह कैसे भूल सकती थी? ईंटभट्ठे का ठेकेदार रामपाल था जो शराबी और औरतबाज भी था.
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