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दीदी अब जिंदगी के समतल में आ कर शांत सरिता बन गई थीं. अब उन के प्रवाह में वेग नहीं था, व्याकुलता नहीं थी बल्कि शांति थी, सौम्यता थी.

और यही मेरी समस्या का कारण भी था कि कहीं मेरी एक गलती उस शांत सरिता के अंदर शांत तूफान को उद्वेलित न कर दे. 20 साल के अखंड तप के फलस्वरूप दीदी ने जीवन में जो थोड़ा सा सुख पाया है, कहीं मेरी एक भूल से वह फिर दुख न बन जाए. मेरी व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी.’

‘‘अरे, अभी तक आप जाग रहे हैं, रात भर सोए नहीं क्या?’’

शुभी ने उठते हुए पूछा तो मेरी तंद्रा भंग हुई. घड़ी की तरफ देखा तो 5 बज रहे थे. मेरी आंखें लाल हो रही थीं.

‘‘क्या बात है, आप रात भर जागते रहे, मुझे क्यों नहीं बताते आप, आखिर बात क्या है?’’

‘‘शुभी...’’ मेरे विचारों की व्यथा मेरी आवाज में झलक उठी, शायद मेरी आंखें भी भर आई थीं.

‘‘आप...’’ इतना कह कर शुभी एकदम से परेशान हो गई, ‘‘आप की आंखों में आंसू और फिर भी मुझ से अपनी परेशानी छिपा रहे हैं, शायद वह परेशानी हमारे प्यार और विश्वास से ऊपर है, है...न...’ उसे शायद मेरा मौन अपनी उपेक्षा लग रहा था.

‘‘नहीं शुभी... ऐसी बात नहीं है,’’ मैं ने उस की गोद में सिर रखते हुए कहा, ‘‘दरअसल, परेशानी ही ऐसी है कि समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या करूं.’’

‘‘तो हमें बताइए ना...’’ शुभी जिद्दी स्वर में बोली.

‘‘कल आफिस में जीजाजी आए थे.’’

‘‘क्या?’’ एक पल के लिए तो वह भी चौंक पड़ी थी, ‘‘पर वह तो संन्यासी...’’

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