Hindi Satire : मिडिल क्लास, समाज का सब से जाहिल और नकारा वर्ग. इस की जरूरत न समाज को होती है और न ही सरकार को. सही भी है, जब देखो तब महंगाई का रोना रोने चले आते हो. अरे भाई, पैट्रोल और डीजल सैकड़ा पार कर गया तो क्या? इनकम टैक्स में छूट नहीं मिली तो क्या? छठा वेतन आयोग लागू नहीं हुआ तो क्या? पुरानी पैंशन बहाल नहीं हुई तो क्या? प्याज और टमाटर के स्वाद आसमान छू रहे हैं तो क्या? जब बंदर, मेरा मतलब हमारे पूर्वज, अदरक का स्वाद नहीं जान पाए तो तुम उस अदरक का स्वाद जानने के पीछे क्यों पड़े हो. जेब में ऊंट के मुंह में जीरा टाइप पूंजी लिए टहलते रहते हो और अपने अधिकारों के लिए दरियाई घोड़े के मुंह की तरह खोले चीखतेचिल्लाते रहते हो.
अब तुम ही बताओ, सरकार तुम्हारी क्यों सुने. सच कहूं तो तुम्हारी तो खुद तुम्हारे घर वाले भी नहीं सुनते. महंगे होटल में जाने की तुम्हारी औकात नहीं और गलती से किसी तरह जी कड़ा कर के तुम चले भी गए तो सब्जी का नाम पढ़ने से पहले उस के दाम पढ़ते हो. तुम्हारी भूख भी होटल के मेनू कार्ड में सुनहरे अक्षरों में लिखे रेट्स पर डिपैंड करती है. तुम्हारी आंखें तेजी से मेनू कार्ड में स्वर्ण अक्षरों में लिखी सब से सस्ती सब्जी, रोटी और दाल को ढूंढ़ने में लग जाती हैं. सच कहूं तो वह फूड आइटम नहीं बल्कि अपनी औकात को ढूंढ़ रहा होता है. अगर गलती से घर वालों ने नान और पनीर की सब्जी और्डर करने का आग्रह कर दिया तो वह यह कह कर, यहां का डोसा और इडली सांभर बहुत मशहूर है, टालने का प्रयास करता है क्योंकि नान और पनीर की सब्जी का दाम पढ़ कर ही उस की भूख मर जाती है.
जहां कोल्डड्रिंक भी खास रिश्तेदार के आगमन पर आती है. जिस वर्ग में टूथब्रश दांत घिसने से शुरू हो कर कुकर के ढक्कन को साफ करने व पाजामे में नाड़ा डालने तक की यात्रा कर लेता है उस वर्ग से आप क्या ही उम्मीद करोगे. बताओ, तुम खुद ही बताओ. गिनती के चार प्रतिशत हो. मुट्ठीभर लोग और उम्मीदें बड़ीबड़ी. बताओ, क्यों करे सरकार तुम्हारी चिंता, तुम करते ही क्या हो उस के लिए? कोरोना काल में बिना काम के अपने घर में काम करने वाले लोगों को तनख्वाह दे दी तो क्या? एक दिन की तनख्वाह महामारी के नाम पर दे दी तो क्या? मंदिर और धर्मकर्म के नाम पर चंदा दे दिया तो क्या? तुम अपनेआप की औरों से बराबरी करने लगे. टीवी के सामने सोफे पर बैठेबैठे टीकाटिप्पणी करने के अलावा आज तक किया ही क्या है तुम ने?
सचसच बताओ तुम ने इस समाज के लिए आज तक किया क्या है? जब देखो हर महीने बिजली का बिल जमा करने खड़े हो जाते हो, साल पूरा होने तक इनकम टैक्स जमा करने के लिए जी हलकान करने लगते हो. कभी म्यूचुअल फंड तो कभी सीजन सेल तो कभी पीएफ के लिए जोड़तोड़ करने लगते हो. पोलियो ड्रौप पिलाने तुम दरदर भटको तो कभी जनगणना के लिए तुम द्वारेद्वारे जाओ, कभी चुनाव में ड्यूटी तो कभी मतगणना में. नैतिकता का भी सारा ठेका तुम ही ने ले रखा है. वह चार लोग जीवनभर दिखेंगे नहीं पर तुम उन चार लोगों से जीवनभर डरते रहोगे. जरा सी इज्जत की खातिर पूरे समाज में शरमाए-शरमाए फिरोगे, गंगाजी में डुबकी मार लोगे या लटक जाओगे पर मदद के लिए हाथ न फैला पाओगे. एक अच्छे भविष्य के इंतजार में स्वाति की तरह नक्षत्र से बरसने वाले पानी की बूंद के लिए जीवनभर मुंह खोले आसमान की तरफ ताकते रहोगे पर तुम्हारा होनाजाना कुछ भी नहीं है. जिंदगीभर टिटहरी की तरह दोनों टांग ऊपर किए आसमान को रोकने का भ्रम पाले जीते रहोगे. Hindi Satire