Women legal rights : भारतीय समाज में शादी को बहुत ही पवित्र बंधन माना जाता है लेकिन यह बंधन एकतरफा ही रहा है. कौंस्टिट्यूशन के लागू होने से पहले तक मर्दों के लिए शादी के माने कुछ और थे और औरतों के लिए कुछ और. शादी एक पवित्र बंधन सिर्फ औरतों के लिए था. औरत अगर शादी से संतुष्ट न हो तो उस के पास इस बंधन से आजाद होने का कोई विकल्प नहीं था लेकिन मर्द एक औरत के होते दूसरी व तीसरी शादी कर सकता था. पवित्रता के पाखंड में सिर्फ औरतें फंसती थीं, मर्द नहीं.
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के लागू होने के बाद, संवैधानिक तौर पर ही सही, औरत और मर्द बराबर हो गए. अब औरतें विवाह की पवित्रता के ढोंग को चुनौती दे सकती थीं और उस के बंधन से आजाद हो सकती थीं. हालांकि 75 साल बाद आज भी संविधान की यह आजादी सामाजिक स्तर तक नहीं पहुंची है. ग्रामीण भारत की औरतें आज भी पतियों द्वारा छोड़ी जाती हैं और उन्हें पूछने वाला कोई नहीं होता लेकिन शहरी क्षेत्रों में हालात बदल रहे हैं. पढ़ीलिखी औरतें अब शादी के पाखंड को ?ोलने को तैयार नहीं. यही कारण है कि भारत में हर साल तलाक के मामले बढ़ रहे हैं. आंकड़ों के अनुसार, 2023 में देशभर के फैमिली कोर्ट्स में लगभग 8.26 लाख मामलों का निबटारा हुआ था. इन में तलाक, सेपरेशन, एलिमनी, गुजाराभत्ता और बच्चे की कस्टडी जैसे मामले शामिल हैं. औसतन हर दिन लगभग 2,265 मामले निबटाए गए. यह भी ध्यान देने योग्य है कि 2023 के अंत तक फैमिली कोर्ट्स में लगभग 11.5 लाख मामले पैंडिंग थे.
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