कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एक दिन सुमेधा पास आ कर बोली, ‘‘आप रोहित से पूछ रहे थे न राखी के बारे में. आप ने ऐसा सोचा भी कैसे विनय. वह लड़की इस घर की कोई नहीं है. बस मेरी जिम्मेदारी है. आप ने तो उसे अस्वीकार कर दिया था. पर मेरी वजह से उसे इस घर में जगह मिली. अभी वह छोटी है. पर धीरेधीरे उसे घर का सारा काम सिखा दूंगी ताकि उस पर कभी यह आरोप न लगे कि वह मुफ्त में रहती है. थोङी सी जगह ले रही है, खाना खा रही है, पढ़ रही है तो काम कर के इस घर का कर्ज भी चुकाएगी. और विनय तुम्हें तो पता है कि मेरा घुटना अब बहुत परेशान करने लगा है. उसे सक्षम बनाउंगी ताकि वह घर संभाले," सुमेधा की बात से मेरे गाल पर एक चांटा सा पङा था. रौबदार पुलिसमैन था इसलिए अपने भावों को सफलतापूर्वक छिपा लिया.

2-3 साल में ही अंकिता ने घर का सारा कामकाज सीख लिया था. मैं पुलिस के जौब से सेवानिवृत्त हो गया था इसलिए घर पर ही रहता था. औनलाइन पुलिस की नौकरी के लिए बच्चों की काउंसिलिंग और इस क्षेत्र में कैरियर पर औनलाइन मार्गदर्शन का काम मैं ने शुरू कर दिया. समय अच्छा व्यतीत हो इस के लिए कुछ काउंसिलिंग संस्थाओं से भी जुङ गया था. सारा काम औनलाइन था.
सुमेधा के घुटनों का दर्द बढ़ने लगा था. अंकिता प्रयास करती कि सुमेधा को पूरा आराम मिले. मैं जब भी कहीं बाहर से घर आता सुमेधा की जगह अंकिता पैर धोने के लिए पानी ले आती. मैं ज्यादातर बाहर से आते ही बरामदे में कुरसी पर या अंदर सोफे पर कुछ देर बैठ जाता. अंकिता झट पानी ला कर रख देती. कुछ ही मिनटों में चाय और बिस्कुट या टोस्ट भी ला कर रख देती. जैसेजैसे अंकिता बङी हो रही थी, सुमेधा से उस का रिश्ता गहराने लगा था और मेरे चाहने या न चाहने की परवाह किए बगैर वह मेरी केयर टेकर भी बन गई थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...