नहीं है, वह काफी पहले ही इस संसार से जा चुका है. रोड ऐक्सीडैंट था.
‘‘सुमेधा...‘‘ मैं ने प्रयास किया कि उस को समझाऊं कि एक अनजान लड़की को इस तरह घर में रखना ठीक नहीं है.
‘‘आप के लिए अनजान है यह, मगर मेरे लिए नहीं. मैं ने अपनी सहेली को वचन दिया है कि इस की देखभाल करूंगी...‘‘ दृढ़ था सुमेधा का स्वर.
‘‘लेकिन इस शहर में अनाथालय भी तो हैं न?‘‘
‘‘मैं ने अपनी सखी को वचन दिया है विनय कि मैं इसे अनाथालय में नहीं डालूंगी. जानते हो, मेरी सहेली अनाथ थी. अनाथालय में ही पलीबङी हुई थी. उसे कभी पता ही नहीं चला कि उस के मांबाप कौन हैं. हैं भी या नहीं. वह मेरे स्कूल की सहेली थी. वह सदा अपने अनाथालय की त्रासदी मुझे बताया करती थी. सब के बीच होने के बाद भी घोर अकेलापन होता है. मानसिक व्यथा होती है. जैसेतैसे वह शिक्षका बनी. शादी की और मां भी बनी. पर उस के पति उसे छोड़ कर चल बसे. वह स्वयं भी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी और जब भी मुझ से बात करती अंकिता को ले कर ही करती. मैं ने उसे वचन दिया था कि मैं अंकिता को संभाल लूंगी. पर यह नहीं पता था कि वह इतनी जल्दी चली जाएगी. मैं अपने वचन से पीछे नहीं हट सकती विनय.‘‘
‘‘ठीक है जो करना हो करो...‘‘ मैं ने भी झल्ला कर कहा,‘‘पर मैं इस लङकी का खर्च वहन नहीं करूंगा.‘‘
मेरा निर्णय सुन स्तब्ध रह गई सुमेधा. कुछ देर अजीब सी नजरों से मुझे देखती रही. उस की आंखें डबडबा आई थीं. आंखों के कोर में आंसू मोतियों से चमकने लगे थे. फिर उस ने धीरे से निर्णयात्मक अंदाज में सिर हिला कर हामी भरी मानो कह रही हो, मंजूर है.