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इंदु की जिंदगी, बस, घर और दफ्तर के बीच पिस कर रह गई थी. इस बीच, अब होली का पर्व समीप था. इंदु के अपने सूने जीवन में अमन की याद होली पर्व में बहुत आती थी क्योंकि अमन ही उस का ऐसा दोस्त था जो उस से प्यार करता था. पर लोकलाज में उस ने इंदु से कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया. इंदु को याद आ रहे थे अमन की कविताओं के सुंदर शब्द, उस की मधुर आवाज और आंखों में उस के लिए बरसता प्यार. इंदु सोचने लगी, अगर हम दोनों ने लोकलाज की परवा न की होती तो आज शायद हमारा भी एक खुशहाल परिवार होता. खैर, अब इन सब बातों का क्या फायदा.

इंदु को लगा कि लंबा अरसा हो गया है मातापिता के साथ छुट्टी मनाए, सो, इस होली पर दफ्तर से छुट्टी ले कर रंगों का महोत्सव मनाया जाऐ. इंदु ने दफ्तर में होली पर छुट्टी की बात अपने बौस से कही.

बौस ने कहा, ‘कोई परेशानी नहीं, इंदू, इस बार तुम होली पर छुट्टी ले लो.’

इंदू ने ‘धन्यवाद सर’, कह बोली, ‘आप की भी होली खुशहाल रहे.’

यह कर कह इंदु अपनी केबिन में लौटी ही थी कि उस के साथ काम करने वाली रमा ने इंदु को कटाक्ष करते हुए कहा, ‘तुम्हें होली पर छुट्टी का क्या करना है. शादी तो तुम्हारी हुई नहीं...तो तुम्हें कौन सा बच्चों के लिए पिचकारी खरीदनी है. तुम्हारे लिए तो औफिस ही सब कुछ है. तो हमेशा की तरह इस बार भी यहीं होली मनाओ. कम से कम इस से हमारी टीम में से मुझे तो होली की छुट्टी मिल जाएगी. वैसे भी, तुम तो जानती हो कि मेरी बेटी की यह पहली होली है.’

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