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खैर, अब तो कुछ नहीं किया जा सकता, इंदू सोचने लगी.

आज इंदू को मीडिया में पूरे 19 साल हो चुके थे. वह हर रोज की तरह घर से औफिस के लिए निकली.

रास्ते में उस की मुलाकात पड़ोसिन से हुई, जो बसस्टौप पर स्कूलबस में अपने बेटे को छोड़ने आई थी. इंदू को देख कर तरुणा भाभी ने कुछ कटाक्ष के अंदाज में कहा, ‘अरे, कहां जा रही हो?’

फिर थोड़ा रुक कर कहती हैं, ‘अरे, मैं भी कितनी पागल हूं, तुम कहां जाओगी…औफिस के सिवा तुम्हारे पास जाने के लिए कौन सी जगह है, तुम्हारी कौन सी शादी हुई है जो घरपरिवार की जिम्मेदारी तुम पर हो.’

इंदू ने थोड़ा सकपकाते हुए तरुणा भाभी को देखा.

इंदू सोचने लगी, कब मेरा समय बदलेगा, मुझे तो किसी से कोई सरोकार नहीं. बस, जैसी भी है अपनी जिंदगी काट रही हूं. पर इन लोगों को न जानें मुझे ताने मारने से क्या खुशी मिलती है.

इंदू के घर से मैट्रो का रास्ता कुल 15 मिनट का था. उसे पैदल चल कर जाना ही पंसद था.

इस समय इंदू के कदमों के साथसाथ उस का दिमाग भी चल रहा था. इंदू सोचने लगी कि ऐसा नहीं है कि उस ने कभी शादी के बारे में नहीं सोचा. सब से पहले एक डाक्टर का रिश्ता आया था और लड़के एवं उस के परिवार ने इंदू की खूबसूरती व उस के गुण देख कर शादी के लिए एकदम हां कर दिया था.

पर शादी की बात इसलिए आगे न बढ़ सकी क्योंकि लड़के की मां ने कहा था, ‘हमें सुंदर और घरेलू लड़की चाहिए. मीडिया की लड़कियां कहां घर संभालती हैं. जबकि इंदू अपने कैरियर की जिम्मेदारियों के साथसाथ दूसरे घर की जिम्मेदारियां संभालना चाहती थी.

इतने में इंदू चलतेचलते एकदम रुक गई. नई चप्पल ने उस के पैर में घाव कर दिया था और पैर की एड़ी से खून आ रहा था. पर ऑफिस पहुंचने की जल्दी में उस ने अपने पैर का दर्द भी दरकिनार कर दिया. उस की आंखों से वेदना के आंसू बह रहे थे. वह सोचने लगी, काश, मुझे भी प्यार करने वाला मेरा पति होता, बच्चे होते और मेरा अपना परिवार होता. यह सोचतेसोचते मैट्रो स्टेशन आ गया था.

औफिस पहुंचने के लिए मैट्रो का इंतजार करती इंदू ने सोचा, आज मुझे अपने नए कार्यक्रम के विषय में बौस को जानकारी देनी है. इस बीच, उस के बराबर में खड़ी लड़की बेहोश हो कर गिर पड़ी, साथ में खड़े लोग ‘अरे—अरे’ करते रह गए और जैसे ही मैट्रो आई, उस लड़की को अनदेखा कर मैट्रो में निकल लिए.

औफिस के लिए लेट होती इंदू ने पहले मैट्रो प्रशासन को सूचित किया और फिर उस लड़की के परिवार वालों के आने तक वहां इतजार किया. लड़की को सुरक्षित हाथों में, सही देखरेख में सौंपने के बाद इंदू अपने औफिस के लिए रवाना हुई. औफिस लेट होने पर बौस ने उसे कमरे में बुलाया.

‘इंदु, तुम अकसर लेट क्यों आती हो? तुम अपने मांबाप के साथ रहती हो जहां तुम्हें हर सुविधा उपलब्ध है. तुम्हारी शादी तो हुई नहीं कि बच्चों या घर की जिम्मेदारी निभातेनिभाते देर हो गई? बौस ने बहुत ही गुस्से में इंदू को फटकार लगाई.

इंदु बिना कोई जवाब दिए, चुपचाप मन में कुछ सोचते हुए ‘सौरी सर’ कह कर बौस के कमरे से निकल गई. मन में इंदु के अभी भी बहुतकुछ चल रहा था. वह सोचने लगी, मैं अपने मातापिता की अकेली संतान हूं. मां अकसर बीमार रहती हैं और पिताजी अपनी नौकरी के चक्कर में आएदिन शहर से बाहर जाते रहते हैं. तो क्या ऐसे में घर की जिम्मेदारी मेरी नहीं है. और क्या अपने पास खड़े किसी इंसान को मरने के लिए छोड़ दूं. क्या दुनिया में शादी करना ही सब से बड़ा काम है. क्या जो लोग शादी नहीं करते या जिन्हें जीवन में सही जीवनसाथी नहीं मिला उन्हें जीने का अधिकार नहीं है.

यह सब सोचते हुए इंदु अपनी केबिन में अपनी सीट पर बैठ गई. अपने विचारों पर अल्पविराम लगाते हुए उस ने औफिस के काम में खुद को व्यस्त कर लिया.

कुछ समय बाद एक बड़ी खबर आई कि राजस्थान में एक इमारत गिर गई और उस में करीब 40 लोग दब कर मर गए.

इंदू चैनल में न्यूज संपादक थी तो एकदम इस खबर ने हलचल मचा दी. अब उसे इस खबर के लिए अपनी टीम से काम करवाना था. तमाम खबर से जुड़े अपडेट पर नजर बनाए रखनी थी. औफिस में दिनभर की गहमागहमी के बाद रात के करीब 9 बज रहे होंगे.

घर से मां का फोन आया, ‘बेटा, तबीयत बहुत खराब लग रही है, लगता है अस्पताल जाना होगा.’

इंदु ने गहरी सांस ली और फिर अपना पर्स संभालते हुए घर के लिए निकल पड़ी. घर पहुंचने पर मां को अस्पताल में दाखिल करा दिया और बौस को फोन कर के कई दिनों तक औफिस न आने की बात बताई. इंदु की परेशानी को देखते हुए बौस ने तुरंत छुट्टी के लिए हामी भर दी. रात काफी हो चुकी थी. डाक्टर की निगरानी में इंदु और उस की मां दोनों ही सुरक्षित महसूस कर रहे थे.

मां के सोने के बाद इंदू मां के सिरहाने बैठी सोचने लगी कि क्या मुझे जीवन में कभी प्यार और अपनापन मिलेगा. क्या मेरा भी कभी अपना परिवार होगा. सोचने लगी कि मातापिता ने जीवन में अब तक उसे कभी किसी भी परेशानी में अकेला नहीं छोड़ा. हर मुश्किल घड़ी में उस के साथ खड़े नजर आए हैं.

इंदू को याद है सुषमा मौसी का लाया हुआ रिश्ता जिस में लड़के के परिवारवाले थे तो सब पढ़ेलिखे पर उन की सोच बड़ी ही छोटी थी. उस समय इंदू न्यूज चैनल में रिपोर्टर के पद पर काम कर रही थी. उसे कभी भी किसी घटना के होने पर घटनास्थल पर खबर कवर जाना होता था. लड़के का कहना था कि एक तो लड़की इतनी सुंदर है, ऊपर से उसे दूसरे लोग देखें, यह तो मुझे बिलकुल पंसद नहीं. ऐसे कई रिश्ते आए और गए पर इंदु के तब तक तक के जीवन किसी का सिंदूर न लिखा था. उस के जीवन में पारंपरिक रीतिरिवाज से हट कर अपने मातापिता की सेवा करना ही लिखा था, शायद.

इंदु याद करने लगी कि मां अकसर कहती हैं कि किसी गलत व्यक्ति से शादी करने से अच्छा है कि किसी से शादी ही न करो. इंदु ने भी अपने जीवन में काम के सिवा कभी किसी लड़के की तरफ नहीं देखा था, शायद इसलिए वह जीवन में आज तक अकेले जूझ रही है. कुछ दिनों बाद मां स्वस्थ हो कर घर लौट आईं.

इंदु ने कई दिनों की छुट्टी के बाद दोबारा अपना औफिस जौइंन किया. एक नए प्रोग्राम पर अब उसे काम शुरू करना था, जो मां की बीमारी के चलते काफी समय से लंबित पड़ा था. कार्यक्रम सेना में शहीद हुए जवानों की विधवाओं पर आधारित था. हर रविवार को कार्यक्रम का प्रसारण किया जाना था. कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद आज कार्यक्रम प्रसारण के लिए तैयार था. इंदु ने कार्यक्रम में जवानों की विधवाओं पर इतनी गहनता से काम किया था कि पहले एपिसोड से ही दर्शकों के बीच कार्यक्रम ने अपनी लोकप्रियता बना ली थी. इस से इंदू पर काम का बोझ और बढ़ गया था. उसे दर्शकों तक उस सचाई को ले कर जाना था जिस से समाज अभी तक अनभिज्ञ था.

समाज ने अभी तक केवल विधवाओं की दयनीय छवि ही देखी है, पर पूरी सचाई यह नहीं है. शहीद जवानों की इन विधवाओं में से अधिकांश ऐसी भी थीं जो न केवल एक बेटी की तरह अपनी ससुराल को संभाल रही थीं बल्कि वे समाजहित में भी कार्य करने से नहीं चूकती थीं.

ऐसी ही एक शहीद जवान की विधवा परी ने न केवल अपने पति के जाने के बाद स्कूल में अध्यापिका बन कर परिवार को संभाला बल्कि उस ने अपनी 2 छोटी ननदों को भी स्वावलंबी बनाया. इंदु के मन पर परी ने गहरा प्रभाव डाला था क्योंकि दोनों की स्थिति कुछकुछ एकजैसी ही थी. एक को पति का प्यार नहीं मिला और दूसरी से पति का प्यार छिन गया, पर इन दोनों महिलाओं की जिम्मेदारियां पुरुषों से कहीं भी कम न थीं.

 

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