वह एकटक मु?ो देखती रही. पता नहीं मैं ने किस भाव में आ कर यह सब कह दिया. उस के चेहरे पर कई भाव आतेजाते रहे. फिर मैं दृढ़ता से उस की ओर देख कर बोली, ‘‘ले, अब चाबियां संभाल और कार निकाल. स्कूल के लिए देर हो रही है. मैं तेरे साथ चलती हूं.’’
‘‘आंटी, मम्मी को कार चलानी नहीं आती,’’ उस का बेटा रोंआसा सा बोला.
‘‘क्यों?’’ मैं ने ममता की ओर देखते हुए कहा, ‘‘पिछली बार तो तू कार चलाना सीख रही थी?’’
‘‘हां,’’ वह बोली, ‘‘मैं चला भी लेती परंतु एक दिन साइकिल वाला सामने आ गया. फिर दोबारा हिम्मत नहीं हुई. मैं ने हेमंत से कहा भी था कि मु?ो क्या जरूरत है, तुम साथ में हो तो तुम्हीं तो चलाओगे न, मु?ो क्या पता कि...’’ कहतेकहते ममता का कंठ अवरुद्ध हो गया.
मु?ा से कुछ और कहते न बना.
अपने चेहरे के हर भाव मैं ने
दूसरी तरफ मुंह फेर कर छिपा लिए और ?ाट से चाबियां ले कर कार में बैठ गई.
विमल के लगातार फोन आते रहे. बच्चे भी मु?ो मिस करने लगे. यहां ममता को इस तरह अचानक छोड़ कर जाने का मन ही नहीं हुआ. मेरा तो भरापूरा परिवार था, पर अब यहां इस का कौन था? जिस घोंसले की सब से बड़ी चिडि़या ही फुर्र से उड़ जाए उस नीड़ का नष्ट हो जाना तो लगभग तय है.
डाक से एक दिन अपोलो टायर्स में जमा की गई 20 हजार रुपए की एफडी की रसीद आई. मैं ने ममता से इस बारे में पूछा तो वह अनजान सी बनी रही. बस, मेरे हाथ में मोटी सी एक फाइल पकड़ा कर किचन में चली गई.
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