दादा बनवारी लाल बरनवाल भी जब कोरोनाग्रस्त हुए, तो घर में जैसे सब की नींद खुली. सुधा अपने दोनों बेटों को बहुत पहले से चेतावनी दे रही थी कि घर की हालत ठीक नहीं चल रही, व्यवसाय चौपट हो गया है और उन्हें काहिली से फुरसत नहीं. यही हाल रहा, तो और बुरे दिन देखने को मिलेंगे. साराकुछ कर्ज में डूबा हुआ है, यह बैंकवालों और महाजनों के तगादों से समझ आ रहा था. मगर उन के कानों पर जू तक न रेंग रही थी.

विगत दिनों ही घर के मुखिया रामनाथ बरनवाल कोरोना से लड़तेलड़ते चल बसे थे. उन पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी वे बच न पाए. शहर के प्रसिद्ध पारस अस्पताल में उन का इलाज चला था. यह वह समय था  जब औक्सीजन से ले कर दुर्लभ दवाओं तक की मारामारी थी. वह सब किसी प्रकार सिर्फ पैसों के बल पर ही तो उपलब्ध हुआ था. जब वहां भी स्थिति नहीं संभली,  तो उन्हें एयर एम्बुलैंस द्वारा बेंगलुरु के प्रतिष्ठित अस्पताल में भी भिजवाया गया था.

पैसे की किल्लत को सुधा तभी समझ पाई जब एकाउंटैंट सुधीर ने बताया कि बैंकों के खाते खाली हैं. तब उस ने तुरंत अपने आभूषण निकाल उन्हें बैंक में जमा करा कर 10 लाख रुपए लोन ले उन के इलाज में खर्च किया था. उस के लिए पति का जीवन महत्त्वपूर्ण था. वहां से वे ठीक हो कर आए ही तो थे कि ब्लैक फंगस नामक रोग ने जकड़ लिया. इस के इलाज के लिए भी  पानी की तरह पैसा बहाया गया. मगर वे बच नहीं पाए.

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