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सवेरे की शताब्दी एक्सप्रैस से विमल ने मु?ो रवाना कर दिया. क्या मालूम था कि कानपुर इस तरह अकेले जाना पड़ेगा. नियति तो कोई बदल नहीं सकता पर सहज विश्वास नहीं होता. अतीत वर्तमान से इतना दूर तो नहीं था.

कानपुर के वीएसएसडी कालेज के

2 वर्षों के ममता के साथ ने हमें अत्यधिक निकटता प्रदान की. हम दोनों ही साइंस की छात्राएं थीं, इसलिए उठनाबैठना, कैंटीन तथा लाइब्रेरी में इस तरह साथसाथ जाना, इस कोएजुकेशन क्लास में हमारी मजबूरी भी थी और जरूरत भी. निकटता हमारे घरों और दिलों में प्रवेश कर गई.

मेरा घर कालेज के पास होने के नाते अकसर वह घर ही चली आती. पिताजी का दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद भी हमारी मित्रता में कोई कमी नहीं आई. कालेज के एक प्रोफैसर से उस के संबंधों की एकमात्र मैं ही राजदार थी. कई बार ममता मेरे घर का बहाना बना कर मोती?ाल और जेके टैंपल लौन में बैठी रहती.

इन के मिलन से मेरे मन में ईर्ष्यामिश्रित गुदगुदी होती रहती. दिल्ली जाने के कुछ ही दिनों बाद पता चला कि उन का प्रणय निवेदन अस्त होते सूरज की भांति गहराता गया. प्रोफैसर की जल्दी विवाह की जिद और ममता के अविवाहित बड़े भाईबहन की मजबूरी ने इस प्रेम को परवान न चढ़ने दिया. वह करती भी क्या, फूटफूट कर फोन पर रोई. दिल की सारी भड़ास कागज पर उतार कर मु?ो भेजी.

औरत भला और कर भी क्या सकती है? हमारी संस्कृति की नियति भी यही है और गरिमा भी. बड़ों से पहले छोटों के विवाह को सवालिया नजरों से जो देखा जाता है.

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