‘‘आज मेरे साथ चलो. निधि भी कल से तुम्हारे साथ बस से आएगीजाएगी. आज उस की फीस जमा करा दूंगी.’’
‘‘ओके आंटी.’’
उस दिन निशा ने उन्हें स्कूल छोड़ दिया था. खुशी तो इस बात की थी कि कुछ ही दिनों में निधि ने स्वयं को स्कूल में ऐडजस्ट कर लिया था. अब वह बिना आनाकानी किए स्कूल जाने लगी थी. शुचि के साथ ने उसे पहले जैसी चंचल बना दिया था पर फिर भी वह कभीकभी रात में डरते हुए उठ कर बैठ जाती या नींद में बड़बड़ाती कि प्लीज अंकल, मुझे पनिश मत करो, मैं गंदी लड़की नहीं हूं. निशा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. दीपक वैसे ही परेशान था. औफिस, कोर्टकचहरी... अभी सोच ही रही थी कि मोबाइल बज उठा. उस के फोन उठाते ही दीपक ने कहा, ‘‘निशा, स्कूल प्रशासन ने स्विमिंग इंस्ट्रक्टर को बरखास्त कर दिया है तथा वकील नागेंद्र ने कोर्ट में विशेष अर्जी दे कर कोर्ट से मांग की है कि बच्ची की उम्र को देखते हुए बच्ची को कोर्ट न आने की अनुमति प्रदान की जाए. सिर्फ डा. संगीता तथा उस के द्वारा निधि के रिकौर्ड किए बयान को ही साक्ष्य मान लिया जाए. देखो क्या होता है? इस के साथ ही एक खुशखबरी और है, मेरे स्थानांतरण की अर्जी को मौखिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है. लिखित रूप में आदेश महीने भर में मिल जाना चाहिए.’’
सुन कर निशा ने चैन की सांस ली. सजा तो वह भी उस दरिंदे को दिलवाना चाहती थी, पर उस की एक ही शर्त थी कि इस सब में निधि का नाम न आए... वह नहीं चाहती थी कि वह बारबार उन पलों को जीए, जिन्होंने उस के तनमन को घायल कर दिया है. निधि का निरंतर बड़बड़ाना निशा की रात की नींद तथा दिन का चैन खराब कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उस के मन का डर समाप्त किया जाए. फिर उस ने सोचा क्यों न किसी चाइल्ड साइकिएट्रिस्ट से संपर्क करे. पर अलका के पास रहते हुए निधि को डाक्टर के पास ले जाना संभव नहीं था. न जाने कितने प्रश्न उठते. इसी सोच के तहत उस ने एक दिन अलका से कहा, ‘‘बहुत दिन हो गए तुम्हारे पास रहतेरहते, अब मैं चाहती हूं अलग घर ले लूं. दीपक भी शायद अगले महीने तक आ जाएं.’’